आज के समय में किसान खेती से अच्छी कमाई करने के लिए व्यावसायिक फसलों की खेती करते हैं. ताकि उन्हें कम लागत और कम समय में ज्यादा पैदावार मिल सके और अनकी आमदनी में भी बढ़ोतरी हो सके. तोरई (Ridge Gourd) भी ऐसी ही एक व्यावसायिक फसल है जिसकी खेती से किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. लेकिन इसकी खेती से पहले किसानों के लिए जरूरी है कि वो तोरई की उन्नत किस्मों का चुनाव कर लें. ऐसी किस्मों का चुनाव करें जो उन्हें कम समय में ज्यादा फायदा दे. खरीफ सीजन में तोरई की खेती किसानों के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकती है. खबर में आगे तोरई की तीन उन्नत किस्मों के बारे में बात करेंगे.
तोरई की 3 उन्नत किस्में
पूसा नसदर (Pusa Nasdar)
पूसा नसदर तोरई की एक अच्छी क्ववालिटी वाली किस्म है जिसे भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली (IARI) ने विकसित किया है. ये किस्म बुवाई के 75 से 90 दिन में पूरी तरह से पककर तैयार हो जाती है. हांलांकि किसान इसकी पहली तुड़ाई 45 से 55 दिन में ही शुरु कर सकते हैं. तोरई की यह किस्म प्रति हेक्टेयर फसल से करीब 150-170 क्विंटल तक पैदावार दे सकती है. इसकी खेती से किसानों को औसतन 1.5 लाख तक का शुद्ध मुनाफा हो सकता है.
अर्का नसिका (Arka Nasika)
यह तोरई की एक ऐसी उन्नत किस्म है जिसकी खेती खास तौर पर कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, ओडिशा और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों के लिए सबसे सही है. इस किस्म को भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बेंगलुरू (IIHR) ने विकसित किया है. इसकी प्रति हेक्टेयर फसल से किसान 160-180 क्विंटल तक पैदावार कर सकते हैं. इसकी खेती से किसानों को करीब 1.5 लाख तक शुद्ध मुनाफा हो सकता है.
कोयंबटूर तोरई
तोरई की इस किस्म की खेती खासतौर पर दक्षिण भारत में की जाती है. यह दक्षिण भारत की एक लोकप्रिय किस्म है. इसे तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय, कोयंबटूर (TNAU) ने विकसित किया है. इसके प्रति हेक्टेयर फसल से किसानों को 180 क्विंटल तक पैदावार मिल सकती है. इसके फलों का रंग गहरा हरा होता है. बुवाई के करीब 55 से 60 दिनों में ये पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाता है. तोरई कि इस किस्म की खेती से किसान लगभर 2 लाख तक रुपये कमा सकता है.