पहाड़ी क्षेत्रों में खेती हमेशा से चुनौतीपूर्ण रही है. यहां की ढलानदार और सीढ़ीनुमा जमीन पर फसलों की पैदावार के लिए भारी मेहनत करनी पड़ती है. परंपरागत रूप से यह काम ज्यादातर हाथों से किया जाता है, जिससे किसानों को न केवल अधिक थकान सहनी पड़ती है, बल्कि लागत भी बढ़ जाती है. लेकिन अब इस समस्या का समाधान मिला है सीएसके हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय (CSK HPKV), पालमपुर द्वारा विकसित एक खास देसी मशीन के रूप में. पावर टिलर संचालित बेंच टेरेसर (Power Tiller OperatedBench) कम लेवलर ने पहाड़ी खेती को आसान, तेज और किफायती बना दिया है.
पहाड़ी खेती की दिक्कतों का देसी समाधान
पहाड़ी इलाके जहां खेती की जमीन अक्सर खड़ी और कटी-फटी होती है, वहां मशीनी उपकरणों का इस्तेमाल करना मुश्किल रहता है. इसी बात को ध्यान में रखते हुए सीएसके हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय (CSK HPKV) ने 1 मीटर चौड़ाई वाला पावर टिलर संचालित बेंच टेरेसर-कम-लेवलर विकसित किया है. यह मशीन विशेष रूप से बेंच टेरेसिंग के लिए बनाई गई है, जिससे पहाड़ी जमीन पर खेती के लिए ठोस और मजबूत सीढ़ियां बनाना संभव होता है. इससे मिट्टी का कटाव कम होता है और फसल की पैदावार बढ़ती है.
10 हजार रुपये कीमत में उपलब्ध
इस देसी मशीन का वजन मात्र 28.60 किलोग्राम है, जिससे इसे पावर टिलर से आसानी से जोड़ा जा सकता है. इसकी कार्यक्षमता 0.12 हेक्टेयर प्रति घंटा है और एक बार में यह 0.6 क्यूबिक मीटर मिट्टी संभाल सकता है. सबसे बड़ी बात यह है कि इसकी कीमत केवल 10 हजार रुपये है और संचालन की लागत 880 रुपये प्रति हेक्टेयर. मतलब, यह न सिर्फ आर्थिक रूप से किसानों के लिए किफायती है बल्कि उनकी मेहनत और समय भी बचाता है. इससे खेत मजदूरों की थकान भी कम होती है और खेती के काम में तेजी आती है.
किसानों की उम्मीद, भविष्य की खेती
पहाड़ी किसान अब इस मशीन को अपनाकर अपनी खेती को ज्यादा संगठित और लाभकारी बना रहे हैं. मशीनीकृत बेंच टेरेसिंग से न केवल मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है, बल्कि सिंचाई और फसल की सुरक्षा भी बेहतर होती है. सरकार और कृषि वैज्ञानिक भी इस तकनीक को बढ़ावा दे रहे हैं ताकि पहाड़ी इलाके के किसानों को ज्यादा से ज्यादा फायदा पहुंच सके. इस देसी तकनीक ने साबित कर दिया है कि सही दिशा में सही प्रयास से सीमित संसाधनों में भी खेती को पैदावार बनाया जा सकता है.