हिमाचल की पहाड़ियों में अब सिर्फ सेब, अमरूद या सब्जियों की खेती नहीं होगी, बल्कि एक नई और अनोखे लाख कीट पालन को बढ़ावा दिया जा रहा है. लाख यानी “लाक्षा” एक ऐसा कीट जो पेड़ों की टहनियों पर चिपककर प्राकृतिक रेजिन (गोंद जैसा पदार्थ) बनाता है, जिससे गोंद, पॉलिश, स्याही और सौंदर्य प्रसाधन जैसे कई कीमती उत्पाद बनाए जाते हैं.
अमर उजाला की खबर के अनुसार, हमीरपुर जिले के राजकीय उद्यानिकी एवं वानिकी महाविद्यालय नेरी के वैज्ञानिकों ने पहली बार हिमाचल की मिट्टी में लाख कीटों को सफलतापूर्वक पनपाकर इतिहास रच दिया है. अब प्रदेश के किसान भी इससे अच्छी आमदनी कमा सकेंगे.
कैसे मिली सफलता?
नेरी कॉलेज के कीट विज्ञान विभाग ने शेर-ए-कश्मीर कृषि विश्वविद्यालय, जम्मू से लाख कीट मंगवाकर उनका पालन हिमाचल के पारंपरिक खैर पेड़ों की टहनियों पर किया और प्रयोग सफल रहा. वैज्ञानिकों ने देखा कि हिमाचल की जलवायु इस कीट के लिए बिलकुल अनुकूल है.
कीट विज्ञान विभाग के प्रमुख डॉ. वीरेंद्र राणा ने बताया कि बीएससी अंतिम वर्ष के छात्रों को भी इस नई तकनीक में प्रशिक्षण दिया गया है ताकि आने वाली पीढ़ी इससे जुड़ सके.
लाख से बनते हैं कौन-कौन से उत्पाद?
- लकड़ी की पॉलिश
- इलेक्ट्रीक इंसुलेटर
- ब्यूटी प्रोडक्ट्स
- स्याही
- लुब्रिकेंट
- दवाओं की कोटिंग
सबसे बड़ी बात यह है कि लाख की अंतरराष्ट्रीय मांग भी जबरदस्त है. भारत से उत्पादित लाख का लगभग 30% हिस्सा अमेरिका और जर्मनी को निर्यात होता है. इसकी बाजार में कीमत करीब 1,500 रुपये प्रति किलोग्राम है.
किन पेड़ों पर होता है पालन?
लाख कीट को खासकर खैर, पीपल और बेर के पेड़ पसंद हैं. ये कीट पेड़ों की टहनियों पर चिपककर पोषण लेते हैं और वहीं लाख जमा करते हैं. टहनियों को बाद में स्क्रैप कर लाख निकाली जाती है. इस प्रक्रिया के लिए लगभग 25 डिग्री सेल्सियस तापमान सबसे उपयुक्त माना जाता है.
पीले कीट की ज्यादा कीमत
लाख कीट मुख्य रूप से दो रंगों के होते हैं लाल और पीले. पीले रंग वाले कीट ज्यादा कीमती माने जाते हैं. मादा कीट लाख बनाती है, जबकि नर कीट केवल प्रजनन का कार्य करते हैं. यह पूरी प्रक्रिया प्राकृतिक और पर्यावरण के अनुकूल है.
किसानों के लिए नया अवसर
इस सफलता के बाद अब लाख उत्पादन का विस्तार हिमाचल के अन्य हिस्सों में भी किया जाएगा. पहले चरण में किसानों को प्रशिक्षण दिया जाएगा, फिर उत्पादन के लिए संसाधन उपलब्ध कराए जाएंगे. संभावना है कि एक साल के भीतर किसान इस नई खेती से जुड़ सकेंगे और अच्छी आमदनी कमा पाएंगे. इससे हिमाचल की ग्रामीण आर्थिकी को नई दिशा मिलेगी.