अगर आलू पर दिखें ये काले निशान, तो किसान तुरंत हो जाएं सावधान- ऐसे करें बचाव

हर साल एक ही खेत में आलू उगाना फफूंद रोग को बढ़ावा देता है. इसलिए फसल चक्र अपनाना जरूरी है. आलू के बाद गेहूं, चना, मक्का या अन्य फसलों की बुवाई करें. इससे मिट्टी में मौजूद रोगजनकों की संख्या कम होती है और फसल स्वस्थ रहती है.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 18 Aug, 2025 | 03:40 PM

आलू हमारे दैनिक भोजन का अहम हिस्सा है और देशभर में इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. लेकिन आलू उगाने वाले किसानों के लिए फफूंद (फंगल) रोग एक बड़ी चुनौती बनता जा रहा है. यह रोग न केवल फसल की उपज को कम करता है, बल्कि कंदों की गुणवत्ता और किसानों की आमदनी पर भी असर डालता है. विशेषज्ञों का कहना है कि समय पर सही उपाय अपनाने से फसल को इस रोग से बचाया जा सकता है.

फफूंद रोग का कारण

आलू की फसल में फफूंद रोग का मुख्य कारण पौधे की प्रतिरोधक क्षमता में कमी, मिट्टी में हानिकारक जीवाणुओं की मौजूदगी और ज्यादा नमी होना है. लेट ब्लाइट (Phytophthora infestans) और अर्ली ब्लाइट (Alternaria solani) जैसे रोग सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं. इनके लक्षण पत्तियों पर काले धब्बे, तनों का सड़ना और कंदों का गलना के रूप में दिखते हैं.

फसल बचाव के उपाय

अच्छी किस्म का चयन

रोग-प्रतिरोधी किस्मों का चयन फफूंद रोग से बचाव का सबसे प्रभावी तरीका है. ऐसी किस्में विशेष रूप से लेट ब्लाइट और अर्ली ब्लाइट जैसे रोगों के खिलाफ तैयार की जाती हैं. विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि स्थानीय जलवायु और मिट्टी के अनुसार ही किस्म का चयन करें. बीज के रूप में केवल प्रमाणित और रोगमुक्त कंद का इस्तेमाल करें, ताकि शुरुआती अवस्था में ही रोग फैलने से रोका जा सके.

फसल चक्र अपनाएं

हर साल एक ही खेत में आलू उगाना फफूंद रोग को बढ़ावा देता है. इसलिए फसल चक्र अपनाना जरूरी है. आलू के बाद गेहूं, चना, मक्का या अन्य फसलों की बुवाई करें. इससे मिट्टी में मौजूद रोगजनकों की संख्या कम होती है और फसल स्वस्थ रहती है. साथ ही, फसल चक्र अपनाने से मिट्टी की उर्वरता भी बनी रहती है.

खेत की सफाई 

पुराने पौधों के अवशेष, सड़े-गले कंद और संक्रमित पौधों को खेत से निकाल दें. ये रोग के प्रमुख स्रोत होते हैं. इसके अलावा, खेत में जुताई के समय मिट्टी को अच्छी तरह पलटें और सूर्य के प्रकाश से कीटाणु को नष्ट करने का प्रयास करें. इससे रोग के फैलने की संभावना कम हो जाती है.

जल निकासी का ध्यान

अधिक नमी फफूंद रोग को बढ़ावा देती है. इसलिए खेत में जलभराव न होने दें और सिंचाई केवल आवश्यकता अनुसार करें. बहुआयामी सिंचाई पद्धति जैसे ड्रिप इरिगेशन या स्प्रिंकलर का उपयोग करने से फसल को पर्याप्त नमी मिलती है और रोग का खतरा कम होता है.

पेस्टिसाइड और ऑर्गेनिक उपाय

रोग नियंत्रण के लिए कृषि विभाग से रजिस्टर्ड पेस्टिसाइड का इस्तेमाल करें. फसल में फफूंद के शुरुआती लक्षण दिखते ही दवा का छिड़काव करें. ऑर्गेनिक उपाय जैसे ट्राइकोडर्मा और अन्य माइक्रोबियल एजेंट भी प्रभावी हैं. ये उपाय पर्यावरण के लिए सुरक्षित हैं और फसल की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं.

मैनेजमेंट रणनीति

फफूंद रोग पर टिकाऊ नियंत्रण के लिए ऑर्गेनिक, केमिकल और अन्य उपायों का मिश्रण अपनाएं. समय पर जांच, सही दवा, और खेत की सफाई से रोग का खतरा कम होता है. यह रणनीति न केवल फसल को सुरक्षित रखती है, बल्कि उत्पादन और गुणवत्ता दोनों को बेहतर बनाती है.

किसानों के लिए यह जरूरी है कि फफूंद रोग को समय रहते पहचानें और सावधानीपूर्वक मैनेजमेंट करें. सही जानकारी और उपाय अपनाने से आलू की उपज बढ़ती है, फसल स्वस्थ रहती है और आर्थिक नुकसान से बचाव होता है.

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