मध्य प्रदेश के इस गांव में हर कोई पशुपालक, रोजाना 60 क्विंटल दूध उत्पादन करते हैं ग्रामीण

मध्य प्रदेश के नीमच जिले का चौकान खेड़ा गांव हर घर में पशुपालन के लिए मशहूर है. अहीर समाज के 70 से अधिक परिवार रोज़ाना 60 क्विंटल दूध का उत्पादन करते हैं, जिससे गांव आर्थिक रूप से संपन्न हो चुका है.

नोएडा | Updated On: 9 Jun, 2025 | 02:00 PM

मध्य प्रदेश के नीमच जिले का एक छोटा सा गांव चौकान खेड़ा आज पूरे प्रदेश में मिसाल बन चुका है. यहां हर घर में पशुपालन होता है और हर दिन 60 क्विंटल से ज्यादा दूध का उत्पादन किया जाता है. यह गांव अब दूध उत्पादन और ग्रामीण समृद्धि की पहचान बन गया है. दूध बेचकर यहां के लोग न सिर्फ आत्मनिर्भर हो रहे हैं, बल्कि दूसरे गांवों के लिए भी प्रेरणा बन रहे हैं.

चौकान खेड़ा, नीमच जिले की बावल पंचायत में आता है और जिला मुख्यालय से इसकी दूरी महज 15 किलोमीटर है. गांव की कुल जनसंख्या लगभग 850 है , जबकि 79 फीसदी साक्षर हैं और यहां अहीर समाज के 70 से ज्यादा परिवार रहते हैं. दिलचस्प बात यह है कि गांव में 1300 से ज्यादा गाय-भैंसें हैं और यही वजह है कि यह गांव दूध उत्पादन में आगे है.

पशुपालन बना प्रमुख व्यवसाय

मध्य प्रदेश सरकार के पशुपालन विभाग के अनुसार, गांव के लोगों का कहना है कि गांव के प्रत्येक घर में 10 से 20 पशु हैं. हर घर से प्रतिदिन 100 से 150 लीटर दूध निकाला जाता है. गांव में कुल मिलाकर 50 से 60 क्विंटल दूध प्रतिदिन डेयरी और दुग्ध केंद्रों पर भेजा जाता है. इससे न सिर्फ ग्रामीणों की आमदनी में इजाफा हुआ है, बल्कि चौकान खेड़ा अब आर्थिक रूप से समृद्ध गांवों की सूची में भी आ गया है.

घी, छाछ और शादी-ब्याह की परंपरा

पशुपालन विभाग ने सोशल मीडिया पोस्ट में जानकारी शेयर की है. इसमें गांव के किसानों ने बताया कि उनके परिवार में हर दिन एक किलो घी निकाला जाता है. इसके अलावा, जब जावद या नीमच जैसे कस्बों में शादी समारोह होते हैं तो गांव से छाछ भेजी जाती है, वो भी बिना पैसा लिए. यह परंपरा गांव की सामूहिकता और सांस्कृतिक जुड़ाव को दर्शाती है.

महिलाओं की अहम भूमिका

गांव की महिलाओं का योगदान भी कम नहीं है. वे सुबह 4 बजे उठकर दूध दुहने से लेकर पशुओं को चारा देने और उनके लिए भोजन तैयार करने का काम करती हैं. चौकान खेड़ा में पशुपालन सिर्फ व्यवसाय नहीं, बल्कि जीवनशैली बन चुका है.

खेती और पशुपालन का संतुलन

गांव के लोग कहते हैं कि यह काम उनके समाज की पीढ़ियों से चल रही परंपरा है. गांव के आसपास के रूपपुरा, लालपुरा, बावल और मोरवन जैसे गांवों की खेती से चारे की आपूर्ति हो जाती है, जिससे पशुओं का खाना भी घर पर ही तैयार हो जाता है.

Published: 9 Jun, 2025 | 01:44 PM