कपास की खपत घटी, मिलें अब विस्कोस और पॉलिएस्टर पर कर रहीं भरोसा

भारत में कपड़ा उद्योग की प्राथमिकताएं बदल रही हैं. जहां पहले प्राकृतिक रेशा यानी कपास सबसे ज्यादा इस्तेमाल होता था, अब धीरे-धीरे सस्ते और टिकाऊ विकल्प जैसे सिंथेटिक फाइबर बाजार में अपनी जगह बना रहे हैं.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 27 May, 2025 | 10:53 AM

भारत में कपास उद्योग इस बार धीमी चाल में नजर आ रहा है. Cotton Association of India (CAI) की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, 2024-25 के सीजन में कपास की खपत घटकर 307 लाख गांठ (प्रत्येक 170 किलो) रह सकती है. ये पिछले साल के मुकाबले लगभग 2 फीसदी की गिरावट है. 2023-24 में कपास की खपत 313 लाख गांठ रही थी.

मिलें अब कपास से हटकर सिंथेटिक रेशों की ओर

CAI के अध्यक्ष अतुल एस. गणात्रा का कहना है कि यह गिरावट इसलिए देखी जा रही है क्योंकि स्पिनिंग मिलें अब विस्कोस और पॉलिएस्टर जैसे मानव निर्मित रेशों (man-made fibres) को प्राथमिकता देने लगी हैं. खासकर दक्षिण भारत में इस बदलाव का असर ज़्यादा देखने को मिल रहा है. उन्होंने बताया कि “श्रमिकों की भारी कमी के कारण भी कई मिलें धीमी गति से चल रही हैं, जिससे कपास की खपत में गिरावट आई है.”

अनुमान में बदलाव

शुरुआत में 2024-25 के लिए कपास खपत का अनुमान 315 लाख गांठ था, लेकिन अब इसे घटाकर 307 लाख गांठ कर दिया गया है. इससे साफ है कि बाजार में कपास की मांग पहले की तुलना में कमजोर होती जा रही है.

अगले साल बचेगा ज्यादा स्टॉक

कम खपत के चलते 2025-26 सीजन के लिए 32.54 लाख गांठ का कैरीफॉरवर्ड स्टॉक (अगले साल के लिए बचा कपास) देखा जा रहा है. यानी आने वाले साल में मिलों के पास पुराना माल पहले से ही मौजूद रहेगा.

बदलती प्राथमिकताएं, बदलता बाजार

यह ट्रेंड बताता है कि भारत में कपड़ा उद्योग की प्राथमिकताएं बदल रही हैं. जहां पहले प्राकृतिक रेशा यानी कपास सबसे ज्यादा इस्तेमाल होता था, अब धीरे-धीरे सस्ते और टिकाऊ विकल्प जैसे सिंथेटिक फाइबर बाजार में अपनी जगह बना रहे हैं. इससे न केवल कपास किसानों पर असर पड़ेगा, बल्कि देश के परंपरागत वस्त्र उद्योग की दिशा भी बदल सकती है.

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