हाईकोर्ट से पंजाब सरकार को झटका, अब किसान हाइब्रिड धान की कर पाएंगे खेती?

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने पंजाब सरकार के उस आदेश को रद्द किया, जिसमें नोटिफाइड हाइब्रिड धान बीजों पर रोक लगाई गई थी. कोर्ट ने कहा कि बीज अधिनियम 1966 के तहत स्वीकृत बीजों पर राज्य सरकार रोक नहीं लगा सकती, जिससे किसानों को राहत मिली है.

नोएडा | Updated On: 19 Aug, 2025 | 11:41 AM

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने पंजाब सरकार के 7 अप्रैल के उस आदेश को रद्द कर दिया है, जिसमें पूरे राज्य में नोटिफाइड हाइब्रिड धान के बीजों पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई थी. कोर्ट ने कहा कि यह आदेश कानूनी मानकों पर खरा नहीं उतरता. कोर्ट ने साफ किया कि भारत सरकार द्वारा बीज अधिनियम 1966 के तहत नोटिफाई किए गए बीजों के इस्तेमाल पर राज्य सरकार रोक नहीं लगा सकती.

द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस कुलदीप तिवारी ने 4 अप्रैल 2019 और 10 अप्रैल 2019 के प्रशासनिक आदेशों को वैध माना, जिनमें केवल नॉन-नोटिफाइड हाइब्रिड बीजों पर प्रतिबंध लगाया गया था, जबकि नोटिफाइड बीजों की अनुमति दी गई थी. हाईकोर्ट की बेंच ने कहा कि 7 अप्रैल का प्रशासनिक आदेश, जिसमें नोटिफाइड हाइब्रिड धान के बीजों के इस्तेमाल पर रोक लगाई गई थी, कानूनी तौर पर सही नहीं था. इसलिए कोर्ट ने इस आदेश को रद्द कर दिया है.

क्या किसान कर सकते हैं हाइब्रिड बीज का इस्तेमाल

यह फैसला किसानों के लिए अहम है, क्योंकि अब वे बीज अधिनियम 1966 के तहत मंजूरशुदा हाइब्रिड धान बीज का इस्तेमाल कर सकते हैं. हालांकि राज्य सरकार को अब भी नॉन-नोटिफाइड बीजों पर रोक लगाने का अधिकार रहेगा. 59 पन्नों के अपने फैसले में जस्टिस कुलदीप तिवारी ने कहा कि राज्य सरकार के पास ऐसे बीजों पर रोक लगाने का कोई अधिकार नहीं है जो बीज अधिनियम, 1966 की धारा 5 के तहत कानूनी रूप से वैध हैं.

यह मामला जस्टिस तिवारी की बेंच के सामने उस समय आया जब पंजाब कृषि विभाग के प्रशासनिक आदेशों को लेकर सामूहिक चुनौती दी गई. शुरुआत में विभाग ने PUSA-44 और सभी तरह के हाइब्रिड धान के बीजों, चाहे नोटिफाइड हों या नॉन-नोटिफाइड पर पूरी तरह रोक लगा दी थी. हालांकि, 10 अप्रैल 2019 के संशोधन आदेश में आंशिक राहत दी गई और पंजाब के लिए स्वीकृत नोटिफाइड बीजों की अनुमति दे दी गई.

याचिकाकर्ता ने कोर्ट में क्या दिया था तर्क

याचिकाकर्ता कंपनियों और प्रभावित किसानों की ओर से पेश वरिष्ठ वकील मुनीषा गांधी और गुरमिंदर सिंह ने तर्क दिया कि राज्य सरकार के पास इतना व्यापक प्रतिबंध लगाने का कानूनी अधिकार नहीं है. उनका कहना था कि बीजों से जुड़ा विषय संविधान की समवर्ती सूची में आता है, जिस पर संसद को कानून बनाने का अधिकार है. भारत सरकार ने भी पंजाब सरकार के इस blanket ban (पूर्ण प्रतिबंध) का विरोध किया. एडीशनल सॉलिसिटर जनरल सत्य पाल जैन के जरिए दाखिल जवाब में केंद्र ने कहा कि बीज अधिनियम, 1966 किसी भी प्राधिकरण को बीजों की आवाजाही रोकने या अनुमति देने का अधिकार नहीं देता, क्योंकि यह विषय राज्यों के बीच व्यापार से जुड़ा है, जो संविधान के अनुच्छेद 301 के तहत संरक्षित है.

2002 की राष्ट्रीय बीज नीति

केंद्र ने यह भी बताया कि भारत सरकार धान, मक्का और कपास जैसी फसलों में हाइब्रिड बीजों के विकास को बढ़ावा दे रही है, ताकि उत्पादकता और किसानों की आमदनी में सुधार हो सके. इसके लिए 2002 की राष्ट्रीय बीज नीति समेत कई नीतियां लागू की गई हैं.

Published: 19 Aug, 2025 | 11:39 AM