कश्मीर में कैंसर के बढ़ते मामलों के बाद जागी सरकार, अब राज्य में होगी जैविक खेती

बीते कुछ वर्षों में यहां की मिट्टी और फसलों में कीटनाशकों (Pesticides) का अत्यधिक प्रयोग बढ़ गया है, जिसका असर अब लोगों के स्वास्थ्य पर दिखने लगा है. खासकर सेब उत्पादक क्षेत्रों में कैंसर के मामलों में लगातार वृद्धि ने सरकार और विशेषज्ञों को चिंतित कर दिया है.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 7 Nov, 2025 | 07:55 AM

Organic farming: कश्मीर घाटी, जो अपने सेब के बागों और हरी-भरी धरती के लिए मशहूर है, अब एक गंभीर चुनौती से जूझ रही है. बीते कुछ वर्षों में यहां की मिट्टी और फसलों में कीटनाशकों (Pesticides) का अत्यधिक प्रयोग बढ़ गया है, जिसका असर अब लोगों के स्वास्थ्य पर दिखने लगा है. खासकर सेब उत्पादक क्षेत्रों में कैंसर के मामलों में लगातार वृद्धि ने सरकार और विशेषज्ञों को चिंतित कर दिया है. इसी वजह से अब कश्मीर में जैविक खेती (Organic Farming) को बढ़ावा देने की दिशा में बड़ा कदम उठाया जा रहा है.

सेहत और खेती दोनों की सुरक्षा के लिए नई योजना

बिजनेस लाइन की खबर के अनुसार, जम्मू-कश्मीर के कृषि मंत्री जावेद अहमद डार ने बताया कि राज्य सरकार ने “होलिस्टिक एग्रीकल्चर डेवलपमेंट प्रोग्राम (HADP)” के तहत 75,000 हेक्टेयर भूमि को जैविक खेती के लिए चिन्हित किया है. यह पांच साल की एक महत्वाकांक्षी योजना है, जिसका लक्ष्य कृषि और उससे जुड़े क्षेत्रों को पर्यावरण के अनुकूल बनाना है.

इसके अलावा, करीब 20,000 हेक्टेयर मौजूदा सेब के बागानों को कम रासायनिक और पर्यावरण-हितैषी खेती पद्धति में बदला जा रहा है. मंत्री डार के अनुसार, “हमारा मकसद है मानव स्वास्थ्य की रक्षा करना और खेती को टिकाऊ बनाना. अब खेती केवल उत्पादन का साधन नहीं, बल्कि जीवन की गुणवत्ता से जुड़ा विषय है.”

बढ़ते कैंसर मामलों ने बढ़ाई चिंता

स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा विधानसभा में प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार, साल 2018 से अब तक जम्मू-कश्मीर में 64,000 से अधिक कैंसर के मामले दर्ज किए जा चुके हैं, जिनमें से 50,000 से ज्यादा सिर्फ कश्मीर घाटी से हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि इन मामलों में से एक बड़ा हिस्सा उन किसानों या परिवारों का है जो लगातार सेब के बागों में कीटनाशक छिड़काव के संपर्क में रहते हैं.

एक 2010 की इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल एंड पीडियाट्रिक ऑन्कोलॉजी में प्रकाशित अध्ययन ने भी इस बात की पुष्टि की थी कि 2005 से 2008 के बीच दिमाग के ट्यूमर से पीड़ित 90 फीसदी मरीज वे थे जो बागानों में काम करते थे या उनके आसपास रहते थे. यानी लंबे समय तक कीटनाशकों के संपर्क में रहना गंभीर बीमारियों की वजह बन सकता है.

सेब की खेती में रसायनों का अत्यधिक उपयोग

कश्मीर की अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा हिस्सा सेब की खेती से आता है. हर साल यहां करीब 4,000 मीट्रिक टन से अधिक कीटनाशकों का इस्तेमाल किया जाता है, जिनमें से 90 फीसदी सिर्फ सेब के बागानों में प्रयोग होते हैं. किसानों का कहना है कि कीटों और बीमारियों से फसल को बचाने के लिए रासायनिक छिड़काव जरूरी होता है, लेकिन अब इसके नतीजे बेहद खतरनाक साबित हो रहे हैं.

विशेषज्ञ बताते हैं कि इन रसायनों से मिट्टी की गुणवत्ता खराब हो रही है, जल स्रोत दूषित हो रहे हैं, और सबसे चिंताजनक बात लोगों की सेहत पर सीधा असर पड़ रहा है.

जैविक खेती के सामने चुनौतियां

शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के डॉ. तारिक रशीद के अनुसार, “जैविक सेब की खेती आसान नहीं है. रोग और कीट नियंत्रण सबसे बड़ी चुनौती है. हालांकि तांबा, गंधक और बाइकार्बोनेट जैसे कुछ प्राकृतिक यौगिकों का इस्तेमाल अनुमति प्राप्त है, लेकिन फिर भी जैविक सेब की पैदावार और दिखावट पारंपरिक खेती जितनी नहीं होती.”

सरकार अब किसानों को जैविक उर्वरकों और प्राकृतिक कीटनाशकों के उपयोग की ट्रेनिंग दे रही है. इसके साथ ही, जैविक उत्पादों की अलग मार्केटिंग और प्रीमियम कीमत तय करने की भी योजना है ताकि किसानों को नुकसान न हो.

पर्यावरण और भविष्य दोनों की रक्षा

कश्मीर में यह पहल सिर्फ एक कृषि सुधार नहीं, बल्कि एक जनस्वास्थ्य आंदोलन बनती जा रही है. सरकार, वैज्ञानिक संस्थान और स्थानीय किसान अब मिलकर एक ऐसा मॉडल तैयार कर रहे हैं जो खेती को रसायन-मुक्त और टिकाऊ बना सके.

अगर यह प्रयास सफल होता है, तो कश्मीर न सिर्फ अपने सेबों की मिठास के लिए, बल्कि स्वस्थ और सुरक्षित खेती के मॉडल के रूप में भी पूरी दुनिया में जाना जाएगा.

Get Latest   Farming Tips ,  Crop Updates ,  Government Schemes ,  Agri News ,  Market Rates ,  Weather Alerts ,  Equipment Reviews and  Organic Farming News  only on KisanIndia.in

गेहूं की उत्पत्ति किस क्षेत्र से हुई थी?

Side Banner

गेहूं की उत्पत्ति किस क्षेत्र से हुई थी?