मवेशियों के लिए बहुत घातक है यह बीमारी, धीरे-धीरे देती है मौत.. एक गलती के कारण होता है रोग

टिक फीवर यानी बबेसिओसिस एक गंभीर बीमारी है जो गाय-भैंसों में चिचड़ी के जरिए फैलती है. इतना ही नहीं अगर समय पर उपचार न किया गया तो ये बीमारी धीरे-धीरे जानवर की जान ले सकती है, इसलिए लक्षण पहचानकर तुरंत इलाज कराना जरूरी है.

धीरज पांडेय
नोएडा | Updated On: 16 Jul, 2025 | 12:28 PM

गाय-भैंस को मजबूत और दूध देने लायक बनाए रखने के लिए सिर्फ चारा-पानी ही काफी नहीं, बल्कि सावधानी भी जरूरी है. खासकर गर्मी और बरसात के मौसम में एक ऐसी बीमारी जानवरों पर हमला करती है जो न तो शोर मचाती है, न ही तुरंत पकड़ में आती है. लेकिन धीरे-धीरे जानवर को अंदर से कमजोर कर देती है. इस बीमारी का नाम है बबेसिओसिस या टिक फीवर, जो चिचड़ी (Ticks) के काटने से फैलती है. इतना ही नहीं अगर इसका इलाज देर से हुआ तो पशु की जान भी जा सकती है. ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि टिक फीवर (बबेसिओसिस) क्या है, कैसे फैलता है. साथ ही इसके लक्षण क्या हैं और बचाव कैसे किया जाए?

कैसे फैलती है बबेसिओसिस?

टिक फीवर (बबेसिओसिस) एक खतरनाक बीमारी  है जो चिचड़ी के काटने से होती है. चिचड़ी के जरिए बबेसिया नाम के सूक्ष्म जीव जानवर के खून में पहुंचते हैं और उसकी लाल रक्त कोशिकाओं को नष्ट करने लगते हैं. इससे होता यह है कि जानवर के शरीर में खून की कमी हो जाती है. यह बीमारी खासकर वहां ज्यादा फैलती है, जहां साफ-सफाई कम होती है और जानवरों पर चिचड़ियों का हमला ज्यादा होता है. इतना ही नहीं समय पर इलाज न हो तो जान का खतरा भी हो सकता है.

ऐसे पहचानें इस बिमारी के लक्षण

हिमाचल प्रदेश के पशुपालन विभाग के मुताबिक, इस बीमारी की सबसे पहली और प्रमुख पहचान है कॉफी रंग का पेशाब. इस बिमारी के दौरान होता यह है कि जब लाल रक्त कोशिकाएं टूटती हैं तो उसमें मौजूद हीमोग्लोबिन पेशाब के जरिए बाहर निकलने लगता है. इसके अलावा पशु में थकावट, कमजोरी, भूख न लगना और कभी-कभी खून वाले दस्त भी हो सकते हैं. वहीं, बीमारी बढ़ने पर आंखों और त्वचा में पीलिया के लक्षण भी दिखते हैं. अगर समय पर इलाज न किया जाए तो पशु की मौत तक हो सकती है.

टिक फीवर का इलाज और इस्तेमाल होने वाली दवाएं

अगर समय रहते पशु चिकित्सक को दिखाया जाए तो टिक फीवर का इलाज संभव है. इसके लिए सबसे प्रभावी दवा है बिरेनिल का टीका, जो पशु के वजन के अनुसार मांस में दिया जाता है. इसके साथ ही खून बढ़ाने वाली दवाओं का भी इस्तेमाल किया जाता है ताकि पशु की हालत जल्दी सुधरे. ध्यान रखें कि बीमारी का संदेह होते ही इलाज शुरू करना जरूरी है.

रोकथाम और बचाव के लिए करें ये जरूरी काम

इस बीमारी से बचने के लिए  सबसे जरूरी है चिचड़ी से बचाव. इसके लिए पशुशालाओं की साफ-सफाई करें, जानवरों को समय-समय पर एंटी-पैरासाइट दवा दें और टिक रिमूवल स्प्रे का उपयोग करें. वहीं, बारिश के मौसम में खास सतर्क रहें क्योंकि नमी में चिचड़ियों की संख्या तेजी से बढ़ती है. इतना ही नहीं इस रोग से बचने के लिए चारे और पानी की जगहों को भी साफ और सूखा रखें.

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Published: 16 Jul, 2025 | 12:28 PM

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