मसूर की दाल हर घर में खाई जाने वाली हल्की, स्वादिष्ट और सेहत से भरपूर. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि खेतों में उगने वाली यह छोटी-सी दाल किसान के लिए कितनी मेहनत और समय की माँग करती है? अगर आप खुद किसान हैं या खेती की शुरुआत करना चाहते हैं, तो यह जानना बेहद जरूरी है कि मसूर की बुआई (lentil sowing) कब और कैसे करनी चाहिए.
क्यों खास है मसूर की फसल?
मसूर सिर्फ एक दाल नहीं, बल्कि खेत की मिट्टी को उपजाऊ बनाने वाली एक अहम दलहनी फसल है. इसमें प्रोटीन, फाइबर, आयरन और कई जरूरी पोषक तत्व होते हैं, जो इंसान की सेहत के साथ-साथ मिट्टी के स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद हैं. यही कारण है कि इसे हर साल लाखों किसान अपने खेत में उगाते हैं.
मसूर की बुआई का सही समय
मसूर की फसल को अच्छी पैदावार के लिए सही समय पर बोना बेहद जरूरी है. आमतौर पर मसूर को सर्दियों की शुरुआत में यानी रबी सीजन में बोया जाता है. उत्तर भारत में मसूर की बुआई का आदर्श समय अक्टूबर के मध्य से नवंबर के अंत तक माना जाता है. ठंडे और अधिक नमी वाले क्षेत्रों में इसे अक्टूबर में जल्दी बोया जाता है, जबकि अपेक्षाकृत गर्म क्षेत्रों में नवंबर तक बुआई की जा सकती है. अगर बुआई बहुत जल्दी हो गई, तो बीज अंकुरित नहीं हो पाते और अगर देर से बोया गया, तो फसल को पूरा बढ़ने का समय नहीं मिल पाता. इससे उत्पादन घट सकता है.
किस मिट्टी में होती है अच्छी पैदावार?
मसूर को हल्की, भुरभुरी और अच्छी जलनिकासी वाली दोमट मिट्टी सबसे ज्यादा पसंद होती है. pH मान 6.0 से 6.8 के बीच हो तो बेहतर. खेत में पानी का जमाव न हो, वरना बीज गल सकते हैं. साथ ही खेत की तैयारी के समय एक जुताई गहरी करनी चाहिए और फिर दो बार हल्की जुताई कर मिट्टी को भुरभुरी बना लेना चाहिए.
बीज की बुआई कैसे करें?
बीज की गहराई: 1 से 2 इंच (2.5 से 5 सेमी)
पंक्ति से पंक्ति की दूरी: लगभग 30 सेमी
पौधे से पौधे की दूरी: 10 सेमी
बीजों को बोने से पहले उन्हें फफूंदनाशी दवा से उपचारित करना जरूरी होता है ताकि बीज सड़ने या बीमारी से बच सकें. जैविक खेती करने वाले किसान बीज को ट्राइकोडर्मा या जैव फफूंदनाशी से भी ट्रीट कर सकते हैं.
सिंचाई और देखभाल
- मसूर की फसल को बहुत ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती.
- बुआई के समय मिट्टी में थोड़ी नमी होना जरूरी है.
- सामान्यतः 2-3 सिंचाई ही पर्याप्त होती हैं, एक फूल आने के समय और दूसरी दाना भरने के समय.
फसल में समय-समय पर निराई-गुड़ाई करते रहें ताकि खरपतवार न फैलें. साथ ही, कीटों और बीमारियों पर भी नजर रखें. जरूरत होने पर जैविक या वैज्ञानिक सलाह के अनुसार दवा का छिड़काव करें.