आटे के निर्यात पर पाबंदी हटाने के मूड में है सरकार, गेहूं पर रोक अब भी बरकरार

रूस और यूक्रेन जैसे देशों के युद्ध के कारण जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में आपूर्ति प्रभावित हुई, तो भारत को भी कीमतों में उछाल का डर सता रहा था. ऐसे में गेहूं और इससे बने उत्पाद जैसे आटा, मैदा और सूजी के निर्यात पर रोक लगा दी गई.

Kisan India
नई दिल्ली | Updated On: 16 Jul, 2025 | 11:56 AM

भारत में जब भी खाने-पीने की चीजों के दाम बढ़ते हैं, सरकार का सबसे पहला कदम होता है निर्यात पर रोक. मई 2022 में भी कुछ ऐसा ही हुआ. रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं के दाम बढ़े, तो भारत सरकार ने गेहूं का निर्यात रोक दिया. इसके कुछ महीनों बाद अगस्त 2022 में आटे के निर्यात पर भी बैन लगा दिया गया. लेकिन अब जब देश में उत्पादन अच्छा हो रहा है, तब सरकार गेहूं पर नहीं बल्कि आटे पर से पाबंदी हटाने को लेकर ज्यादा गंभीर दिख रही है.

गेहूं पर बैन क्यों?

मनी कंट्रोल की खबर के अनुसार,  सरकार ने गेहूं के निर्यात पर बैन इसलिए लगाया था ताकि घरेलू बाजार में दाम न बढ़ें और गरीबों को सस्ती दर पर अनाज मिलता रहे. गेहूं एक अहम खाद्य फसल है और इससे देश की खाद्य सुरक्षा जुड़ी हुई है. रूस और यूक्रेन जैसे देशों के युद्ध के कारण जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में आपूर्ति प्रभावित हुई, तो भारत को भी कीमतों में उछाल का डर सता रहा था. ऐसे में गेहूं और इससे बने उत्पाद जैसे आटा, मैदा और सूजी के निर्यात पर रोक लगा दी गई.

अब क्या बदल रहा है?

अब सरकार गेहूं के बजाय आटे के निर्यात पर लगी रोक को हटाने की तैयारी कर रही है. एक सरकारी अधिकारी के अनुसार, “हमारी गेहूं की स्थिति चावल जैसी नहीं है कि हम भारी मात्रा में निर्यात कर सकें, लेकिन इससे बने उत्पाद जैसे आटे का निर्यात ज्यादा व्यवहारिक और फायदेमंद हो सकता है.”

क्यों आटे पर फोकस कर रही है सरकार?

दरअसल, आटे का निर्यात एक तरह से गेहूं के मुकाबले कम जोखिम भरा होता है. आटा बनाकर भेजने से देश के किसान, मिलर्स और प्रोसेसिंग इंडस्ट्री को भी फायदा मिलता है. साथ ही, यह ज्यादा वैल्यू-एडेड प्रोडक्ट होता है, जिससे विदेशी मुद्रा भी अच्छी मिलती है.

इस साल गेहूं की खरीद बढ़ी है

2024-25 के रबी सीजन में अब तक सरकार ने 29.92 मिलियन मीट्रिक टन गेहूं की खरीद कर ली है, जबकि लक्ष्य 31 MMT का था. यह पिछले तीन वर्षों में सबसे ज्यादा खरीद है. इससे यह साफ है कि गेहूं की उपलब्धता सुधरी है और किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) का फायदा मिल रहा है.

गोडाउन में भरपूर स्टॉक

इस साल जून तक भारत के पास 36.93 मिलियन मीट्रिक टन गेहूं का स्टॉक था, जो पिछले साल की तुलना में काफी ज्यादा है (2023 में यह स्टॉक 29.91 MMT था). इसके अलावा, कृषि मंत्रालय ने यह अनुमान भी लगाया है कि जुलाई 2024 से जून 2025 तक भारत रिकॉर्ड 117.5 मिलियन टन गेहूं पैदा कर सकता है.

फिर भी गेहूं का निर्यात नहीं होगा?

हां, फिलहाल सरकार गेहूं के निर्यात की इजाजत देने के मूड में नहीं है. भले ही स्टॉक अच्छा हो और उत्पादन भी बढ़ रहा हो, लेकिन कीमतों में उछाल और खाद्य सुरक्षा को देखते हुए सरकार कोई जोखिम नहीं उठाना चाहती.

वर्तमान हालात

2025 की शुरुआत से अब तक भारत ने गेहूं केवल खास देशों जैसे नेपाल, इराक और यूएई को सीमित मात्रा में ही भेजा है. ये निर्यात भी विशेष अनुमति के तहत हुए हैं. FY25 में अब तक भारत ने केवल 2.03 मिलियन डॉलर का गेहूं निर्यात किया है, जबकि 2021-22 में यह आंकड़ा 2.12 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया था.

आटे से जुड़े उत्पादों की बात करें तो इस साल इनका निर्यात 191.83 मिलियन डॉलर रहा है, जबकि बैन से पहले यानी 2021-22 में यह 310.54 मिलियन डॉलर था.

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Published: 16 Jul, 2025 | 09:08 AM

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