देवघर का श्रावणी मेला विश्व का एकमात्र ऐसा धार्मिक मेला है, जो पूरे एक महीने तक चलता है. सावन के महीने में यहां लाखों श्रद्धालु “बोल बम” के जयकारे के साथ 105 किलोमीटर की पैदल यात्रा करते हैं और बाबा वैद्यनाथ को गंगाजल अर्पित करते हैं.
देवघर को 'हार्द्रपीठ' और 'चिता-भूमि' भी कहा जाता है क्योंकि यह वही स्थान है जहां माता सती का हृदय गिरा था. यही कारण है कि यह स्थान एक साथ शक्तिपीठ और ज्योतिर्लिंग दोनों का स्वरूप धारण करता है जो भारत में दुर्लभ है.
मान्यता है कि त्रेता युग में भगवान श्रीराम ने ही सबसे पहले सुलतानगंज से जल लेकर कांवर यात्रा की शुरुआत की थी. उन्होंने इस जल को बाबा बैद्यनाथ के शिवलिंग पर अर्पित किया था. यह परंपरा आज भी करोड़ों भक्तों द्वारा निभाई जाती है.
बाबा बैद्यनाथ की श्रृंगार पूजा अत्यंत भव्य होती है. खास बात यह है कि ब्रिटिश काल से देवघर जेल के कैदी, फूलों की विशेष माला और राजसिंहासन बनाकर मंदिर भेजते हैं. यह परंपरा आज भी जारी है और इस श्रृंगार को देखने लाखों श्रद्धालु रात्रि में जुटते हैं.
पौराणिक मान्यता है कि बाबा वैद्यनाथ ऐसे देव हैं जो बिना पाप-पुण्य का विचार किए अपने भक्तों को मोक्ष प्रदान करते हैं. महर्षि नारद ने भी हनुमान को इस धाम की महत्ता बताते हुए कहा था कि यही स्थान सभी प्राणियों के उद्धार का माध्यम है.
देवघर का उल्लेख स्कंद पुराण, पद्म पुराण, शिव पुराण, यहां तक कि आनंद रामायण में भी मिलता है. इसके साथ ही ऐसा माना जाता है कि उन भक्तों को अश्वमेध यज्ञ के समान पुण्य मिलता है जो कांवर लेकर बोलबम का उच्चारण करते हुए यहां आते हैं.