भले ही हरियाणा सरकार धान की जगह वैकल्पिक फसलें अपनाने और भूजल संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए लगातार कोशिश कर रही हो, लेकिन झज्जर जिले में पिछले चार सालों में धान की खेती में 67,500 एकड़ का इजाफा हुआ है. इसकी सबसे बड़ी वजह जिले में कपास की खेती का तेजी से घटता रकबा है. कई कपास किसान अब धान या दूसरी फसलों की ओर शिफ्ट हो रहे हैं.
द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, कृषि एवं किसान कल्याण विभाग की स्थानीय टीम लगातार किसानों को धान के बजाय दूसरी फसलें अपनाने और कपास की पैदावार व कीट नियंत्रण में मदद करने के लिए काम कर रही है. एक कृषि अधिकारी ने कहा कि 2021-22 में झज्जर में 96,750 एकड़ में धान की बुआई हुई थी, जो 2024-25 में बढ़कर 1,64,250 एकड़ पहुंच गई. 2022-23 में 1,33,250 एकड़ और 2023-24 में 1,55,250 एकड़ में धान उगाया गया. इस सीजन में अब तक 40,000 एकड़ में धान बोया जा चुका है.
29,250 एकड़ में होती थी कपास की खेती
वहीं, 2021-22 में कपास की खेती 29,250 एकड़ में होती थी, जो 2024-25 में घटकर सिर्फ 11,875 एकड़ रह गई. 2022-23 और 2023-24 में कपास का रकबा 21,250 एकड़ पर ही स्थिर रहा. खेड़का गुज्जर गांव के किसान असवीर ने कहा कि गांव के ज्यादातर किसान अब कपास छोड़कर धान की खेती करने लगे हैं, क्योंकि कपास में गुलाबी सुंडी (pink bollworm) के हमलों से पैदावार बहुत कम हो गई है.
गुलाबी सुंडी से उपज में गिरावट
उन्होंने कहा कि इस बार गांव में सिर्फ कुछ एकड़ में ही कपास बोई गई है, जबकि पहले यहां 50 एकड़ से अधिक में कपास की खेती होती थी. झज्जर के कृषि उपनिदेशक डॉ. जितेंद्र अहलावत ने कहा कि जिले में कपास की खेती में गिरावट के पीछे कई वजहें हैं. उन्होंने कहा किलगातार कीट हमले, खासकर गुलाबी सुंडी, ने कपास की उपज घटा दी है. साथ ही, लागत बढ़ने और मजदूरों की कमी की वजह से किसान धान की ओर जा रहे हैं, क्योंकि उसमें न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) और सरकारी खरीद की गारंटी होती है.
126 पात्र किसानों को प्रोत्साहन दिया गया
डॉ. अहलावत ने कहा कि पिछले साल जिले में कपास को बढ़ावा देने के लिए 126 पात्र किसानों को प्रोत्साहन भी दिया गया था. उन्होंने यह भी कहा कि धान की खेती को कम करने और पानी बचाने के लिए सरकार ने ‘मेरा पानी, मेरी विरासत’ (MPMV) योजना लागू की है. डॉ. अहलावत ने कहा कि ‘मेरा पानी, मेरी विरासत (MPMV)’ योजना के तहत जो किसान धान छोड़कर मक्का, दालें या कपास जैसी फसलें उगाते हैं, उन्हें आर्थिक सहायता दी जाती है. इसके अलावा, सूक्ष्म सिंचाई (micro-irrigation) सिस्टम पर सब्सिडी, कृषि वानिकी (agroforestry) को बढ़ावा और फसल विविधिकरण में मदद भी शामिल है.