प्याज की खेती करने वाले किसानों के लिए एक बड़ी राहत की खबर है. अब खेतों में प्याज के पौधों को हाथों से लगाने की जरूरत नगीं पड़ेगी. वैज्ञानिकों ने ऐसा ट्रैक्टरचलित स्वचालित ट्रांसप्लांटर तैयार किया है जो एक साथ आठ पंक्तियों में प्याज के पौधों की रोपाई कर सकता है. जिसका का नाम है आठ पंक्ति वाला ट्रांसप्लांटर . यह मशीन न सिर्फ किसानों का समय और श्रम बचाएगी, बल्कि पौधों की एक समान गहराई और दूरी पर रोपाई करके पैदावार बढ़ाने में भी मदद करेगी. यह तकनीक खासतौर पर उन किसानों के लिए फायदेमंद है जो बड़े रकबे में प्याज की खेती करते हैं.
60 पौधे एक सीधी रेखा में रोपती है मशीन
यह स्वचालित ट्रांसप्लांटर मशीन प्याज की रोपाई के लिए खासतौर पर तैयार की गई है. यह सूखे, समतल और अच्छी तरह तैयार खेतों में एक बार में 150 मिमी की पंक्ति दूरी पर आठ कतारों में पौधे लगाती है. इसका अंकुर मीटरिंग तंत्र प्रति मिनट औसतन 60 पौधे एक सीधी रेखा में रोपता है. यह मशीन 45 से 60 दिनों पुराने प्याज के पौधों को, जिनकी जड़ें धुली हुई हों और नेक का व्यास 4 से 8 मि.मी. हो उन्हें लगाने में यह पूरी तरह सक्षम है. यह तकनीक रोपाई की गति को तेज करती है और फसल की शुरुआती अवस्था में ही एकरूपता सुनिश्चित करती है.
पौधों को नुकसान से पूरी सुरक्षा
इस मशीन की खास बात यह है कि इसमें एक ऐसा पहिया लगा है जिससे पौधों को कितनी गहराई में लगाना है, यह आसानी से तय किया जा सकता है. जांच में पाया गया कि मशीन 100 मिलीमीटर की एक जैसी दूरी पर पौधे लगाती है, जिसमें 78 फीसदी पौधे एक-एक कर ठीक से लगे होते हैं, 9 फीसदी जगह पर दो-दो पौधे और सिर्फ 12 फीसदी जगह पर पौधा नहीं लग पाता है . इसकी खास बात यह है कि रोपाई के समय किसी भी पौधे को कोई नुकसान नहीं होता है. इसी वजह से यह मशीन पुराने तरीके की तुलना में काफी बेहतर मानी जा रही है.
रोपाई को तेजी से करने में सक्षम
मशीन ट्रैक्टर से जुड़कर 0.6 किमी/घंटा की गति से 75 फीसदी दक्षता के साथ काम करती है. एक बार में 2 मीटर की पट्टी पर काम करते हुए यह मशीन 0.11 हेक्टेयर प्रति घंटे की प्रभावी क्षेत्र क्षमता हासिल करती है. इसका मतलब है कि अब कम समय में ज्यादा क्षेत्र में रोपाई संभव है और मजदूरों की निर्भरता भी कम होगी. प्याज उत्पादक किसानों के लिए यह तकनीक समय, लागत और श्रम, तीनों के स्तर पर फायदेमंद साबित हो सकती है. इस मशीन के आ जाने से न सिर्फ किसानों का समय बच रहा रहा है, बल्कि पैदावार भी ज्यादा हो रहा है.