गर्भपात से कैसे बचाएं अपने दुधारू पशु? ये सावधानियां हैं जरूरी

गर्भपात से बचाव किसी एक उपाय से नहीं होता, बल्कि इसके लिए सतर्कता, नियमित देखभाल और समय पर इलाज की जरूरत होती है. सबसे जरूरी बात है, पशु के गर्भवती होने की सही जानकारी रखें और उसके खानपान में विशेष ध्यान दें.

Kisan India
नई दिल्ली | Updated On: 29 May, 2025 | 12:16 PM

पशुपालन सिर्फ दूध उत्पादन तक सीमित नहीं है, यह हमारे ग्रामीण जीवन का एक अहम हिस्सा है. गाय और भैंस जैसे दुधारू पशु न केवल रोजाना की आमदनी का जरिया हैं, बल्कि हमारे खेतों की उर्वरता और परिवार की आर्थिक स्थिरता का आधार भी हैं. लेकिन जब यही पशु गर्भवती होते हैं और गर्भावस्था के दौरान उनका गर्भपात हो जाता है, तो किसान की मेहनत और उम्मीदें दोनों पर असर पड़ता है.

गर्भपात यानी जब किसी गाभिन (गर्भवती) गाय या भैंस का भ्रूण प्रसव के तय समय से पहले ही गिर जाता है या मर जाता है. यह समस्या तब और गंभीर हो जाती है जब यह पता ही नहीं चलता कि गर्भपात कब हुआ, क्योंकि अधिकतर मामलों में यह शुरुआत के महीनों में होता है जब भ्रूण बहुत छोटा होता है.

अब सवाल उठता है कि आखिर पशुओं में गर्भपात क्यों होता है? आइए जानते हैं इससे जुड़ी हर जरूरी बात.

जब बीमारी चुपचाप हमला करती है

कई बार पशुओं में ऐसे रोग लग जाते हैं जिनका असर सीधे उनके गर्भ पर पड़ता है. सबसे आम बीमारी है ब्रुसेल्लोसिस, जो एक प्रकार का जीवाणु जनित संक्रमण है. ये रोग गर्भावस्था के अंतिम समय में पशु का गर्भ गिरवा देता है. कई बार इसके बाद पशु की जेर भी रुक जाती है, जिससे और भी परेशानी खड़ी हो जाती है. यह बीमारी गंभीर इसलिए भी है क्योंकि यह इंसानों में भी फैल सकती है और बुखार या जोड़ों के दर्द का कारण बनती है.

इसी तरह एक और बीमारी है ट्रायकोमोनियासिस, जो नर पशु के माध्यम से फैलती है. जब यह मादा पशु को प्रभावित करती है तो गर्भावस्था के शुरुआती महीनों में ही भ्रूण गिर जाता है. अक्सर इसका पता भी नहीं चलता, क्योंकि भ्रूण बहुत छोटा होता है. धीरे-धीरे पशु के गर्भाशय में मवाद बनने लगता है और वह बार-बार बांझपन या अनियमित ऋतु चक्र का शिकार हो जाता है.

एक तीसरी बीमारी है विब्रियोसिस, जो अक्सर कृत्रिम गर्भाधान के जरिए फैलती है, लेकिन इलाज संभव है अगर समय पर पहचान हो जाए. ये रोग गर्भपात के साथ-साथ भ्रूण के विकास को भी प्रभावित करता है.

कभी-कभी वजहें हमारे ही हाथों की होती हैं

हर बार बीमारी ही जिम्मेदार नहीं होती. कई बार पशुपालक जाने-अनजाने कुछ ऐसी गलतियां कर बैठते हैं जिनका नतीजा गर्भपात होता है. जैसे गाभिन पशु को चोट लग जाना, गर्भावस्था में हरे चारे का जरूरत से ज्यादा सेवन कराना, खासकर ज्वार या बाजरे जैसे चारे जिनमें प्राकृतिक हार्मोन होते हैं या फिर संतुलित आहार की कमी.

कुछ मामलों में देखा गया है कि जब प्रोजेस्ट्रोन नामक हार्मोन की मात्रा पशु में कम हो जाती है, तब भी गर्भ को संभाल पाना मुश्किल हो जाता है. यही नहीं, अगर किसी अप्रशिक्षित व्यक्ति द्वारा जननांगों की जांच या गर्भाधान किया जाए तो भी इसका असर पशु के गर्भ पर पड़ता है.

कैसे करें बचाव

गर्भपात से बचाव किसी एक उपाय से नहीं होता, बल्कि इसके लिए सतर्कता, नियमित देखभाल और समय पर इलाज की जरूरत होती है. सबसे जरूरी बात है, पशु के गर्भवती होने की सही जानकारी रखें और उसके खानपान में विशेष ध्यान दें.

गर्भवती पशु को किसी भी तरह की चोट से बचाएं और उसे तनाव से दूर रखें. बीमारियों से बचने के लिए समय-समय पर टीकाकरण करवाएं और अगर किसी पशु में गर्भपात हो गया है तो बाकी पशुओं को उससे अलग रखें, ताकि संक्रमण न फैले.

कृत्रिम गर्भाधान हमेशा अनुभवी और प्रशिक्षित व्यक्ति से ही करवाएं और पशु में किसी भी असामान्य लक्षण को नजरअंदाज न करें.

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Published: 29 May, 2025 | 12:07 PM

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