केरल और तमिलनाडु के ऊंचाई वाले इलाकों में इस बार मानसून ने समय से पहले दस्तक दी है, लेकिन किसानों के लिए ये बारिश राहत की जगह अब चिंता का कारण बन गई है. खासकर इलायची की खेती करने वाले किसानों के लिए ये समय काफी मुश्किल भरा साबित हो रहा है. लगातार हो रही बारिश और अधिक नमी के कारण इलायची के पौधों पर फफूंदजनित बीमारियों का हमला बढ़ गया है, जिससे उत्पादन और गुणवत्ता दोनों पर असर पड़ने का खतरा मंडरा रहा है.
लगातार बारिश से बढ़ा “क्लंप रॉट” और फफूंद का खतरा
इस बार मई और जून में सामान्य से कहीं अधिक बारिश हुई है. इसके साथ तेज हवाओं ने भी इलायची की खेती को नुकसान पहुंचाया है. किसान बताते हैं कि इन मौसमी असंतुलनों की वजह से “क्लंप रॉट” (Clump Rot) और फफूंदजनित रोगों ने इलायची के खेतों में पैर पसार लिए हैं. पौधों की जड़ों में सड़न शुरू हो गई है और पत्तियाँ पीली होकर गिरने लगी हैं. इलायची की खेती नमी वाली जलवायु में तो होती है, लेकिन जब मिट्टी में अत्यधिक पानी भर जाए और हवा का प्रवाह न हो, तो यह स्थिति बीमारियों के लिए आदर्श बन जाती है.
फलों का सेट होना भी हुआ प्रभावित
किसानों की चिंता सिर्फ रोगों तक सीमित नहीं है. इस समय इलायची के पौधों में फलों का सेट होना (fruit setting) शुरू हो जाता है, लेकिन ज्यादा नमी और मौसम की गड़बड़ी की वजह से फलों का विकास रुक गया है. इससे न केवल उत्पादन घटेगा बल्कि आगामी सीजन में भी इसका असर पड़ सकता है.
कटाई में भी हो रही देरी
बिजनेस लाइन की रिपोर्ट के अनुसार केसीपीएमसी लिमिटेड (KCPMC Ltd) के जनरल मैनेजर पी.सी. पुनूस ने बताया कि इस साल जून की शुरुआत में इलायची की फसल की स्थिति पिछले साल की तरह सामान्य दिख रही थी. लेकिन अब लगातार बारिश ने कटाई की प्रक्रिया को धीमा कर दिया है. अब फसल की कटाई जुलाई के मध्य या अगस्त तक टल सकती है.
कीमतों पर भी असर, लेकिन उम्मीदें बाकी हैं
इस समय इलायची की नीलामी में औसतन दाम 2650 रुपये प्रति किलो के आसपास चल रहे हैं. लेकिन यदि बीमारियों का प्रकोप ऐसे ही बढ़ता रहा और उत्पादन में गिरावट आती है, तो कीमतों में अस्थिरता देखी जा सकती है. किसानों को उम्मीद है कि यदि जुलाई में मौसम थोड़ा साफ रहा और नमी कम हुई, तो फसल को कुछ राहत मिल सकती है.