Goat Farming : देशभर में मवेशियों पर लंपी वायरस का खतरा लगातार बढ़ रहा है. पहले यह बीमारी गायों और भैंसों में देखने को मिली थी, लेकिन अब बकरियों पर भी इसका असर साफ दिखाई देने लगा है. बकरियों पर इस वायरस का प्रभाव दूध उत्पादन से लेकर उनकी सेहत तक पर भारी पड़ रहा है. यही वजह है कि पशुपालकों को अब बकरियों की सुरक्षा और इलाज के लिए ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है.
लंपी वायरस क्या है और कैसे फैलता है
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, लंपी वायरस को आम भाषा में गांठदार त्वचा रोग भी कहा जाता है. यह वायरस गाय, भैंस और बकरी जैसे दूध देने वाले मवेशियों को प्रभावित करता है. यह वायरस मच्छर, मक्खी और दूषित भोजन के जरिए तेजी से फैलता है. संक्रमित जानवर की लार या घाव के संपर्क में आने से भी यह बीमारी दूसरे पशुओं में फैल सकती है.
बकरियों में लंपी वायरस के लक्षण
- संक्रमण होने के 14 दिन के भीतर बकरियों में इसके लक्षण दिखने लगते हैं.
- तेज बुखार आना
- शरीर पर गांठें और धब्बे होना
- आंखों और नाक से पानी निकलना
- लार का बहना
- भूख कम लगना और वजन घट जाना
- गर्भवती बकरियों में गर्भपात का खतरा
- अगर इन लक्षणों को समय पर पहचाना न जाए तो यह गंभीर रूप ले सकता है.
बकरियों पर लंपी वायरस का असर
यह वायरस बकरियों की दूध देने की क्षमता को प्रभावित करता है. लंबे समय तक बीमारी रहने पर दूध की मात्रा घट जाती है और वजन तेजी से कम होने लगता है. शरीर पर गहरे धब्बे और घाव बन जाते हैं, जिससे पशु की सेहत लगातार कमजोर होती जाती है. कई बार यह रोग गर्भवती बकरियों को भी प्रभावित करता है, जिससे उनका गर्भपात होने की संभावना बढ़ जाती है.
लंपी वायरस की उत्पत्ति
लंपी वायरस की शुरुआत अफ्रीका महाद्वीप के जाम्बिया देश से हुई थी. इसके बाद यह एशिया के कई देशों में फैल गया. भारत में यह पहली बार 2019 में आया था और पिछले दो सालों में इसके कई मामले देखे गए. तेजी से फैलने के कारण यह अब बकरियों तक पहुंच चुका है.
क्या बकरियों का दूध पी सकते हैं?
पशुपालकों और आम लोगों के मन में यह सवाल है कि क्या इस वायरस से पीड़ित बकरियों का दूध पीना सुरक्षित है. विशेषज्ञ बताते हैं कि उबाला हुआ दूध पूरी तरह से सुरक्षित होता है. इसलिए बकरियों के दूध का उपयोग किया जा सकता है, लेकिन उसे अच्छी तरह उबालना बेहद जरूरी है ताकि वायरस पूरी तरह खत्म हो जाए.
बचाव और रोकथाम के उपाय
- बकरियों को साफ और सूखी जगह पर रखें.
- संक्रमित पशु को तुरंत स्वस्थ पशुओं से अलग करें.
- नियमित रूप से मच्छर और मक्खियों से बचाव के उपाय करें.
- समय-समय पर पशु चिकित्सक से जांच कराएं.
- संतुलित और पौष्टिक आहार दें ताकि रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ सके.