ओडिशा की होममेकर ने हाइड्रोपोनिक्स से केसर खेती कर कमाया 32 लाख रुपये

ओडिशा की सुझाता अग्रवाल ने हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से केसर की खेती शुरू की और आज वे सालाना 32 लाख रुपये कमा रही हैं. उन्होंने अपने छोटे से बगीचे से लेकर बड़े पैमाने पर खेती करने तक का सफर तय किया है.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 26 Jul, 2025 | 06:45 AM

हम अक्सर लोगों को ये कहते सुना हैं कि खेती के लिए जमीन और मिट्टी का होना बेहद जरूरी है, लेकिन नई तकनीकों ने इस सोच को बदल दिया है. हाइड्रोपोनिक्स खेती यानी बिना मिट्टी के पौधे उगाने की तकनीक अब भारत में भी तेजी से लोकप्रिय हो रही है. इसे बीच आज हम आपके लिए ओडिशा के झारसुगुड़ा जिला की होममेकर के एक छोटा सा शौक ने पूरी जिंदगी बदल दी. फूलों से प्यार करने वाली एक साधारण गृहिणी सुजाता अग्रवाल ने अपनी छत पर लगे छोटे से बगीचे से लेकर लाखों की खेती करने तक का सफर तय किया हैं. उन्होंने पहले इस तकनीक में सफलता हासिल की और अब केसर की खेती करके सालाना 32 लाख रुपये तक की कमाई कर रही हैं.

उनका सफर आसान नहीं था, लेकिन जुनून और मेहनत के दम पर उन्होंने हाइड्रोपोनिक्स और माइक्रोग्रीन्स खेती में अपना नाम बनाया. शुरुआत में उन्होंने इसे एक शौक के रूप में लिया, लेकिन जल्द ही यह उनका एक सफल बिजनेस के रूप में उभड़ रहा है. आज उनकी कहानी कई महिलाओं और किसानों के लिए प्रेरणा बन चुकी है.

कैसे शुरू हुई बागवानी से खेती तक की सफर?

सुजाता अग्रवाल को बचपन से ही फूलों से बहुत लगाव था. यह शौक उन्होंने अपनी मां से विरासत में मिली थी. वे बचपन से ही अपने घर के बगीचे में घंटों बिताती थीं और फूलों की देखभाल किया करती थी.  शादी के बाद भी उनका बागवानी से लगाव कम नहीं हुआ. अपने पति पवन कुमार अग्रवाल के साथ झारसुगुड़ा शिफ्ट होने के बाद भी उन्होंने अपनी छत पर एक सुंदर सा गार्डन बनाया.

उनका यह गार्डन केवल सजावटी नहीं था, बल्कि इसमें 250 से भी ज्यादा किस्मों के गुलाब, गेंदा, गेरबेरा और गुड़हल के फूल लगे हुए थे. धीरे-धीरे उन्होंने इस बागवानी को और विस्तार देना शुरू किया और नए पौधों की खोज में लगी रहीं.

कैसे मिली हाइड्रोपोनिक्स की जानकारी?

साल 2020 में जब कोरोना महामारी के कारण देशभर में लॉकडाउन लग गया, तो सुजाता काफी समय मिला. पहले वे बच्चों को अबैकस, ओडिशी नृत्य और चित्रकला (abacus, Odissi dance, and drawing) सिखाती थीं, लेकिन लॉकडाउन में सभी क्लासेस बंद हो गईं.

इसी दौरान उन्होंने इंटरनेट पर एक नई खेती तकनीक हाइड्रोपोनिक्स के बारे में पढ़ा. फिर उन्होंने सोच की क्यों न इस तकनीक को बड़े पैमाने पर आजमाया जाए है.  फिर उन्होंने इंटरनेट और यूट्यूब के माध्यम से इस तकनीक को सीखा और अपने गार्डन में छोटे पैमाने पर हाइड्रोपोनिक्स खेती शुरू की.

कितने ट्रियल्स में मिली सफलता ?

कुछ महीनों की मेहनत के बाद  सुजाता को हाइड्रोपोनिक्स तकनीक में सफलता मिलनी शुरू हुई. उन्होंने माइक्रोग्रीन्स (जैसे धनिया, तुलसी, पालक, सरसों और मूली के छोटे पौधे) उगाने शुरू किए. इन पौधों की बाजार में काफी मांग थी और धीरे-धीरे उनका व्यवसाय बढ़ने लगा.

इस खेती से उन्हें अच्छा मुनाफा हुआ और उन्होंने इसे और भी अधिक  बड़े पैमाने पर अपनाने का फैसला किया.

केसर की खेती का अनोखा प्रयोग

भारत में केसर की खेती मुख्य रूप से कश्मीर में होती है, क्योंकि वहां का ठंडा मौसम इसके लिए अनुकूल होता है. लेकिन सुजाता ने सोचा कि अगर हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से कम तापमान को बनाए रखा जाए, तो वे भी केसर उगा सकती हैं.

इसपर उन्होंने कई रिसर्च किए और विशेषज्ञों से सलाह के बाद ग्रीनहाउस में हाइड्रोपोनिक्स के जरिए केसर उगाने का फैसला किया. इसके लिए उन्होंने खासतौर पर ठंडा तापमान बनाए रखने वाली तकनीक अपनाई उनकी यह मेहनत रंग लाने लगी. ग्रीनहाउस में उगाए गए केसर को धीरे-धीरे बाजार में बेचना शुरू किया और इसकी अच्छी क्वालिटी होने के कारण इसकी मांग बढ़ने लगी.

बेटर इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार आज के समय में सुजाता हर साल करीब लाखों रुपये की कमाई कर रही हैं. उनकी इस सफलता की चर्चा अब पूरे ओडिशा में हो रही है और कई लोग उनसे हाइड्रोपोनिक्स और केसर की खेती के बारे में सीखने के लिए संपर्क कर रहे हैं.

क्या है हाइड्रोपोनिक्स खेती?

हाइड्रोपोनिक्स खेती की एक नई तकनीक है जिसमें पौधों को मिट्टी के बिना, सिर्फ पानी और पोषक तत्वों की मदद से उगाया जाता है.  इसमें पौधों की जड़ें पानी में डूबी होती हैं, जिससे उन्हें सीधे आवश्यक पोषक तत्व मिलते हैं.

कैसे काम करता है हाइड्रोपोनिक्स?

इस प्रणाली में पौधों को पानी, पोषक तत्व और ऑक्सीजन सही मात्रा में दिए जाते हैं. आमतौर पर, पौधे अपनी जड़ों से मिट्टी से पोषण लेते हैं, लेकिन हाइड्रोपोनिक्स में उन्हें पानी में घुले हुए पोषक तत्वों से सीधा पोषण मिलता है.

क्या है माइक्रोग्रीन्स खेती?

माइक्रोग्रीन्स छोटे, कोमल और पोषक तत्वों से भरपूर पौधे होते हैं, जो अंकुरित होने के 7-15 दिनों के भीतर खाए जाते हैं. ये साधारण सब्जियों और फसलों के छोटे-छोटे पौधे होते हैं.

हाइड्रोपोनिक्स और माइक्रोग्रीन्स खेती के फायदे

  • कम जगह में ज्यादा पैदावार
  • हाइड्रोपोनिक्स और माइक्रोग्रीन्स खेती बहुत कम जगह में की जा सकती है. इसे छत, बालकनी, या घर के अंदर भी किया जा सकता है.
  • कम पानी की जरूरत
  • सामान्य खेती में बहुत ज्यादा पानी की जरूरत होती है, लेकिन हाइड्रोपोनिक्स खेती में 80-90% तक कम पानी खर्च होता है.
  • तेज़ी से बढ़ने वाले पौधे
  • हाइड्रोपोनिक्स में पौधों को सीधा पोषण मिलता है, इसलिए वे जल्दी और स्वस्थ तरीके से बढ़ते हैं. माइक्रोग्रीन्स भी सिर्फ 7-15 दिनों में तैयार हो जाते हैं.
  • मिट्टी की जरूरत नहीं
  • हाइड्रोपोनिक्स खेती के लिए मिट्टी की जरूरत नहीं होती, इसलिए यह उन जगहों पर भी की जा सकती है जहां खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी नहीं है.
  • पोषण से भरपूर और सेहतमंद
  • माइक्रोग्रीन्स और हाइड्रोपोनिक्स से उगाई गई सब्जियां सामान्य सब्जियों से ज्यादा पोषक तत्वों से भरपूर होती हैं. यह डायबिटीज, हृदय रोग और हाई ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियों से बचाने में मदद करती हैं.
  • कीटनाशकों और रसायनों से मुक्त
  • इस विधि में किसी भी तरह के हानिकारक कीटनाशकों का उपयोग नहीं किया जाता, जिससे यह पूर्ण रूप से जैविक (ऑर्गेनिक) खेती बन जाती है.
  • आय का अच्छा साधन
  • माइक्रोग्रीन्स और हाइड्रोपोनिक्स से उगाई गई फसलें बाजार में महंगे दामों पर बिकती हैं. इससे किसान और शहरी लोग अच्छी कमाई कर सकते हैं.

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Published: 26 Jul, 2025 | 06:45 AM
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