ट्रैक्टर खरीदें या किराए पर लें? किसानों की सबसे बड़ी दुविधा का आसान जवाब

जुताई से लेकर बुवाई, कटाई और ढुलाई तक लगभग हर काम ट्रैक्टर पर निर्भर हो गया है. लेकिन यहीं आकर ज्यादातर किसानों के सामने एक बड़ा सवाल खड़ा हो जाता है, क्या खुद का ट्रैक्टर खरीदा जाए या जरूरत पड़ने पर किराए पर लिया जाए?

नई दिल्ली | Published: 25 Dec, 2025 | 02:12 PM

Tractor rental vs ownership: भारत में खेती केवल काम नहीं, बल्कि जीवन की रीढ़ है. खेत, फसल और मेहनत इन सबके बीच ट्रैक्टर आज के समय में खेती का सबसे अहम साथी बन चुका है. जुताई से लेकर बुवाई, कटाई और ढुलाई तक लगभग हर काम ट्रैक्टर पर निर्भर हो गया है. लेकिन यहीं आकर ज्यादातर किसानों के सामने एक बड़ा सवाल खड़ा हो जाता है, क्या खुद का ट्रैक्टर खरीदा जाए या जरूरत पड़ने पर किराए पर लिया जाए? यह फैसला सीधा नहीं होता, क्योंकि इसमें जमीन का रकबा, आमदनी, खर्च और भविष्य की योजना सब कुछ जुड़ा होता है.

खेती आधुनिक हुई, खर्च भी बढ़ा

पिछले कुछ वर्षों में खेती में मशीनों का इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है. जहां पहले बैल और परंपरागत औजारों से काम चलता था, वहीं अब समय और मेहनत बचाने के लिए ट्रैक्टर जरूरी हो गया है. लेकिन आधुनिकता के साथ लागत भी बढ़ी है. ट्रैक्टर की कीमत लाखों रुपये में पहुंच चुकी है, जिसे खरीदना हर किसान के लिए आसान नहीं है. ऐसे में किसान सोचता है कि क्या यह निवेश सही रहेगा या किराए पर काम चलाना ज्यादा समझदारी होगी.

खुद का ट्रैक्टर होने का सुकून

जिन किसानों के पास ज्यादा जमीन है और साल में दो या उससे अधिक फसलें लेते हैं, उनके लिए खुद का ट्रैक्टर एक बड़ी सुविधा बन जाता है. खेत की जुताई समय पर हो जाती है, बुवाई में देरी नहीं होती और कटाई के वक्त किसी का इंतजार नहीं करना पड़ता. सीजन के समय जब ट्रैक्टर की मांग बहुत बढ़ जाती है, तब खुद का ट्रैक्टर होना सबसे बड़ी ताकत साबित होता है. इसके अलावा, जब ट्रैक्टर खाली होता है, तो दूसरे किसानों के खेत में काम करके अतिरिक्त आमदनी भी की जा सकती है. इस तरह ट्रैक्टर केवल खर्च नहीं, बल्कि कमाई का जरिया भी बन जाता है.

खरीद के साथ आती हैं चुनौतियां

हालांकि ट्रैक्टर खरीदना जितना अच्छा लगता है, उतनी ही जिम्मेदारियां भी साथ लाता है. सबसे बड़ी चुनौती इसकी कीमत है. इसके अलावा डीजल, सर्विसिंग, मरम्मत और पार्ट्स पर लगातार खर्च होता रहता है. बहुत से किसान ट्रैक्टर फाइनेंस पर खरीदते हैं, जिससे हर महीने ईएमआई का दबाव बना रहता है. अगर किसी साल फसल ठीक न हो या बाजार भाव गिर जाए, तो यह बोझ और भारी लगने लगता है.

किराए का ट्रैक्टर- छोटे किसानों के लिए राहत

जिन किसानों के पास कम जमीन है या जिनकी खेती सीमित दायरे में है, उनके लिए ट्रैक्टर किराए पर लेना एक समझदारी भरा फैसला हो सकता है. किराए के ट्रैक्टर में न तो खरीद का बड़ा खर्च होता है और न ही रखरखाव की चिंता. किसान जरूरत के हिसाब से ट्रैक्टर बुलाता है, काम करवाता है और भुगतान करके निश्चिंत हो जाता है. इससे सीमित बजट में खेती करना आसान हो जाता है.

लेकिन किराए पर भी सब आसान नहीं

किराए का ट्रैक्टर हर बार राहत ही दे, ऐसा जरूरी नहीं. फसल के सीजन में जब हर किसान को एक साथ ट्रैक्टर चाहिए होता है, तब समय पर ट्रैक्टर मिलना मुश्किल हो जाता है. कई बार देरी के कारण बुवाई पिछड़ जाती है, जिसका सीधा असर पैदावार पर पड़ता है. इसके अलावा, कुछ जगहों पर सीजन में किराया काफी बढ़ जाता है, जिससे लागत का अंदाजा बिगड़ जाता है. कई किसान यह भी महसूस करते हैं कि किराए के ट्रैक्टर से जुताई उतनी अच्छी नहीं हो पाती, जितनी खुद के ट्रैक्टर से की जा सकती है.

फैसला जमीन और हालात देखकर करें

ट्रैक्टर खरीदना या किराए पर लेना इसका कोई एक जवाब सभी किसानों के लिए सही नहीं हो सकता. अगर आपके पास ज्यादा जमीन है, नियमित खेती होती है और आर्थिक स्थिति संभाल सकती है, तो खुद का ट्रैक्टर लंबे समय में फायदेमंद साबित हो सकता है. वहीं अगर आप छोटे या सीमांत किसान हैं, खेती सीमित है और खर्च पर नियंत्रण रखना जरूरी है, तो किराए का ट्रैक्टर बेहतर विकल्प बन सकता है.

सही फैसला ही देगा राहत

अंत में यही कहा जा सकता है कि ट्रैक्टर खेती का मजबूत सहारा है, लेकिन उसे खरीदने या किराए पर लेने का फैसला सोच-समझकर करना जरूरी है. अपनी जमीन, जरूरत और बजट को ध्यान में रखकर लिया गया सही फैसला ही किसान को असली राहत देगा और खेती को फायदे का सौदा बनाएगा.

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