अप्रैल में 23.5 फीसदी कम हुआ दालों का आयात, पीली मटर और मसूर की मांग में आई भारी कमी

विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले महीनों में दालों का आयात पहले की तुलना में काफी कम हो जाएगा. अगर मौसम अच्छा रहा और किसान बेहतर पैदावार दे पाए, तो देश को महंगे आयात पर खर्च नहीं करना पड़ेगा.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 20 May, 2025 | 11:32 AM

भारत में दालों का आयात अप्रैल 2025 में काफी कम हो गया है. इस गिरावट की बड़ी वजह है पीली मटर और मसूर जैसी दालों की खरीद में आई भारी कमी. जहां बीते साल दालों की भारी कमी के चलते रिकॉर्ड स्तर पर इनका आयात किया गया था, वहीं इस बार अच्छी बारिश और बेहतर पैदावार की उम्मीद ने दालों की मांग को थोड़ा थाम लिया है. इसका असर सीधे तौर पर आयात पर पड़ा है.

दालों के आयात पर खर्च में 23.5 फीसदी की गिरावट

अप्रैल 2025 में भारत ने दालों के आयात पर 314.4 मिलियन डॉलर खर्च किए, जबकि अप्रैल 2024 में यही आंकड़ा 411 मिलियन डॉलर था. यानी इस साल आयात खर्च में करीब 23.5 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई.

ये गिरावट ऐसे समय आई है जब बीते वित्त वर्ष 2024-25 में सरकार को घरेलू उत्पादन में कमी की भरपाई के लिए बड़ी मात्रा में दालें मंगवानी पड़ी थीं. लेकिन अब हालात बदल रहे हैं और भविष्य में दालों की आयात जरूरत पहले से कम रहने की उम्मीद है.

पीली मटर और मसूर की खरीद में सबसे ज्यादा गिरावट

सबसे बड़ी गिरावट पीली मटर (Yellow Pea) और मसूर (Lentil) की खरीद में देखने को मिली है. पिछले साल अप्रैल में भारत ने 4 लाख टन से ज्यादा पीली मटर मंगाई थी, जबकि इस साल सिर्फ 29,308 टन ही आयात की गई. इसी तरह मसूर दाल का आयात भी घटकर सिर्फ 36,007 टन रह गया, जो पिछले साल 64,583 टन था. इसकी वजह यह है कि इस बार घरेलू उत्पादन बेहतर रहने की उम्मीद है, खासकर अच्छे मॉनसून के पूर्वानुमान के चलते किसान ज्यादा क्षेत्र में बोआई कर सकते हैं.

तुअर और उड़द का आयात हुआ तेज

जहां कुछ दालों का आयात कम हुआ है, वहीं कुछ में बढ़ोतरी भी देखने को मिली है. तुअर (अरहर) दाल का आयात इस साल अप्रैल में 98,162 टन और उड़द का 89,212 टन रहा. ये आंकड़े पिछली बार की तुलना में कहीं ज्यादा हैं. सरकार ने तुअर और उड़द के लिए मार्च 2026 तक शुल्क मुक्त (ड्यूटी-फ्री) आयात की सुविधा दी है, जिससे व्यापारी इन दालों को मंगाने के लिए प्रोत्साहित हो रहे हैं.

पिछले साल का रिकॉर्ड आयात अब रहेगा पीछे

पिछले साल यानी वित्त वर्ष 2024-25 में भारत ने 67 लाख टन से ज्यादा दालों का आयात किया था, जिसकी कीमत करीब 5.4 अरब डॉलर रही. ये आयात इसलिए जरूरी था क्योंकि देश में फसलें कमजोर रही थीं और महंगाई का असर आम लोगों की रसोई तक पहुंच गया था. लेकिन अब सरकार को उम्मीद है कि घरेलू पैदावार सुधरेगी और दालों की जरूरतों को घरेलू किसान ही पूरा कर पाएंगे.

अब आयात की रफ्तार धीमी होगी

विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले महीनों में दालों का आयात पहले की तुलना में काफी कम हो जाएगा. अगर मौसम अच्छा रहा और किसान बेहतर पैदावार दे पाए, तो देश को महंगे आयात पर खर्च नहीं करना पड़ेगा. इससे न सिर्फ सरकारी खजाने पर बोझ घटेगा, बल्कि किसानों को भी उनकी मेहनत का बेहतर दाम मिलेगा. साथ ही बाजार में दालों की कीमतें भी स्थिर रह सकती हैं.

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