Soil health: खेती की असली ताकत खेत में नहीं, बल्कि उस मिट्टी में छिपी होती है जिसमें बीज बोया जाता है. किसान दिन-रात मेहनत करता है, सही बीज चुनता है, समय पर सिंचाई करता है, लेकिन अगर मिट्टी कमजोर है तो सारी मेहनत अधूरी रह जाती है. आज के समय में बढ़ती लागत और घटते मुनाफे के बीच मिट्टी का स्वस्थ होना पहले से कहीं ज्यादा जरूरी हो गया है. स्वस्थ मिट्टी न सिर्फ फसल का उत्पादन बढ़ाती है, बल्कि अनाज, फल और सब्जियों की गुणवत्ता भी बेहतर बनाती है. अगर किसान मिट्टी की सेहत पर ध्यान दें, तो बिना ज्यादा खर्च के भी बंपर पैदावार संभव है.
खेती की मजबूत नींव है स्वस्थ मिट्टी
खेती चाहे पारंपरिक हो या आधुनिक, उसकी नींव मिट्टी ही होती है. मिट्टी में मौजूद पोषक तत्व, नमी, हवा और सूक्ष्म जीव फसल के विकास में अहम भूमिका निभाते हैं. जब मिट्टी में इन सभी का संतुलन सही रहता है, तभी पौधे मजबूत होते हैं और अच्छी उपज देते हैं. कई बार किसान बिना मिट्टी की स्थिति जाने सीधे खाद और उर्वरक डाल देते हैं, जिससे फायदा होने के बजाय नुकसान हो जाता है. इसलिए खेती शुरू करने से पहले मिट्टी को समझना और सुधारना बेहद जरूरी है.
मृदा परीक्षण से मिलती है सही दिशा
मिट्टी के स्वास्थ्य को सुधारने की शुरुआत मृदा परीक्षण से होती है. मिट्टी की जांच कराने से यह पता चलता है कि खेत में किस पोषक तत्व की कमी है और किसकी अधिकता. इसके साथ ही मिट्टी का पीएच मान भी पता चलता है, जिससे यह समझना आसान हो जाता है कि कौन-सी फसल उस जमीन के लिए उपयुक्त रहेगी. आमतौर पर खेतों में रेतीली, चिकनी और दोमट मिट्टी पाई जाती है. इनमें दोमट मिट्टी को सबसे बेहतर माना जाता है, क्योंकि इसमें पानी रोकने की क्षमता भी होती है और हवा का संचार भी बना रहता है. सही जानकारी मिलने के बाद किसान जरूरत के अनुसार खाद और सुधारक डाल सकते हैं.
मिट्टी की तैयारी में संतुलन है सबसे जरूरी
खेती से पहले मिट्टी तैयार करते समय उसके कई पहलुओं पर ध्यान देना जरूरी होता है. मिट्टी में हवा का संचार, नमी की मात्रा, बनावट और पीएच संतुलित होना चाहिए. जब मिट्टी बहुत सख्त होती है तो जड़ें ठीक से नहीं फैल पातीं, वहीं बहुत ढीली मिट्टी में नमी टिक नहीं पाती. इसलिए खेत की सही तैयारी से ही अच्छी फसल की नींव पड़ती है. यह काम समय पर और सही तरीके से किया जाए, तो आगे चलकर फसल को कम समस्याओं का सामना करना पड़ता है.
जुताई से बढ़ती है मिट्टी की ताकत
मिट्टी को स्वस्थ बनाने में जुताई का अहम योगदान होता है. जुताई से मिट्टी भुरभुरी होती है और उसमें हवा का संचार बढ़ता है. इससे पौधों की जड़ें गहराई तक फैलती हैं और पोषक तत्वों को अच्छे से फैला पाती हैं. पहली जुताई के बाद सतह की जुताई करने से मिट्टी के बड़े ढेले टूट जाते हैं और खेत की नमी भी सुरक्षित रहती है. सही जुताई न सिर्फ खरपतवार को नियंत्रित करती है, बल्कि फसल की शुरुआती बढ़वार को भी मजबूत बनाती है.
समतलीकरण से बचती है मिट्टी और पानी
खेत का समतल होना भी मिट्टी के स्वास्थ्य के लिए जरूरी है. जब खेत ऊबड़-खाबड़ होता है, तो कहीं पानी ज्यादा भर जाता है और कहीं बिल्कुल नहीं पहुंच पाता. इससे मिट्टी का कटाव भी बढ़ता है और फसल को नुकसान होता है. खेत को समतल करने से पानी पूरे खेत में समान रूप से फैलता है, जिससे नमी बनी रहती है और मिट्टी की उपजाऊ शक्ति सुरक्षित रहती है.
जैविक पदार्थों से लौटती है मिट्टी की जान
मिट्टी को लंबे समय तक उपजाऊ बनाए रखने के लिए उसमें जैविक पदार्थ मिलाना बेहद जरूरी है. गोबर की खाद, कम्पोस्ट और हरी खाद मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बढ़ाते हैं. इससे मिट्टी में मौजूद सूक्ष्म जीव सक्रिय होते हैं, जो पौधों के लिए पोषक तत्व तैयार करते हैं. जैविक पदार्थ मिलाने से मिट्टी की संरचना सुधरती है और वह लंबे समय तक फसल का साथ देती है. यही कारण है कि जैविक खेती को मिट्टी के लिए सबसे फायदेमंद माना जाता है.
संतुलन बनाए रखेगा बंपर उत्पादन
मिट्टी की उपजाऊ शक्ति उसके कार्बनिक पदार्थ, खनिज, सूक्ष्म जीव, पानी, ह्यूमस और हवा पर निर्भर करती है. जब इन सभी का संतुलन बना रहता है, तभी फसल का उत्पादन और गुणवत्ता दोनों बेहतर होती हैं. अगर किसान मिट्टी को समय-समय पर समझकर उसकी जरूरत के अनुसार देखभाल करें, तो मिट्टी कभी कमजोर नहीं पड़ेगी और खेत हर साल बंपर पैदावार देता रहेगा.