तीन साल से लगातार घाटे में प्याज किसान, नासिक में उठी MSP की मांग, जानिए वजह
पिछले तीन सालों से किसानों के लिए प्याज की खेती एक जुआ बन गई है. कभी दाम इतने गिरते हैं कि खेत में फसल सड़ जाती है, तो कभी मौसम की मार सब कुछ तबाह कर देती है. अब किसान एकजुट होकर सरकार से प्याज के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) तय करने की मांग कर रहे हैं.
MSP Demand: महाराष्ट्र का नासिक जिला, जिसे देश ही नहीं, एशिया की प्याज राजधानी कहा जाता है, इन दिनों गहरी मुसीबत में है. खेतों में प्याज तो खूब उग रही है, लेकिन किसानों के चेहरों पर अब मुस्कान नहीं बची. वजह है बदलता मौसम, सरकार की बार-बार बदलती नीतियां और बाजार का अनिश्चित खेल. पिछले तीन सालों से किसानों के लिए प्याज की खेती एक जुआ बन गई है. कभी दाम इतने गिरते हैं कि खेत में फसल सड़ जाती है, तो कभी मौसम की मार सब कुछ तबाह कर देती है. अब किसान एकजुट होकर सरकार से प्याज के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) तय करने की मांग कर रहे हैं.
किसानों की बढ़ती परेशानी
बिजनेस लाइन की रिपोर्ट के अनुसार, हाराष्ट्र राज्य प्याज उत्पादक किसान संगठन के अध्यक्ष भारत दिघोले का कहना है, “मौसम ने खेती का पूरा चक्र बिगाड़ दिया है. कभी असमय बारिश, कभी तेज गर्मी या ओलावृष्टि, सब कुछ प्याज की पैदावार को प्रभावित कर रहा है. ऊपर से सरकार की निर्यात नीति में बार-बार बदलाव होने से व्यापारी भी प्याज खरीदने से कतराने लगे हैं. ऐसे में किसान न कीमत का अंदाजा लगा पा रहे हैं, न फसल बचाने का भरोसा है.”
उन्होंने चेतावनी दी कि अगर सरकार ने जल्द कोई ठोस कदम नहीं उठाया, तो आने वाले महीनों में प्याज संकट और गहराएगा.
एमएसपी की मांग क्यों जरूरी
प्याज किसानों का कहना है कि खेती में अब “लाभ” नहीं बल्कि नुकसान तय है. कभी उत्पादन बढ़ने पर दाम गिर जाते हैं, तो कभी बारिश या ठंड से पूरी फसल बर्बाद हो जाती है.
अहमदनगर के किसान बी.के. पाटिल बताते हैं, “हम अब यह भी नहीं जानते कि हमारी फसल की कीमत क्या होगी या लागत भी निकल पाएगी या नहीं. अगर एमएसपी मिल जाए, तो कम से कम हमें एक न्यूनतम राहत तो मिलेगी.”
कृषि मंत्रालय का कहना है कि किसी फसल को एमएसपी के दायरे में शामिल करने के लिए उसकी लंबी शेल्फ लाइफ, वृहद उत्पादन क्षेत्र, खपत का स्तर और खाद्य सुरक्षा में योगदान जैसे मानदंडों पर विचार किया जाता है. मंत्रालय ने यह भी स्पष्ट किया है कि प्याज को राज्य सरकार की सिफारिश पर प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) के तहत बीमित किया जा सकता है.
प्याज उत्पादन का चक्र
महाराष्ट्र में प्याज की खेती तीन मौसमों में होती है — रबी, खरीफ और लेट खरीफ. रबी प्याज (अक्टूबर-नवंबर में बोई गई और मार्च-मई में काटी गई) देश के कुल उत्पादन का करीब 70 फीसदी हिस्सा देती है. जबकि खरीफ और लेट खरीफ फसलें मिलकर शेष 30 फीसदी उत्पादन देती हैं. खरीफ प्याज का काम होता है बाजार में कीमतों को स्थिर रखना, जब रबी प्याज की आपूर्ति कम होती है.
लेकिन बदलते मौसम और जलवायु के कारण यह चक्र बिगड़ गया है. किसान बताते हैं कि पहले जहां प्याज की पैदावार स्थिर थी, अब हर सीजन में या तो बंपर फसल होती है या पूरी तरह बर्बादी.
खेती से दूरी बना रहे किसान
नासिक, पुणे और दिंडोरी जैसे प्रमुख प्याज उत्पादक जिलों के सांसदों ने संसद में चिंता जताई है कि लगातार घाटे से किसान खेती छोड़ने लगे हैं. पहले जो किसान डेढ़ एकड़ में प्याज उगाते थे, वे अब आधा एकड़ में ही सीमित हो गए हैं.
नासिक के किसान राहुल पाटिल का कहना है, “कई युवा किसान अब प्याज छोड़कर दूसरी फसलें लगाने लगे हैं. उन्हें लगता है कि इतनी मेहनत और लागत के बाद भी जब कीमत नहीं मिलेगी, तो खेती का क्या फायदा?”
नीति और मौसम दोनों में सुधार जरूरी
महाराष्ट्र के प्याज किसानों के लिए एमएसपी की मांग सिर्फ मुनाफे की बात नहीं है, यह जीविका और अस्तित्व का सवाल बन चुकी है. मौसम की मार, निर्यात प्रतिबंधों और बाजार की अस्थिरता ने खेती को असुरक्षित बना दिया है.
सरकार अगर प्याज को भी एमएसपी के दायरे में लाए और किसानों को स्थिर दाम का भरोसा दे, तो न केवल उनकी आर्थिक स्थिति सुधरेगी, बल्कि देश में प्याज संकट की समस्या भी नियंत्रित हो सकेगी.