गांव में कुत्ता काट ले तो लोग हल्दी-तेल लगाकर भूल जाते हैं. खेत में गीदड़ दौड़ा ले तो लोग हंसते हैं और बात आई-गई कर देते हैं. लेकिन कई बार यही एक काट जिंदगी की आखिरी दस्तक बन जाती है. हम बात कर रहे हैं रेबीज की. एक ऐसी जानलेवा बीमारी, जो धीरे-धीरे शरीर की नसों के जरिए दिमाग तक पहुंचती है और फिर मौत सुनिश्चित कर देती है. यह बीमारी आम तौर पर कुत्ता, बिल्ली, बंदर, गीदड़, नेवला और लोमड़ी जैसे जानवरों के काटने या उनकी लार के संपर्क में आने से फैलती है. इतना ही नहीं यह बीमारी इंसानों और पशुओं, दोनों को चुपचाप निगल लेती है.
रेबीज का सबसे खतरनाक पहलू यह है कि इसके लक्षण दिखने के बाद कोई इलाज काम नहीं आता. इसलिए इससे बचाव का एकमात्र तरीका है जागरूकता, सतर्कता और समय पर इलाज. अगर आपके घर या गांव में पशुपालन होता है तो यह जानकारी आपकी और आपके पशुओं की जान बचा सकती है.
कैसे फैलती है यह बिमारी
रेबीज एक विषाणु जनित बीमारी है, जो संक्रमित जानवरों की लार के संपर्क में आने से फैलती है. हिमाचल सरकार के पशुपालन विभाग के मुताबिक, जब कोई कुत्ता या जानवर किसी इंसान या पशु को काटता है तो उसकी लार में मौजूद वायरस शरीर के भीतर घाव से प्रवेश करता है. इसके बाद वह नसों के रास्ते दिमाग तक पहुंचता है. यहां तक कि अगर किसी संक्रमित जानवर की लार पहले से मौजूद किसी कटे या खुले घाव पर लग जाए तो भी यह वायरस असर दिखा सकता है.
इतना ही नहीं यह बीमारी पशु से पशु और पशु से इंसान दोनों में फैल सकती है. इसीलिए इसे जन स्वास्थ्य की दृष्टि से भी बेहद गंभीर माना जाता है.
ऐसे पहचानें लक्षण
रेबीज एक खतरनाक बीमारी है, जिसके लक्षण तुरंत नहीं दिखते. यह वायरस जानवर के शरीर में 10 से 210 दिन तक छिपा रह सकता है. अगर काटने का घाव सिर, गर्दन या चेहरे पर हो तो लक्षण 7 दिन में भी नजर आने लगते हैं. इस बीमारी में जानवर दो तरह से व्यवहार करता है. एक में वह बहुत हिंसक हो जाता है. इधर-उधर दौड़ता है, दीवार से सिर मारता है, आवाज बदल जाती है और फिर लकवा मार जाता है.
दूसरे में वह बहुत शांत रहता है, लेकिन अंदर ही अंदर बीमारी बढ़ती जाती है. गाय और भैंस तेज रंभाने, सिर मारने और भागने लगती हैं. वहीं, इंसानों में गला सूखना, पानी पीने में तकलीफ, बेचैनी और लकवा इसके लक्षण हैं.
बचाव का सबसे असरदार उपाय
रेबीज से बचने का एकमात्र तरीका है समय पर टीका लगवाना. जैसे ही किसी जानवर ने काटा, तुरंत नजदीकी पशु अस्पताल या डॉक्टर से संपर्क करें और रेबीज रोधी टीका लगवाएं. ध्यान रहे यह टीका तभी असर करता है जब वायरस मस्तिष्क तक नहीं पहुंचा हो. देर करने का मतलब जान गंवाने का जोखिम है. पालतू जानवरों को समय-समय पर रेबीज का टीका जरूर लगवाएं. साथ ही, बीमार या हिंसक व्यवहार करने वाले जानवरों को तुरंत अलग करें और पशु चिकित्सा की मदद लें.
ये गलती न करें नहीं तो जा सकती है जान
गांवों में अक्सर देखा गया है कि लोग काटने की घटना को मामूली समझकर देसी इलाज में भरोसा करते हैं. कभी हल्दी, कभी तेल, कभी झाड़-फूंक, लेकिन रेबीज इन सब बातों से नहीं रुकती. यह बीमारी धीरे-धीरे नसों के जरिए शरीर को खत्म कर देती है और जब तक आप कुछ समझ पाएं, तब तक इलाज की कोई गुंजाइश नहीं बचती.