Fish Disease : अगर आप मछली पालन करते हैं तो आपने अक्सर यह देखा होगा कि कभी-कभी तालाब में मछलियां अचानक सुस्त हो जाती हैं, ऊपर तैरने लगती हैं या मरने लगती हैं. ऐसे समय में किसान समझ नहीं पाते कि आखिर गलती कहां हो गई. सच तो यह है कि मछलियाँ बोल नहीं सकतीं, लेकिन उनका शरीर साफ-साफ बता देता है कि वह बीमार हैं. सही समय पर इलाज न किया जाए तो कई बार पूरा तालाब ही साफ हो जाता है और किसान को भारी नुकसान उठाना पड़ता है. अच्छी बात यह है कि अगर समय रहते पहचान कर ली जाए तो ज्यादातर बीमारियों से बचाव और इलाज दोनों संभव है.
मछलियों के बीमार होने की सबसे बड़ी वजह
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, ज्यादातर किसान सोचते हैं कि मछली को सिर्फ खाना दे दो, बस वह अपने आप बढ़ेगी. लेकिन असल सच यह है कि साफ और संतुलित पानी ही मछलियों के लिए ऑक्सीजन और दवाई दोनों का काम करता है. अगर पानी में अमोनिया बढ़ जाए, पीएच गड़बड़ा जाए या तापमान अचानक बदल जाए तो मछलियों को तनाव (Stress) होने लगता है. तनाव का मतलब है कि मछलियों की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है, और फिर बीमारी जल्दी पकड़ लेती है.
पानी के सही मानक याद रखें:–
पैरामीटर | सही स्तर |
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पीएच | 7.5 से 8.5 |
घुलित ऑक्सीजन | 5 से 9 पीपीएम |
पानी का तापमान | 25 से 30°C |
क्षारीयता | 75 से 175 पीपीएम |
कठोरता | 75 से 150 पीपीएम |
ड्रॉप्सी रोग
ड्रॉप्सी बीमारी में मछली के पेट में असामान्य रूप से पानी भर जाता है, जिससे उसका शरीर फूला हुआ दिखता है. इसके साथ ही मछली की त्वचा पर लाल धब्बे और अल्सर भी दिखाई देने लगते हैं, जिससे मछली कमजोर और सुस्त हो जाती है. इस रोग को समय पर न सुधारा जाए तो मछली की मृत्यु हो सकती है. इलाज के लिए टेरामाइसिन दवा को मछली के चारे में मिलाकर लगातार दो हफ्ते तक खिलाना चाहिए. इससे मछली धीरे-धीरे स्वस्थ होने लगती है.
पंख और पूंछ गलना
अगर मछली के पंख टूटे-फटे दिखने लगें या पूंछ का रंग फीका होकर गलने लगे तो यह फिन और टेल रॉट नाम की बीमारी का संकेत है. समय रहते इलाज न किया जाए तो पंख पूरी तरह नष्ट हो सकते हैं और मछली कमजोर होकर मर भी सकती है. इसके उपचार के लिए 1 लीटर पानी में 2 मिलीग्राम कॉपर सल्फेट घोल तैयार करें और मछलियों को उसमें 1-2 मिनट तक डुबोएं. साथ ही 1 किलो चारे में 10-15 ग्राम टेट्रासाइक्लिन मिलाकर कुछ दिन तक खिलाएं.
सरीर पर लाल घाव या अल्सर
अगर मछली के शरीर या सिर पर लाल गोल निशान दिखने लगें और वह खाना छोड़ दे, तो समझ लें कि उसे एपिज़ूटिक अल्सरेटिव सिंड्रोम (EUS) नामक रोग हो चुका है. यह धीरे-धीरे मांस तक पहुंचकर गहरे घाव बना देता है. इलाज के लिए तालाब के पानी में CIFAX दवा को 1 लीटर प्रति हेक्टेयर-मीटर की मात्रा में मिलाया जाता है. लगभग 7 दिनों के भीतर घाव भरने लगते हैं और मछलियों में फिर से तैरने और खाने की क्षमता लौट आती है.
सर्दियों में होने वाली फंगस
सर्दियों में मछलियों पर अगर रूई जैसी सफेद परत या धागे दिखने लगें तो समझ लें कि यह सैप्रोलेग्निया नाम का फंगल इन्फेक्शन है. यह बीमारी धीरे-धीरे मछली के पूरे शरीर, पंख और गलफड़ों तक फैल सकती है. इसका इलाज करने के लिए मछलियों को 1:10000 अनुपात वाले मैलाकाइट ग्रीन के घोल में करीब 3 सेकंड तक डुबोना चाहिए. इसके साथ ही तालाब के पानी में फॉर्मेलिन घोल मिलाने से फंगस जल्दी खत्म होता है और मछलियां स्वस्थ होने लगती हैं.
आर्गुलस (जूसन)–शरीर पर छोटे-छोटे कीड़े चिपक जाना
अगर मछली बार-बार अपने शरीर को तालाब की दीवार, पत्थर या जमीन से रगड़ती दिखे तो समझ लीजिए कि उस पर आर्गुलस नाम का कीड़ा चिपक गया है. ये परजीवी मछली की त्वचा को काटकर उसका खून चूसते हैं, जिससे मछली को जलन, बेचैनी और कमजोरी महसूस होती है. इलाज के लिए मछली को 3 से 5 फीसदी नमक वाले पानी में करीब 5 से 10 मिनट तक डुबोकर रखें. इससे कीड़े मर जाते हैं और मछली धीरे-धीरे स्वस्थ होने लगती है
बचाव ही सबसे बड़ा इलाज
- हर 10-15 दिन में पानी को हिलाकर ऑक्सीजन बढ़ाएं.
- तालाब में अधिक मछलियां न छोड़ें, भीड़ से बीमारी जल्दी फैलती है.
- खाना उतना ही डालें जितना 10 मिनट में खत्म हो जाए.
- नई मछलियों को तालाब में डालने से पहले 5 फीसदी नमक वाले पानी में 5 मिनट डुबोएं.
- अगर कोई मछली बीमार दिखे तो उसे तुरंत अलग तालाब में रखें.