मछली पालन आज गांवों में आय बढ़ाने का एक बड़ा जरिया बन चुका है, लेकिन इसी बीच एक ऐसी बीमारी तेजी से फैल रही है जिसने कई मछली पालकों की नींद उड़ा दी है-सफेद धब्बेदार रोग. यह बीमारी दिखने में छोटी लगती है, लेकिन समय पर ध्यान न दिया जाए तो पूरा तालाब प्रभावित हो सकता है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार कई जगहों पर मछलियों में छोटे-छोटे सफेद धब्बे दिखने लगे हैं, जो इस बीमारी का पहला संकेत है. इस खबर में हम आपको बताते हैं कि यह बीमारी कैसी है, क्यों फैलती है और कैसे इससे अपनी फसल बचाई जा सकती है.
मछलियों के शरीर पर दिखने लगे सफेद दाने
सफेद धब्बेदार रोग एक प्रकार का प्रोटोजोआ (परजीवी) से फैलने वाला संक्रमण है. इस परजीवी का नाम इक्थियोथिरिस है, जो मछली की त्वचा , पंख और गलफड़ों पर हमला करता है. बीमारी की शुरुआत में मछली के शरीर पर छोटे-छोटे सफेद दाने दिखाई देते हैं. ऐसा लगता है जैसे किसी ने महीन सफेद पाउडर छिड़क दिया हो. यह दाने बाद में बढ़कर त्वचा पर परत जैसी बनावट तैयार कर देते हैं. अगर समय पर इलाज न मिले तो परजीवी त्वचा के अंदर घुसकर उसे नष्ट कर देता है, जिससे मछली सांस लेने और तैरने में परेशानी महसूस करती है. कई बार मछली किनारे पर चिपककर सुस्त दिखाई देती है, जो बीमारी के बढ़ने का साफ लक्षण है.
बीमारी क्यों फैलती है? ठंडा मौसम सबसे बड़ा कारण
रिपोर्ट्स के मुताबिक यह बीमारी खासकर तब फैलती है जब मौसम अचानक ठंडा हो जाता है या पानी का तापमान कम हो जाता है. तालाब में गंदगी बढ़ने, पानी के ज्यादा समय तक स्थिर रहने और मछलियों की भीड़ होने से भी यह बीमारी तेजी से फैलती है. इस परजीवी को ठंडे और कम साफ पानी में पनपने का ज्यादा मौका मिलता है. इसलिए जहां भी तालाब की नियमित सफाई नहीं होती या पानी में ताजगी नहीं रहती, वहां इसका खतरा ज्यादा रहता है. अक्सर नई मछलियों को बिना जांचे तालाब में डाल देने से भी संक्रमण फैल सकता है. इसलिए विशेषज्ञ हमेशा सलाह देते हैं कि किसी भी नए स्टॉक को 10-12 दिन तक अलग जगह पर रखकर ही तालाब में छोड़ें.
मछली पालक कैसे पहचानें बीमारी?
इस बीमारी की पहचान करना मुश्किल नहीं है. कुछ आम संकेत इस प्रकार हैं-
- मछली की त्वचा पर छोटे सफेद दाने
- पंखों पर सफेद परत जैसा निशान
- गलफड़ों का फीका पड़ना
- मछलियों का पानी की सतह पर बार-बार आना
- तैरने में सुस्ती और असामान्य हरकतें
- तालाब के किनारे पर झुंड में आकर रुक जाना
जैसे ही ये लक्षण दिखें, तुरंत कार्रवाई जरूरी है. देरी का मतलब है कि बीमारी पूरे तालाब में फैल सकती है और भारी नुकसान हो सकता है.
सही इलाज से कुछ ही दिनों में खत्म हो सकती है बीमारी
सफेद धब्बेदार बीमारी का इलाज आसान है, बस सही मात्रा और सही समय पर उपचार जरूरी है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार- 0.1 पीपीएम मेलाकाइट ग्रीन और 50 पीपीएम फार्मलिन के मिश्रण में मछलियों को लगभग 12 मिनट तक डुबोया जाता है. इससे परजीवी तेजी से नष्ट होने लगते हैं. तालाब के पानी में 15 से 25 पीपीएम फार्मेलिन हर दूसरे दिन तब तक डालना चाहिए जब तक कि बीमारी पूरी तरह खत्म न हो जाए. इस प्रक्रिया से मछलियों की स्थिति जल्दी सुधरने लगती है और उनकी त्वचा फिर से सामान्य होना शुरू हो जाती है.
बीमारी से बचने का सबसे आसान तरीका
इलाज के साथ-साथ रोकथाम भी बहुत जरूरी है. मछली पालक यदि नियमित रूप से तालाब की सफाई करें, पानी में ताजगी बनाए रखें और अधिक भीड़ से बचें, तो यह बीमारी खुद-ब-खुद दूर रहेगी. मछलियों को संतुलित भोजन , साफ पानी और उचित तापमान का माहौल मिले तो वे तेजी से बढ़ती हैं और बीमारियां भी पास नहीं आतीं. सफेद धब्बेदार बीमारी भले ही सुनने में डरावनी लगती हो, लेकिन समय रहते पहचान कर लेने पर इसे आसानी से रोका और ठीक किया जा सकता है. यह खबर आपके लिए एक चेतावनी भी है और समाधान भी-बस ध्यान रखिए, तालाब साफ रखिए और मछलियों को सही देखभाल दीजिए. सही उपाय अपनाएं, और आपकी मछली पालन की मेहनत सुरक्षित रहेगी.