कलौंजी की खेती का कमाल, कम लागत में ज्यादा मुनाफा पा सकते हैं किसान

कलौंजी एक औषधीय पौधा है जिसकी खेती किसानों के लिए एक लाभदायक विकल्प हो सकती है. इसकी मांग बाजार में हमेशा बनी रहती है और इसका उपयोग आयुर्वेद और यूनानी चिकित्सा में भी किया जाता है.

Kisan India
नोएडा | Updated On: 6 May, 2025 | 01:17 PM

खेती में बदलाव और लाभ की तलाश कर रहे किसानों के लिए काला जीरा यानी कलौंजी की खेती एक बेहतरीन विकल्प बनकर उभर रहा है. अपने औषधीय गुणों और मसाले के तौर पर उपयोग के कारण इसकी मांग बाजार में हमेशा बनी रहती है. यह आयुर्वेद और यूनानी चिकित्सा में भी खास स्थान रखता है, वहीं इसके बीजों और तेल का उपयोग सदियों से कई बीमारियों के इलाज में किया जा रहा है. तो आइए जानते हैं काले जीरे की खेती कैसे की जाती है और किसान इससे कैसे लाभ कमा सकते हैं.

औषधीय गुणों से भरपूर होती कलौंजी

कलौंजी (Nigella sativa) एक सालाना जड़ी-बूटीदार पौधा है जो लगभग 1-2 फीट ऊंचा होता है. इसकी पत्तियां पतली, हरे-भूरे रंग की और पंखुड़ीदार होती हैं. इसके फूल नीले-सफेद रंग के होते हैं और फल गोल आकार की कैप्सूल जैसी संरचना में होते हैं, जिसमें छोटे त्रिकोणीय काले बीज होते हैं. यह पौधा रणुनकुलासी (Ranunculaceae) परिवार का सदस्य माना जाता है और इसका मूल स्थान पश्चिमी एशिया और दक्षिणी यूरोप है. आज के समय में यह भारत के कई हिस्सों में उगाया जा रहा है. कलौंजी के बीजों की खुशबू सौंफ जैसी और स्वाद जायफल जैसा तीखा होता है. इसका उपयोग आयुर्वेद पद्धति में भी दवाइयों के रूप में भी किया जाता है.

कम बारिश में भी कर सकते हैं खेती

कलौंजी ठंडी जलवायु की फसल है. यह उत्तर भारत में सर्दियों के मौसम यानी अक्टूबर-नवंबर के बीच बोई जाती है. शुरुआत में हल्की ठंड और बाद में धूप वाले मौसम में यह अच्छे से बढ़ती है. 12-14°C का तापमान और 400-500 मिमी बारिश इस फसल के लिए बेस्ट माने जाते हैं. यह पौधा जलभराव और पाले के प्रति बहुत संवेदनशील होता है, इसलिए खेत का पानी निकास अच्छा होना जरूरी है. वहीं मिट्टी की बात करें तो दोमट या मध्यम से भारी उपजाऊ मिट्टी, जिसका pH 5.0 से 8.5 के बीच उपयुक्त मानी जाती है.

135 दिनों में हो जाती है तैयार

कलौंजी की खेती बीज या पुराने पौधों की जड़ों से की जाती है, लेकिन आमतौर पर बीज से बोना ज्यादा मुनाफेदार साबित हो सकता है. बीजों के बुवाई का समय मध्य सितंबर से मध्य अक्तूबर का होता है. बीज दर लगभग 5-7 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर होना चाहिए. बीजों को बोने से पहले ट्राइकोडर्मा कल्चर 10 ग्राम/किग्रा बीज से उपचारित करें ताकि मृदा जनित रोगों से बचाव हो सके. इसके साथ ही बीजों की बुवाई के लिए जीरे के बीजों को लाइन विधि से बुवाई कर सकते हैं. यह विधि अधिक उपयुक्त इसलिए रहती है क्योंकि इससे निराई-गुड़ाई आसान होती है.

कलौंजी की बुवाई के लिए इन बातों का रखें ध्यान

किसान ध्यान रखें की बुवाई से पहले 10 टन अच्छी सड़ी गोबर खाद खेत में मिला दें. साथ ही रासायनिक खाद के रूप में 40 किलो नाइट्रोजन, 20 किलो फास्फोरस और 20 किलो पोटाश/हेक्टेयर की जरूरत होती है. बात करें सिंचाई की तो पहली सिंचाई बुवाई के बाद करें फिर फूल और बीज बनने के समय हर 15-25 दिन पर सिंचाई करें. यह फसल 135-150 दिनों में तैयार हो जाती है. जब बीज पूरी तरह से काले और सूखे हो जाएं, तब कटाई करें. देर करने पर बीज झड़ सकते हैं. कटाई के बाद बीजों को मसल कर अलग करें और हवा में सुखाकर स्टोर करें.

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Published: 6 May, 2025 | 01:17 PM

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