इन दिनों ग्रामीण इलाकों में एक ऐसा परंपरागत पेड़ है जिसकी पत्तियां पशुओं, खासकर बकरियों के लिए किसी वरदान से कम नहीं हैं. यह पेड़ है बोरडी, जिसे कुछ जगहों पर पाला के नाम से भी जाना जाता है. यह पेड़ बिना किसी खास देखरेख के प्राकृतिक रूप से खेतों, रास्तों या जंगलों के आसपास उगता है. इसके हरे-भरे पत्ते पशुओं के लिए पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं. चरवाहे इन पत्तियों को तोड़कर बकरियों को खिला रहे हैं, जिससे उनकी सेहत में सुधार हो रहा है और आमदनी भी बढ़ रही है.
पेड़ का हर हिस्सा है काम का, सिर्फ पत्तियां नहीं
बोरडी का पेड़ सिर्फ पत्तियां ही नहीं देता, बल्कि इसका हर हिस्सा किसी न किसी काम में आता है. पत्तियां जहां बकरी और ऊंट जैसे जानवरों के लिए चारे के रूप में काम आती हैं, वहीं इसकी लकड़ी जलाने में काम आती है. इसके कांटे खेतों और घरों की बाड़बंदी के लिए इस्तेमाल होते हैं. इतना ही नहीं, इस पेड़ पर लगने वाले बेर भी खाए जाते हैं और कई बार औषधीय कामों में भी इनका उपयोग होता है. ग्रामीण इलाकों में इस पेड़ को बहुउपयोगी समझा जाता है.
देसी चारे से मिल रहा मुनाफा
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, कई चरवाहों के पास 50 से 60 बकरियां हैं और वे उन्हें बोरडी की पत्तियां, देसी किंकर और कचरा जैसी झाड़ियों से चारा देते हैं. गर्मियों में फोग नाम की झाड़ी भी चारे के रूप में दी जाती है. इस देसी और सस्ते चारे से बकरियां तंदरुस्त रहती हैं और बाजार में अच्छे दाम पर बिकती हैं. कुछ पशुपालक तो एक से डेढ़ लाख रुपये सालाना तक की कमाई कर रहे हैं. खास बात यह है कि इसमें खर्च बेहद कम आता है क्योंकि चारा प्राकृतिक रूप से मिल जाता है.
इंसानों के लिए भी फायदेमंद
बोरडी या पाला की पत्तियां सिर्फ पशुओं के लिए नहीं, इंसानों के लिए भी फायदेमंद मानी जाती हैं. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, बेर की पत्तियां गले की खराश, पेशाब से जुड़ी समस्याओं, खून की खराबी, और आंखों की फुंसी जैसी बीमारियों में राहत देती हैं. ग्रामीण इलाकों में लोग इन पत्तियों का काढ़ा बनाकर पीते हैं या घाव और चोट पर लेप के रूप में भी इस्तेमाल करते हैं. यह वजन को कंट्रोल करने और शरीर से विषैले तत्वों को बाहर निकालने में मदद करती है.
देसी तरीका बना रहा है कम लागत में ज्यादा आमदनी का रास्ता
पशुपालन में देसी और प्राकृतिक संसाधनों का सही उपयोग करके ग्रामीण आज आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहे हैं. बोरडी जैसे पेड़ और देसी झाड़ियों से उन्हें न केवल अच्छा चारा मिल रहा है बल्कि खर्च भी बच रहा है. चारे पर आने वाला खर्च कम होने से मुनाफा बढ़ रहा है और जानवर भी सेहतमंद रहते हैं. अगर इस देसी ज्ञान को और बढ़ावा मिले तो गांवों में रोजगार के अच्छे अवसर खड़े हो सकते हैं. यह तरीका महिलाओं और युवाओं के लिए भी बकरी पालन को आसान और सस्ता बना रहा है.