औषधीय टर्की बेर की खेती से किसानों की बल्ले-बल्ले, कम लागत में होगी लाखों की आमदनी
आयुर्वेदिक औषधियों और हर्बल उद्योगों में लगातार बढ़ती जरूरतों ने टर्की बेर को एक महंगी और हाई-डिमांड फसल बना दिया है. यही कारण है कि यह बाजार में 100 से 200 रुपये प्रति किलो और सूखे रूप में 300 से 500 रुपये प्रति किलो तक आसानी से बिक जाता है.
Farming Tips: टर्की बेर, जिसे कई जगहों पर सुरई, जंगली बैंगन या भटकटैया के नाम से जाना जाता है, आज किसानों के लिए एक ऐसी फसल बनकर उभर रहा है जो कम निवेश में शानदार लाभ दे सकती है. यह छोटा सा फल सिर्फ स्वाद या सब्जी बनाने में ही काम नहीं आता, बल्कि इसके औषधीय गुणों की वजह से इसकी बाजार में भारी मांग रहती है. आयुर्वेदिक औषधियों और हर्बल उद्योगों में लगातार बढ़ती जरूरतों ने टर्की बेर को एक महंगी और हाई-डिमांड फसल बना दिया है. यही कारण है कि यह बाजार में 100 से 200 रुपये प्रति किलो और सूखे रूप में 300 से 500 रुपये प्रति किलो तक आसानी से बिक जाता है.
टर्की बेर की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और मिट्टी
टर्की बेर की खासियत यह है कि इसे उगाने में ज्यादा मेहनत नहीं लगती. यह पौधा गर्म और आर्द्र क्षेत्रों में बेहतरीन बढ़ता है. रेतीली दोमट और चिकनी दोमट मिट्टी इस फसल के लिए सबसे उत्तम मानी जाती है. मिट्टी में पानी का जमाव नहीं होना चाहिए, क्योंकि यह पौधा जलभराव सहन नहीं कर पाता.
मिट्टी का pH 5.5 से 7.0 के बीच होना टर्की बेर की वृद्धि के लिए आदर्श माना जाता है. जिन क्षेत्रों में धूप अच्छी मिलती है और तापमान 20°C से 30°C के बीच रहता है, वहां यह फसल तेजी से बढ़ती है.
बीज से पौधा तैयार करने की प्रक्रिया
टर्की बेर की खेती हमेशा बीज से शुरू होती है. बीजों को पहले 24 घंटे पानी में भिगोकर रख दिया जाता है, जिससे उनकी अंकुरण क्षमता बढ़ जाती है. इसके बाद इन्हें नर्सरी में या पॉलीबैग में बोया जाता है. लगभग 30–40 दिनों में छोटे पौधे मजबूत होकर खेत में रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं.
खेत में रोपाई करते समय पौधों के बीच 3–4 फीट और कतार से कतार की दूरी 5–6 फीट रखनी जरूरी होती है. इससे पौधे फैलने के लिए पर्याप्त जगह पाते हैं और फलन भी अच्छी होती है.
सिंचाई और पौधों की देखभाल
टर्की बेर की फसल को पानी की अधिक आवश्यकता नहीं होती, इसलिए इसकी सिंचाई बहुत आसान है. गर्मियों में सामान्यत: सप्ताह में एक बार पानी देना पर्याप्त होता है, जबकि बरसात में अतिरिक्त पानी देने की जरूरत नहीं पड़ती. फसल की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए फलों को तब तोड़ना चाहिए जब वे हल्के हरे रंग के हों. इससे उनके पोषक तत्व सुरक्षित रहते हैं और बाजार में भी अच्छी कीमत मिलती है.
उत्पादन क्षमता और फसल की अवधि
इस फसल की सबसे बड़ी ताकत यह है कि इसकी रोपाई के सिर्फ 4–6 महीने बाद फल आने लगते हैं. एक पौधा लगातार 3–4 साल तक उत्पादन देता है. एक स्वस्थ पौधे से 10 से 20 किलो तक फल मिलता है और एक एकड़ में खेती करने पर 5 से 6 टन उत्पादन आसानी से प्राप्त किया जा सकता है. लंबे समय तक उत्पादन क्षमता किसानों के लिए बढ़ी हुई आय का शानदार अवसर प्रदान करती है.
टर्की बेर के औषधीय फायदे
टर्की बेर सिर्फ स्वाद के लिए नहीं, बल्कि इसके स्वास्थ्य लाभ इसे बेहद खास बनाते हैं. इसमें पाए जाने वाले एंटीऑक्सीडेंट और रोग प्रतिरोधक तत्व शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करते हैं. आयुर्वेद में इसका उपयोग कई तरह के उपचारों में होता है—खांसी, संक्रमण, पाचन संबंधी समस्याएं और सूजन जैसे रोगों में यह कारगर माना जाता है. इसके अलावा यह सब्जी, अचार और पारंपरिक दवाइयों में भी खूब इस्तेमाल किया जाता है, जिससे इसकी बाजार मांग लगातार बढ़ती जा रही है.
कम लागत में अधिक मुनाफा
टर्की बेर की खेती की लागत बहुत कम होती है. बीज और पौधों की तैयारी में ज्यादा खर्च नहीं आता, और पानी व खाद की कम जरूरत इसे और सस्ता बनाती है. सूखे बेर की कीमत 300–500 रुपये प्रति किलो तक पहुंचने के कारण किसानों को शानदार मुनाफा मिलता है. एक एकड़ की खेती से किसान आसानी से लाखों रुपये की आय कमा सकते हैं.