जिस चावल से गौतम बुद्ध ने उपवास तोड़ा, वो आज दुनिया के बाजार में बिखेर रहा खुशबू

कालानमक चावल सिर्फ एक अनोखी फसल नहीं, बल्कि बुद्ध से जुड़ी 2600 साल पुरानी विरासत है. अब यह चावल अंतरराष्ट्रीय बाजारों में अपनी खुशबू और सेहतमंद गुणों के लिए लोकप्रिय हो रहा है.

उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले का काला नमक चावल सिर्फ एक अनोखी फसल नहीं, बल्कि 2600 साल पुरानी सांस्कृतिक विरासत और स्वास्थ्य का खजाना है. गौतम बुद्ध के समय से जुड़ा यह चावल आज न केवल देश में, बल्कि श्रीलंका, थाइलैंड, जापान जैसे बौद्ध अनुयायी देशों में भी अपनी खुशबू और पोषण के लिए प्रसिद्ध हो रहा है. इसकी खुशबू मोहल्ले तक फैल जाती है और इसके पोषण गुण मधुमेह सहित कई बीमारियों से लड़ने में मददगार हैं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसे ‘एक जिला, एक उत्पाद’ (ODOP) योजना में शामिल कर बड़े स्तर पर संरक्षण और प्रचार-प्रसार शुरू किया है. आइए जानते हैं काला नमक चावल के इतिहास, उत्पादन, लाभ और बाजार में उसकी लोकप्रियता के बारे में.

काला नमक चावल खाकर बुद्ध ने तोड़ा था उपवास

कहा जाता है कि भगवान गौतम बुद्ध ज्ञान प्राप्ति के बाद बोधगया से अपनी राजधानी कपिलवस्तु लौट रहे थे. रास्ते में बजहा नामक गांव में रुके. गांव वालों ने उनका स्वागत किया और आशीर्वाद मांगा. तब बुद्ध ने अपनी झोली से मुट्ठी भर चावल निकालकर कहा कि इसे अपने खेतों में लगाओ, इसकी खुशबू तुम्हें मेरी याद दिलाएगी. तब से यह चावल बुद्ध के महाप्रसाद के रूप में प्रसिद्ध हुआ. इसकी एक और भी कहानी है, कहा जाता है कि ज्ञान प्राप्ति के बाद उन्होंने कालानमक चावल की खीर खाकर उपवास तोड़ा था.

कालानमक चावल की खेती का महत्व

कालानमक चावल की खेती अंग्रेजों के दौर में सिद्धार्थनगर जिले में शुरू हुई. उन्होंने जलाशय बनाकर पानी की आपूर्ति सुनिश्चित की. यह चावल पानी में उगने वाला होता है और इसकी पैदावार कम होती है, लेकिन इसकी खुशबू और कीमत अच्छी मिलती है. काला नमक चावल कुपोषण दूर करने वाले पोषक तत्वों से भरपूर है.

क्षेत्रीय महत्व और जैव विविधता

बुद्ध से जुड़ी इस धान की खुशबू बौद्ध धर्म के कई देशों तक पहुंची है. सिद्धार्थनगर के वर्डपुर ब्लॉक में इसे उगाने की प्रसिद्धि है. यहां बजहा ताल में सर्दियों में साइबेरियन पक्षी आते हैं. कालानमक चावल काले रंग का और सुगंधित होता है, जो इसे खास बनाता है.

5 हजार हेक्टेयर में हो रही खेती

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने काला नमक चावल को ‘एक जिला, एक उत्पाद’ योजना में शामिल किया है. 2017 से पहले इसका उत्पादन करीब 2200 हेक्टेयर तक था, जो गिरावट पर था. योगी सरकार के मार्गदर्शन में वैज्ञानिकों ने इसकी किस्मों में सुधार किया और उत्पादन बढ़ाया. अब सिद्धार्थनगर जिले में लगभग 5000 हेक्टेयर में इसकी खेती हो रही है. सरकार इस चावल की खुशबू को विश्वभर में फैलाने के लिए ब्रांडिंग पर विशेष जोर दे रही है.

अंतरराष्ट्रीय बाजार में मांग

काला नमक चावल न केवल भारत में, बल्कि श्रीलंका, थाइलैंड, जापान, म्यांमार और भूटान जैसे बौद्ध देशों में भी लोकप्रिय हो चुका है. यहां के लोग इसे ऑनलाइन मंगवा कर खाते हैं. 20 अक्टूबर 2021 को कुशीनगर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भगवान बुद्ध के निर्वाण स्थल पर काला नमक चावल से बनी खीर का वितरण किया था. कुशीनगर इंटरनेशनल एयरपोर्ट के बनने के बाद इसकी मांग और बढ़ गई है.

ऑनलाइन बिक्री और आर्थिक संभावनाएं

आज काला नमक चावल ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर भी खूब बिक रहा है. इसकी कीमत 200 से 250 रुपये प्रति किलो है, जबकि किसान से यह 100 से 150 रुपये में खरीदा जाता है. ऑनलाइन पैकेटिंग आकर्षक होती है और उत्पाद की पूरी जानकारी उपलब्ध होती है. ऑनलाइन बिक्री में 80 फीसदी वृद्धि हुई है. कई कंपनियां बड़ी मात्रा में खरीद पर छूट भी देती हैं, जिससे किसान और उद्योग दोनों को लाभ हो रहा है.

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