Explainer: चीनी उद्योग पर मंडरा रहा खतरा, क्यों तुरंत बढ़ाना जरूरी है चीनी का MSP?
देशभर की चीनी मिलें हर साल किसानों को करीब 1.25 लाख करोड़ रुपये का भुगतान करती हैं. इस साल गन्ने की ऊंची कीमतों के कारण किसानों को दिए जाने वाले भुगतान में 20 से 25 हजार करोड़ रुपये तक का अतिरिक्त बोझ आने का अनुमान है.
भारत एक कृषि प्रधान देश है और यहां की ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ गन्ना खेती मानी जाती है. देश में करीब साढ़े पांच करोड़ किसान गन्ने की खेती से जुड़े हुए हैं और इससे हर साल ग्रामीण इलाकों में एक लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का आर्थिक प्रवाह होता है. लेकिन बीते कुछ वर्षों से चीनी उद्योग और गन्ना किसानों के सामने एक बड़ा संकट खड़ा होता नजर आ रहा है. इसकी सबसे बड़ी वजह है चीनी का न्यूनतम बिक्री मूल्य यानी MSP, जो फरवरी 2019 से अब तक 31 रुपये प्रति किलो पर ही अटका हुआ है.
लागत बढ़ी, कीमत वही पुरानी
पिछले छह सालों में गन्ने की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी हुई है. साल 2018-19 में गन्ने का उचित और लाभकारी मूल्य यानी एफआरपी 275 रुपये प्रति क्विंटल था, जो मौजूदा 2025-26 सीजन में बढ़कर 355 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है. इसके अलावा उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, पंजाब, हरियाणा और उत्तराखंड जैसे राज्यों में राज्य परामर्शित मूल्य यानी एसएपी भी एफआरपी से कहीं ज्यादा तय किए गए हैं. इसका सीधा असर चीनी बनाने की लागत पर पड़ा है. आज एक किलो चीनी बनाने की अनुमानित लागत करीब 41.7 रुपये तक पहुंच चुकी है, जबकि मिलों को इसे 31 रुपये किलो के MSP पर बेचने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है.
घाटे में बिक रही चीनी, मिलों पर दबाव
बिजनेस लाइन की खबर के अनुसार, मौजूदा हालात में चीनी मिलें उत्पादन लागत से काफी कम दाम पर चीनी बेच रही हैं. यह स्थिति न तो लंबे समय तक टिकाऊ है और न ही उद्योग के लिए न्यायसंगत. इस सीजन में चीनी का उत्पादन अच्छा रहने का अनुमान है, इसलिए मिलें किसानों की फसल लेने के लिए मजबूरी में चलती रहती हैं, ताकि किसानों को नुकसान न हो और गन्ना खेतों में सड़ने न लगे. लेकिन कम कीमत, एथेनॉल में कम डायवर्जन और अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतों की बराबरी न होने से मिलों की हालत और खराब हो रही है.
किसानों को भुगतान में बढ़ता खतरा
देशभर की चीनी मिलें हर साल किसानों को करीब 1.25 लाख करोड़ रुपये का भुगतान करती हैं. इस साल गन्ने की ऊंची कीमतों के कारण किसानों को दिए जाने वाले भुगतान में 20 से 25 हजार करोड़ रुपये तक का अतिरिक्त बोझ आने का अनुमान है. महाराष्ट्र और कर्नाटक में चीनी के एक्स-मिल दाम करीब 3630 से 3690 रुपये प्रति क्विंटल के आसपास हैं, जबकि उत्तर प्रदेश में भी दाम थोड़े ही बेहतर हैं. इससे मिलों को पहले ही 6 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान हो चुका है. अगर MSP में बदलाव नहीं हुआ, तो जनवरी 2026 से किसानों का बकाया तेजी से बढ़ने का खतरा है.
घरेलू बाजार और एथेनॉल नीति की चुनौती
देश में चीनी की घरेलू खपत लगभग स्थिर बनी हुई है. 2024-25 में खपत करीब 281 लाख मीट्रिक टन रही और आने वाले वर्षों में इसमें मामूली बढ़ोतरी की ही उम्मीद है. दूसरी ओर एथेनॉल मिश्रण कार्यक्रम में भी अनिश्चितता बनी हुई है. मौजूदा सीजन में गन्ने से बने एथेनॉल को कुल आवंटन का सिर्फ 28 प्रतिशत हिस्सा मिला है, जिससे केवल 34 लाख टन चीनी ही एथेनॉल की ओर डायवर्ट हो पाई. इससे बाजार में चीनी की अधिकता हो गई है और मिलों की नकदी स्थिति कमजोर हो रही है.
समाधान क्या है?
विशेषज्ञों का मानना है कि चीनी के MSP में तुरंत सुधार जरूरी है. अगर MSP को उत्पादन लागत के अनुरूप करीब 41 रुपये प्रति किलो तक लाया जाता है, तो इसका उपभोक्ता महंगाई पर बहुत मामूली असर पड़ेगा. चीनी का उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में हिस्सा बेहद कम है. इसके साथ ही एक ऐसी गतिशील व्यवस्था की जरूरत है, जिसमें गन्ने के एफआरपी और एसएपी बढ़ने के साथ ही चीनी का MSP भी अपने आप समायोजित हो जाए.
MSP में सुधार की जरूरत
अगर समय रहते MSP में सुधार नहीं किया गया, तो आने वाले महीनों में कई चीनी मिलों के बंद होने, किसानों के भुगतान में देरी, एथेनॉल आपूर्ति में रुकावट और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में गहरे संकट का खतरा बढ़ जाएगा. एक न्यायसंगत और लागत आधारित MSP न सिर्फ मिलों के लिए, बल्कि किसानों, ऊर्जा सुरक्षा और देश के चीनी-बायोएनर्जी तंत्र के भविष्य के लिए बेहद जरूरी है.