गाय-भैंसों की भी होती है गिनती, जानिए कैसे तय होता है दूध-अंडे का पूरा हिसाब

Livestock Census: भारत में हर पांच साल में होती है पशुधन की गिनती, जो देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए अहम है. हर साल दूध, अंडा, मांस और ऊन के उत्पादन के आंकड़े जुटाए जाते हैं, जो सरकार की योजनाओं को दिशा देते हैं.

नोएडा | Updated On: 10 May, 2025 | 09:47 AM

जब भी जनगणना का नाम आता है तो हमारे दिमाग में इंसानों की गिनती का ख्याल आता है. एक-एक आदमी की उम्र, धर्म, लिंग, पेशा, सब कुछ दर्ज होता है. लेकिन जरा ठहरिए, क्या आप जानते हैं कि भारत में सिर्फ इंसानों की नहीं, गाय, भैंस, बकरी, सूअर, मुर्गी, ऊंट, यहां तक कि खरगोश तक की गिनती होती है? जी हां आपने सही सुना. इसे पशुधन संगणना कहा जाता है और ये कोई नया चलन नहीं है. इसकी शुरुआत आज से सौ साल पहले 1919 में हुई थी. तब से अब तक 20 बार देश की जमीन पर बसने वाले हर पालतू पशु और पक्षी की गिनती हो चुकी है.

यह कोई मामूली काम नहीं है. यह देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ का लेखा-जोखा है. एक तरह से गांव की आर्थिक सेहत का स्कैन है. इससे तय होता है कि किस इलाके में गायों के लिए चारा भेजा जाएगा, कहां नस्ल सुधार केंद्र खोले जाएंगे और किस किसान को डेयरी योजना की सब्सिडी मिलेगी. यही नहीं, गिनती की ये कहानी यहीं खत्म नहीं होती, हर साल देश में कितना दूध निकला, कितने अंडे फूटे, कितना मांस और ऊन तैयार हुआ, इसका पूरा लेखा-जोखा भी रखा जाता है और ये काम होता है ‘एकीकृत नमूना सर्वेक्षण’ के जरिए. ये आंकड़े सिर्फ रिपोर्ट नहीं होते, यही तय करते हैं कि भारत दूध के खेल में आज सिरमौर है और कल भी रहेगा या नहीं.

क्या है पशुधन संगणना?

भारत सरकार हर पांच साल में पशुधन संगणना कराती है. इसमें देशभर के हर ग्रामीण और शहरी इलाके में घर-घर जाकर गिनती की जाती है कि कितनी गायें, कितने बैल, कितनी भैंसें, बकरियां, मुर्गियां, सूअर और दूसरे जानवर हैं. यह प्रक्रिया जनगणना जैसी ही होती है. हर पशु की उम्र, लिंग, नस्ल, उत्पादन क्षमता आदि की जानकारी इकट्ठा की जाती है.

पशु गणना के लिए डिजिटल टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल

2019 में हुई 20वीं पशुधन संगणना में पहली बार डिजिटल टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल हुआ. टेबलेट से आंकड़े इकट्ठा किए गए ताकि डेटा जल्दी और सटीक रूप से मिल सके. इससे नीति निर्धारकों को बड़े स्तर पर योजनाएं बनाने में मदद मिलती है.

हर साल होता है दूध, अंडा, मांस और ऊन का सर्वे

पांच साल में एक बार पशुओं की संख्या तो गिनी जाती है, लेकिन दूध, अंडा, मांस और ऊन का उत्पादन हर साल मापा जाता है. इसके लिए ‘एकीकृत नमूना सर्वेक्षण’ होता है. यह सर्वेक्षण केंद्र सरकार की योजना के तहत राज्य सरकारों के माध्यम से लागू किया जाता है. मार्च से फरवरी तक पूरे साल के आंकड़े इकट्ठा किए जाते हैं और उन्हें चार हिस्सों में बांटकर यह देखा जाता है कि मौसम या किसी घटना का उत्पादन पर क्या असर पड़ा.

इन आंकड़ों से यह तय होता है कि भारत में प्रतिवर्ष कितना दूध पैदा हुआ, किस राज्य का योगदान कितना रहा और किस नस्ल के पशु ज्यादा उत्पादक हैं. इससे किसान को नस्ल सुधार, चारा वितरण, वैक्सीनेशन और मार्केटिंग जैसी योजनाओं में सीधा लाभ मिलता है.

क्यों जरूरी है यह गिनती?

भारत विश्व का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है. लेकिन इस आंकड़े के पीछे एक व्यवस्थित और वैज्ञानिक प्रक्रिया होती है. पशुधन संगणना और एकीकृत नमूना सर्वेक्षण मिलकर यह सुनिश्चित करते हैं कि सरकार के पास सटीक डेटा हो, जिससे किसानों को सही योजनाएं मिल सकें, बाजार में आपूर्ति स्थिर रह सके और देश की खाद्य सुरक्षा बनी रहे.

इसके अलावा, इन आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि किस क्षेत्र में कौन-से पशुपालक ज्यादा सफल हैं, किस नस्ल की गाय ज्यादा दूध दे रही है और कहां इंफ्रास्ट्रक्चर या ट्रेनिंग की जरूरत है.

Published: 10 May, 2025 | 08:00 AM