धान किसानों के लिए वैज्ञानिकों की चेतावनी, कीटों और बीमारी से बचाने का तरीका बताया

तमिलनाडु राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट ने किसानों को सलाह दी है कि वे सांबा और थलाड़ी सीजन के लिए क्षेत्र के अनुसार कम लागत वाली धान की किस्में चुनें. मिट्टी की सेहत सुधारने के लिए ढैंचा जैसी हरित खाद फसलें उगाएं और दलहनी फसलें भी शामिल करें.

नोएडा | Updated On: 26 Jun, 2025 | 03:54 PM

तमिलनाडु के डेल्टा इलाके में कुछ जगहों पर कुरुवई धान की खेती शुरू हो गई है, लेकिन ज्यादातर किसान अब भी अनुकूल मौसम का इंतजार कर रहे हैं. इस बीच, तमिलनाडु राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट (TRRI), अदुथुराई के वैज्ञानिकों ने किसानों से अपील की है कि वे सांबा और थलाड़ी सीजन की पहले से योजना बनाएं. साथ ही अपने इलाके की मिट्टी और मौसम के हिसाब से कम खर्च वाली धान की किस्में चुनें, ताकि बेहतर पैदावार मिल सके और लागत भी कम आए.

द हिन्दू की रिपोर्ट के मुताबिक, TRRI के निदेशक के सुब्रह्मणियन का कहना है कि किस्म का चयन मिट्टी और जलवायु के अनुसार होना चाहिए. उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि यहां आमतौर पर बोई जाने वाली धान की किस्म TPS 5 अन्य जगहों पर 100 दिनों में तैयार हो जाती है, लेकिन डेल्टा में इसे 125 दिन लगते हैं. इससे फसल देर से तैयार होती है और कीटों का खतरा बढ़ता है. ऐसे में लागत भी अधिक आती है. उन्होंने सांबा सीजन में जल्दी पकने वाली किस्मों को बोने से मना किया.

मिट्टी की ताकत कम हो गई

उन्होंने इस बात पर भी चिंता जताई कि किसान बिना रुके लगातार फसलें उगा रहे हैं. खासकर जब थलाड़ी की बुवाई कुरुवई के तुरंत बाद कर दी जाती है, तो मिट्टी को न तो आराम मिल पाता है और न ही उसमें जैविक सुधार हो पाता है. उन्होंने कहा कि अगर मिट्टी को समय पर सुधार नहीं दिया गया, तो उसमें डाली गई खाद का असर धीरे-धीरे कम हो जाता है. पहले जहां 10 किलो खाद से अच्छी पैदावार हो जाती थी, अब 100 किलो खाद देने पर भी वैसा नतीजा नहीं मिलता, क्योंकि मिट्टी की ताकत कम हो चुकी है.

ढैंचा की बुवाई करने के फायदे

TRRI के निदेशक डॉ. सुब्रह्मणियन ने किसानों को मिट्टी की उर्वरता सुधारने के लिए सलाह दी है कि वे सनहेम्प और ढैंचा जैसी हरित खाद वाली फसलें उगाएं और इन्हें फूल आने से पहले खेत में मिला दें. उन्होंने कहा कि अगर सही तरीके से हरित खाद का इस्तेमाल किया जाए, तो यह प्रति हेक्टेयर करीब 130 किलो नाइट्रोजन और 20–30 टन जैविक पदार्थ देती है. इसके लिए सिर्फ 10- 15 किलो बीज प्रति एकड़ ही काफी होता है, और इसे कुरुवई सीजन से 45 से 60 दिन पहले खेत में मिलाना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि सांबा फसल के बाद दलहनी फसलें बोने से मिट्टी की सेहत बेहतर होती है और कीटों का प्रकोप भी कम होता है.

इन किस्मों की बुवाई करने की सलाह

TRRI में पल्स ब्रीडिंग और हाइब्रिड राइस के विशेषज्ञ प्रोफेसर आर. मणिमारन ने कुरुवई सीजन के लिए ADT 53, 55, 56 और 57 जैसी किस्मों की सिफारिश की है. इनमें ADT 57 सीधे बुवाई के लिए उपयुक्त है और ADT 55 में बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट (BLB) रोग के प्रति सहनशीलता है. ADT 53, ADT 43 का अच्छा विकल्प है और पारबॉयल्ड चावल के लिए उपयुक्त है, जबकि ADT 59 को इडली चावल के लिए पसंद किया जाता है.

 

Published: 26 Jun, 2025 | 03:11 PM

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