
पशु के हीट में न आने के पीछे पोषण की कमी, कमजोर शरीर, गलत खान-पान, प्रसव के बाद ठीक से देखभाल न होना और हार्मोनल असंतुलन जैसी कई वजहें होती हैं. यदि इनको समय पर ठीक न किया जाए, तो पशु कई-कई महीनों तक हीट में नहीं आता.

कई बार पशु हीट में आ तो जाता है, लेकिन उसके लक्षण इतने हल्के होते हैं कि किसान ध्यान ही नहीं दे पाते. हल्की बेचैनी, थोड़ा ज्यादा एक्टिव होना या हल्का मूवमेंट भी महत्वपूर्ण संकेत हो सकते हैं, जिन्हें अनदेखा करने से गर्भधारण में देरी होती है.

पारंपरिक रूप से बाजरा, भूसी, खली, मसूर, अरहर और चूनी जैसे गर्म तासीर वाले दाने पशु को हीट में लाने में बहुत कारगर माने जाते हैं. इनमें से सरसों की खली सबसे ज्यादा असरदार होती है, क्योंकि यह शरीर में गर्मी बढ़ाकर हार्मोनल क्रियाओं को सक्रिय करती है.

आधा किलो फर्मेंटेड चावल को एक लीटर पानी में मिलाकर पिलाने से पशु के शरीर में गर्मी और ऊर्जा बढ़ती है. यह नुस्खा इतना प्रभावी माना जाता है कि अधिकतर मामलों में 5–7 दिनों के भीतर पशु हीट में आ जाता है.

प्रजना और जनोवा जैसी दवाइयां पशु के हार्मोन को संतुलित करके हीट साइकिल को वापस नियमित करने में मदद करती हैं. लेकिन इन्हें हमेशा वेटरनरी डॉक्टर की सलाह से ही देना चाहिए, ताकि कोई साइड इफेक्ट न हो और पशु सुरक्षित रहे.

हीट में आए पशु बार-बार आवाज करते हैं, बेचैनी दिखाते हैं, टहलते रहते हैं और कई बार सामान्य से ज्यादा पेशाब करते हैं. दूध उत्पादन में थोड़ी गिरावट भी इसका संकेत है. यदि किसान इन लक्षणों को जल्दी पहचान लें, तो समय पर प्रेगनेंसी करवाकर उत्पादन बढ़ाया जा सकता है.