पशुपालन के क्षेत्र में तकनीकी बदलाव ने किसानों की जिंदगी आसान और फायदेमंद बना दी है. खासकर जब बात होती है गाय-भैंस के प्रजनन की तो अब कृत्रिम गर्भाधान (Artificial Insemination) की तकनीक ने पारंपरिक प्राकृतिक गर्भाधान की जगह ले ली है. प्राकृतिक तरीके से एक साड़ द्वारा एक साल में लगभग 50-60 गायों या भैंसों को ही गर्भधारण करवाया जा सकता था. लेकिन कृत्रिम गर्भाधान तकनीक की मदद से अब एक सांड के सीमन से हजारों गायों का प्रजनन संभव हो गया है. यह तकनीक न केवल उत्पादन बढ़ाने में मददगार है, बल्कि पशुपालकों के लिए कई फायदे लेकर आई है.
अच्छे सांड का अधिकतम उपयोग
सबसे बड़ा लाभ यह है कि इस विधि से अच्छे क्वालिटी वाले सांड के सीमन का व्यापक उपयोग हो पाता है. प्राकृतिक विधि में एक सांड के पास सीमित संख्या में ही गाय-भैंसों को गर्भधारण करवाने की क्षमता होती है. वहीं, कृत्रिम गर्भाधान में एक सांड का सीमन दूर-दराज के क्षेत्रों में, यहां तक कि विदेशों में रखे गए उत्तम नस्ल के सांड से भी प्राप्त किया जा सकता है. इससे नस्ल सुधार के अवसर बढ़ जाते हैं.
खर्च और मेहनत की बचत
इस विधि से पशु पालकों को सांड पालने की जरूरत नहीं होती, जिससे खर्च और मेहनत दोनों में बचत होती है. इतना ही नहीं, वृद्ध, घायल या मृत्यु के बाद भी सांड के सीमन का इस्तेमाल किया जा सकता है. सांड के आकार या शरीर के भार का भी इस प्रक्रिया में कोई असर नहीं पड़ता और विकलांग गाय-भैंसों का भी प्रजनन संभव होता है. इससे पशुपालकों को मेहनत और खर्च दोंनो की बचत होती है.
रोगों से सुरक्षा और साफ-सफाई
कृत्रिम गर्भाधान विधि में नर से मादा तथा मादा से नर में फैलने वाले संक्रामक रोगों का खतरा कम हो जाता है. इसके साथ ही, इस तकनीक में सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता है, जिससे मादा पशुओं की प्रजनन संबंधी बीमारियों में काफी हद तक कमी आती है. साफ-सफाई और रोग नियंत्रण के कारण गर्भधारण की संभावना भी बढ़ जाती है.
रिकॉर्ड की सुविधा और बेहतर प्रबंधन
इस प्रक्रिया से पशु का प्रजनन रिकॉर्ड भी आसानी से रखा जा सकता है, जिससे पशुपालकों को उनकी नस्ल सुधार और उत्पादन योजना में मदद मिलती है. कुल मिलाकर, कृत्रिम गर्भाधान तकनीक ने पशुपालन की पारंपरिक विधियों को बदल कर किसानों और पशुपालकों को नए आयाम दिए हैं. यह तकनीक भविष्य में पशुपालन को और भी अधिक उत्पादक और लाभकारी बनाने की क्षमता रखती है.