बिहार की प्रसिद्ध शाही लीची, जिसे जीआई टैग भी मिल चुका है, आज देश के कोने-कोने तक पहुंच रही है और इसके पीछे हैं नालंदा की महिला उद्यमी स्मिता सिंह का हाथ. जी हां,आज की हमारी चैंपियन किसान की सिरीज में हम बात कर रहे हैं बिहार के नालंदा जिले में रहने वाली महिला उद्यमी स्मिता सिंह की, जो न केवल बिहार की स्वादिष्ट लीची को देशभर में लोकप्रिय बना रही हैं, बल्कि सैकड़ों की संख्या में ग्रामीण महिलाओं को रोजगार देकर उन्हें आत्मनिर्भर भी बना रही हैं. बता दें कि पेशे से इंजीनियर रह चुकीं स्मिता आज कई महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बनी गई हैं.
लाखों के पैकेज को छोड़ा
बिहार के नालंदा की रहने वाली आज की हमारी चैंपियन किसान स्मिता बताती हैं कि उन्होंने राजस्थान के एक निजी विश्वविद्यालय से इंजीनियरिंग की पढ़ाई जिसके बाद एक अच्छी बड़ी कंपनी में उन्हें लाखों के पैकेज पर नौकरी भी मिली. लेकिन स्मिता इस नौकरी से खुश। नहीं थी, उन्हें संतुष्टि नहीं हो रही थी. जिसके बाद उन्होंने नौकरी छोड़ खुद की संतुष्टि के लिए कुछ अलग करने का सोचा. कुछ अलग करने की सोच ने ही उन्हें अपने गांव चैनपुर (हरनौत, नालंदा) लौटने को प्रेरित किया और यहीं से उन्होंने फूड पैकेजिंग का काम शुरू किया.

नालंदा की महिला उद्यमी स्मिता सिंह
नई तकनीक से बढ़ाई लीची की सेल्फ लाइफ
समाचार एजेंसी प्रसार भारती से बात करते हुए महिला उद्यमी स्मिता सिंह ने बताया कि आमतौर पर लीची की सेल्फ लाइफ 3 से 4 दिन की होती है. लेकिन स्मिता ने ऐसी तकनीक का विकास किया जिसकी मदद से इन लीचियों को 2 साल तक सुरक्षित रखा जा सकता है. उन्होंने बताया कि इस तकनीक की मदद से पैकेजिंग करने से उन्हें बिहार की लीची को दूसरे राज्यों तक पहुंचाने का मौका मिला है. बता दें कि आज बिहार की लीची की सप्लाई दिल्ली, हरियाणा, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में की जा रही है. इसके अलावा उनकी फूड प्रोसेसिंग यूनिट में लीची के साथ-साथ टोमैटो प्यूरी, बेबी कॉर्न जैसे अन्य मौसमी फसलों की भी प्रोसेसिंग और पैकेजिंग की जाती है.

स्मिता सिंह की फूड यूनिट में काम करती महिलाएं
महिलाओं को दे रहीं रोजगार
स्मिता ने बताया कि उनकी पैकेजिंग यूनिट में करीब 100 महिलाएं काम करती हैं और उनकी यूनिट में काम करने वाले कर्मचारियों में ज्यादातर महिला कर्मी ही हैं. उन्होंने बताया कि इस सीजन 70 टन लीची की सप्लाई का लक्ष्य रखा गया है. स्मिता के बिहार की लीची को देश के हर कोने तक पहुंचाने की कोशिश से न केवल महिलाओं को रोजगार मिला है, बल्कि किसानों की बाजार पर निर्भरता भी कम हुई है. स्मिता बताती हैं वे पिछले 6 साल से इस काम में लगी है और इसके पीछे उनका उद्देश्य महिलाओं को सशक्त बनाना और गांवों में उद्यमिता को बढ़ावा देना है. स्मिता आज के युवाओं से भी ये अपील करती हैं कि वे नौकरी की तलाश करने की बजाय उद्यम के क्षेत्र में आगे आएं.