किसानों को बताए चारा संरक्षण के तरीके, खाद्य सुरक्षा और महिला सशक्तिकरण पर दिया जोर

प्रधान वैज्ञानिक डॉ. एम. मुरुगानंदम और उनकी टीम गांवों में जाकर आजीविका, खाद्य सुरक्षा और महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने पर जोर दे रही है. इस दौरान किसानों को चारा सुरक्षित करने के भी अलग-अलग तरीके बताए गए.

अनामिका अस्थाना
नोएडा | Published: 13 Jun, 2025 | 06:45 AM

वर्तमान में चल रहे विकसित कृषि संकल्प अभियान (VKSA)-2025 के अंतर्गत, भाकृअनुप – भारतीय मृदा और जल संरक्षण संस्थान (ICAR-IISWC), देहरादून द्वारा किसानों को वैज्ञानिक चारा उत्पादन, उसके उपयोग और वन सामुदायिक भूमि जैसे संसाधनों के संरक्षण के प्रति जागरूक करने के उद्देश्य से एक विशेष अभियान चलाया गया. अभियान के 14वें दिन, संस्थान की छह विशेषज्ञ टीमों ने देहरादून जनपद के 18 गांवों का भ्रमण किया. टीमों ने खरीफ फसल और चारा प्रबंधन से संबंधित चुनौतियों का आकलन किया और 820 से अधिक किसानों को स्थान-विशेष पर आधारित वैज्ञानिक सलाह दी.

मेड़ों पर चारा घासों की रोपाई करें

वैज्ञानिकों ने किसानों को सुझाव दिया कि वे मॉनसून के दौरान खेत की मेड़ों पर हाइब्रिड नेपियर जैसी चारा घासों की रोपाई करें. यह तकनीक जल-जमाव और मिट्टी के बहाव को रोकने में मददगार साबित होती है. जंगली जानवरों के हमलों चारा संकट से निपटने के लिए किसानों को आम, अमरूद और आड़ू जैसे फलदार पेड़ों और भिमल और सुबबूल जैसे चारा देने वाले पेड़ों को सामूहिक भागीदारी से लगाने के लिए प्रेरित किया गया.साथ ही, स्थानीय पंचायतों को मनरेगा के अंतर्गत मिट्टी और जल संरक्षण और वृक्षारोपण कामों को बढ़ावा देने के लिए जागरूक किया गया ताकि समुदाय स्तर पर ठोस पहल की जा सके.

खाद्य सुरक्षा और महिला सशक्तीकरण पर जोर

डॉ. एम. मुरुगानंदम, प्रधान वैज्ञानिक, और उनकी टीम गांवों में जाकर आजीविका, खाद्य सुरक्षा और महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने पर जोर दे रही है.इस दौरान महिला किसानों की मेहनत को कम करने के लिए छोटे कृषि उपकरण और गांवों के समूहों में बड़े उपकरणों के लिए कस्टम हायरिंग केंद्र स्थापित करने का प्रस्ताव दिया गया है. इसके साथ ही किसानों को मुर्गी पालन, गादी, बीटल और बरबरी जैसे बेहतर नस्लों के साथ बकरी पालन,मशरूम खेती, वर्मी-कम्पोस्टिंग, मधुमक्खी पालन और बायोफ्लॉक आधारित मछली पालन को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया गया.

बरसीम और ज्वार की खेती की सलाह

बता दें कि जिन इलाकों में सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है वहां बरसीम और ज्वार जैसी चारा फसलों की खेती करने की सलाह दी गई, जिससे चारे की कमी को दूर किया जा सके. किसानों से यह भी अनुरोध किया गया कि वे मॉनसून में हरी घास को जलाना बंद करें, क्योंकि यह प्रक्रिया मिट्टी के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाती है. इस दौरान वैज्ञानिकों की टीम ने किसानों को चारा सुरक्षित करने के भी अलग-अलग तरीके बताए ताकि सालभर चारे की उपलब्धता सुनिश्चित हो सके.

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Published: 13 Jun, 2025 | 06:45 AM

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