किसानों को राहत या रणनीतिक कदम? जानिए क्यों बांग्लादेश से आने वाला जूट हुआ बैन

भारत में जूट की खेती और इससे जुड़ा काम लाखों लोगों की रोजी-रोटी का जरिया है. देश में जितना भी जूट पैदा होता है, उसका लगभग 90 फीसदी हिस्सा देश के अंदर ही इस्तेमाल हो जाता है. इसमें से ज्यादातर जूट सरकार खरीदती है.

नई दिल्ली | Updated On: 30 Jun, 2025 | 08:59 AM

देश में जूट किसानों और मिलों की हालत पहले से ही कमजोर थी, और ऊपर से सस्ते, सब्सिडी वाले बांग्लादेशी जूट उत्पादों ने घरेलू उद्योग को और भी नुकसान पहुंचाया. ऐसे में भारत सरकार ने हाल ही में बड़ा फैसला लेते हुए बांग्लादेश से आने वाले जूट और उससे जुड़े उत्पादों के आयात पर कड़ा प्रतिबंध लगा दिया है. अब ये सामान केवल महाराष्ट्र के न्हावा शेवा बंदरगाह से ही भारत में प्रवेश कर सकेंगे.

इस फैसले के पीछे सिर्फ व्यापारिक चिंता ही नहीं, बल्कि रणनीतिक कारण भी छिपे हैं. बांग्लादेश की अंतरिम सरकार और चीन के बीच बढ़ती नजदीकियों ने भी सरकार को सतर्क कर दिया है.

सस्ते जूट उत्पादों से भारतीय किसान और मिलें परेशान

भारत में जूट किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) 5,335 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया है, लेकिन बांग्लादेश से आयात होने वाले सस्ते और सब्सिडी वाले जूट उत्पादों ने बाजार को इतना नीचे गिरा दिया कि कीमत 5,000 रुपये से भी नीचे पहुंच गई.

इससे पश्चिम बंगाल, बिहार, असम, ओडिशा जैसे राज्यों के किसान बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. 6 जूट मिलें बंद पड़ी हैं और लगभग 1,400 करोड़ रुपये का बकाया बकाया हो चुका है. मिलों की क्षमता का पूरा उपयोग नहीं हो पा रहा है क्योंकि बाजार सस्ते विदेशी माल से भर गया है.

तकनीकी छूट से बांग्लादेशी निर्यातकों को फायदा

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत सरकार ने पहले ही बांग्लादेश से आने वाले जूट उत्पादों पर एंटी-डंपिंग ड्यूटी (ADD) लगाई थी, ताकि सस्ते और नुकसानदायक आयात को रोका जा सके. लेकिन बांग्लादेश के कुछ बड़े व्यापारी चालाकी से नियमों का फायदा उठाकर इस ड्यूटी से बचते रहे.

उन्होंने तकनीकी छूट, गलत जानकारी देने और अपनी उत्पादन क्षमता से ज्यादा माल दिखाकर जूट का निर्यात जारी रखा. इसी वजह से 2016-17 में जहां भारत में बांग्लादेश से जूट का आयात 138 मिलियन डॉलर था, वो 2023-24 तक बढ़कर 144 मिलियन डॉलर तक पहुंच गया. यानी ड्यूटी लगने के बाद भी बांग्लादेशी जूट भारत में आता रहा और इससे हमारे देश के किसानों और मिलों को बड़ा नुकसान हुआ.

क्यों सिर्फ न्हावा शेवा बंदरगाह से होगा आयात?

भारत सरकार ने यह व्यवस्था इसलिए की है ताकि सिर्फ एक बंदरगाह से प्रवेश देकर हर खेप की सही जांच की जा सके, जैसे कि जूट में हाइड्रोकार्बन ऑइल की मात्रा, लेबलिंग और गुणवत्ता की पुष्टि. इससे गलत घोषणा और सब्सिडी हेराफेरी पर रोक लगाई जा सकेगी. वहीं नेपाल और भूटान को बांग्लादेश से ट्रांजिट होने वाले सामान पर यह प्रतिबंध लागू नहीं होगा.

घरेलू जूट उद्योग का क्या है महत्व?

भारत में जूट की खेती और इससे जुड़ा काम लाखों लोगों की रोजी-रोटी का जरिया है. देश में जितना भी जूट पैदा होता है, उसका लगभग 90 फीसदी हिस्सा देश के अंदर ही इस्तेमाल हो जाता है. इसमें से ज्यादातर जूट सरकार खरीदती है. अगर बात करें राज्यों की, तो पश्चिम बंगाल अकेले ही देश का करीब 78 फीसदी जूट उगाता है. इसके अलावा, देशभर में करीब 4 लाख से ज्यादा लोग जूट की मिलों और दूसरी इकाइयों में सीधा काम करते हैं.

सिर्फ मजदूर ही नहीं, बल्कि लाखों किसान परिवार भी जूट की खेती, व्यापार और इसकी प्रोसेसिंग से अपनी आजीविका चलाते हैं. यही वजह है कि जूट उद्योग देश के ग्रामीण इलाकों की अर्थव्यवस्था में बहुत अहम भूमिका निभाता है.

बांग्लादेश-चीन की नजदीकी भी चिंता का कारण

भारत-बांग्लादेश के रिश्ते हाल के सालों में कुछ असहज हुए हैं. खासकर, बांग्लादेश की अंतरिम सरकार द्वारा चीन से बढ़ती नजदीकियां और भारतीय सुरक्षा चिंताओं की अनदेखी से भारत सरकार सतर्क है. माना जा रहा है कि यह व्यापारिक फैसला केवल जूट उद्योग की रक्षा नहीं, बल्कि सीमा सुरक्षा और रणनीतिक नियंत्रण की दृष्टि से भी लिया गया है.

Published: 30 Jun, 2025 | 08:55 AM