सर्दियों के मौसम में शायद ही भारत में ऐसा कोई घर हो जहां हरी मटर का इस्तेमाल न होता हो. सर्दियों में बनने वाली हर सब्जी में हरी मटर का इस्तेमाल जरूर किया जाता है. बाजार में भी इसकी मांग हर समय बनी रहती है. किसान भी बड़े पैमाने पर हरी मटर की खेती करते हैं. हरी मटर का इस्तेमाल सालभर किया जाता है. ऐसे में इसकी खेती किसानों के लिए फायदे का सौदा साबित होती है. तो चलिए जान लेते हैं कि कैसे होती है हरी मटर की खेती औक कितनी होती है पैदावार.
ऐसे तैयार करें खेत
हरी मटर रबी सीजन की फसलों में से मुख्य फसल है. हरी मटर की खेती के लिए दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है. इसकी बुवाई का समय अक्टूबर से नवंबर के बीच का होता है. हरी मटर की खेती के लिए मिट्टी का pH मान 6 से 7.5 के बीच होना चाहिए. इसकी खेती करने से पहले अच्छे से खेत की 1 से 2 बाक जुताई कर लें. इसके बाद कल्टीवेटर का इस्तेमाल कर 2 से 3 बार फिर खेत की जुताई करें. खेत तैयार करते समय मिट्टी में 2 से 3 टन सड़ी हुई गोबर की खाद डालें ताकि मिट्टी की उर्वरता बढ़ाई जा सके.
बुवाई से पहले करें बीजों का उपचार
हरी मटर की अच्छी उपज के लिए बीजों की रोपाई अक्टूबर के आखिर से नवंबर के मध्य तक करनी चाहिए. बीज की रोपाई से पहले कप्तान या थीरम 3 ग्राम या कार्बेनडाज़िम 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज से उपचार करें. इसके बाद राइज़ोबियम लैगूमीनोसोरम से एक बार और उपचार करें. अच्छी उपज के लिए प्रति एकड़ जमीन पर 35 से 40 किलो बीज की बुवाई करें. बीज लगाते समय ध्यान रखें कि पंक्तियों के बीच 30-40 सेमी और पौधों के बीच 10-15 सेमी की दूरी रखें. बुवाई के समय 10:30:20 किलो एन.पी.के. रासायनिक खाद का इस्तेमाल करें.
100-150 क्विंटल तक होती है पैदावार
हरी मटर की खेती से प्रति हेक्टेयर फसल में करीब 100 से 150 क्विंटल तक पैदावार हो सकती है. हरी मटर की उपज उसकी किस्म पर भी निर्भर करती है. सूखी मटर दाने की उपज 15 से 20 क्विंटल तक हो सकती है. वहीं हरी मटर की कुछ किस्में ऐसी भी हैं जिसे प्रकि हेक्टेयर 60 से 70 क्विंटल तक उपज होती है. बता दें कि हरी मटर की फसल को तैयार होने में लगभग 80 से 100 दिन का समय लगता है.