देशभर के ज्यादातर हिस्सों में मॉनसूनी बारिश, बाढ़ और भूस्खलन जैसी आपदाओं ने किसानों की मुसीबत बढ़ा रखी है तो यूपी के एक हिस्से में किसान सूखे की मार से परेशान हैं. उत्तर प्रदेश में एक ओर बाढ़ ने फसलों और जमीन को डुबो दिया, तो दूसरी तरफ कुछ इलाकों में खेत पानी को तरस रहे हैं. खासकर पूर्वी यूपी में हालात चिंताजनक हैं. भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक देवरिया देश का सबसे सूखा जिला बन गया है, जहां 25 सितंबर तक सामान्य से 87 प्रतिशत कम बारिश हुई. कुशीनगर भी 64 फीसदी कमी के साथ गंभीर स्थिति में है. विशेषज्ञों का मानना है कि बारिश की यह असमानता और चरम मौसम जलवायु परिवर्तन का सीधा असर है, जिससे किसान असमंजस में हैं.
देवरिया बना देश का सबसे सूखा जिला
इस साल देवरिया में मानसून ने पूरी तरह से मुंह मोड़ लिया. 1 जून से 25 सितंबर 2025 तक जिले में सिर्फ 97.2 मिमी बारिश हुई, जबकि सामान्य बारिश का आंकड़ा 759.4 मिमी होना चाहिए था. यानी बारिश में 87 फीसदी की कमी दर्ज की गई. 16 हफ्तों के मानसून सीजन में एक भी हफ्ता ऐसा नहीं रहा जब बारिश सामान्य रही हो. 8 हफ्तों में बारिश 90-100 फीसदी तक कम रही और बाकी 8 हफ्तों में 80-90 फीसदी तक कम बारिश हुई. यह हालात किसानों और ग्रामीणों के लिए बड़े संकट का कारण बन गए हैं.
कुशीनगर में भी गंभीर हालात, धान की फसल पर असर
देवरिया के साथ-साथ कुशीनगर जिले की हालत भी खराब है. यहां इस साल मानसून में 64 फीसदी कम बारिश हुई है. जिले में धान की खेती मुख्य रूप से बारिश पर निर्भर होती है. कम बारिश का सीधा असर धान के उत्पादन पर पड़ा है. कृषि विभाग के मुताबिक, इस बार कुशीनगर में धान उत्पादन में 40 से 60 प्रतिशत तक की गिरावट आने का अनुमान है. सिंचाई के संसाधन होने के बावजूद इतनी कम बारिश ने किसानों की मेहनत पर पानी फेर दिया है.
पिछले कुछ सालों से बिगड़ रहे हालात
यह केवल इस साल की बात नहीं है. बीते कुछ वर्षों का आंकड़ा देखा जाए तो साफ पता चलता है कि पूर्वी यूपी में बारिश लगातार घट रही है.
- 2023 में देवरिया में 46 फीसदी कम बारिश हुई थी.
- 2024 में 43 फीसदी कम बारिश दर्ज की गई.
2020 से 2022 तक स्थिति थोड़ी बेहतर थी, लेकिन उसके बाद फिर गिरावट शुरू हो गई. विशेषज्ञों का कहना है कि यह एक स्पष्ट संकेत है कि जलवायु तेजी से बदल रही है और इसका सीधा असर खेती पर पड़ रहा है.
21 जिले सूखे की श्रेणी में, किसानों की बढ़ी मुश्किलें
IMD की रिपोर्ट के मुताबिक, पूर्वी उत्तर प्रदेश के 50 फीसदी यानी 21 जिले डेफिसिट बारिश की श्रेणी में हैं. इसका मतलब है कि इन जिलों में 20 से 59 प्रतिशत तक कम बारिश हुई है. इन जिलों में प्रमुख नाम हैं:-
- आजमगढ़ (40 फीसदी)
- बलिया (21 फीसदी)
- बस्ती (22 फीसदी)
- भदोही (32 फीसदी)
- चंदौली (39 फीसदी)
- गाजीपुर (24 फीसदी)
- गोरखपुर (43 फीसदी)
- जौनपुर (44 फीसदी)
- महाराजगंज (20 फीसदी)
- मऊ (53 फीसदी)
- सिद्धार्थनगर (33 फीसदी)
- संतकबीरनगर (53 फीसदी)
इन जिलों में खेती पर निर्भर लोगों को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है. जल की कमी के कारण न केवल धान बल्कि अन्य फसलों की भी बुआई और उत्पादन पर असर पड़ा है.
पश्चिमी यूपी, दिल्ली और पहाड़ी राज्यों में ज्यादा बारिश
जहां एक ओर पूर्वी उत्तर प्रदेश सूखे से परेशान है, वहीं पश्चिमी यूपी, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब और उत्तराखंड जैसे इलाकों में इस बार सामान्य से अधिक बारिश हुई है. दिल्ली और हरियाणा में अच्छी बारिश रिकॉर्ड की गई. पंजाब और हिमाचल में कहीं-कहीं बाढ़ जैसी स्थिति बन गई. उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर में भारी वर्षा से भूस्खलन और बाढ़ का खतरा बढ़ गया. यानी साफ है कि मानसून का वितरण इस बार असमान रहा है. एक तरफ पानी की कमी ने खेती चौपट की, तो दूसरी ओर कहीं ज्यादा बारिश ने जान-माल का नुकसान पहुंचाया.
जलवायु परिवर्तन की चेतावनी, अब चेतने का समय
कृषि विज्ञान केंद्र, देवरिया के वैज्ञानिक डॉ. मांधाता सिंह का कहना है कि यह स्थिति जलवायु परिवर्तन का नतीजा है. पिछले चार सालों से लगातार यही ट्रेंड देखने को मिल रहा है. उन्होंने कहा, अगर अब भी हम नहीं चेते, तो आने वाले सालों में हालात और खराब हो सकते हैं. खेती को बचाने के लिए वैकल्पिक सिंचाई व्यवस्था, सूखा सहनशील फसलें और जल संचयन पर जोर देना जरूरी है.