ICMR की रिपोर्ट पर बवाल! कीटनाशक उद्योग ने उठाए सवाल, अध्ययन वापस लेने की मांग तेज

अध्ययन में यह भी सामने आया कि जो किसान लंबे समय तक खेतों में काम करते हैं और बार-बार कीटनाशक का उपयोग करते हैं, उनमें PON1 नामक बायोमार्कर का स्तर अधिक पाया गया. यह बढ़ा हुआ स्तर शरीर में सूजन और न्यूरोलॉजिकल समस्याओं की संभावना का संकेत देता है.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 4 Dec, 2025 | 07:44 AM

भारत में कीटनाशकों के उपयोग और उनके प्रभाव को लेकर अक्सर बहस होती रहती है, लेकिन हाल ही में एक नया विवाद तेज हो गया है. इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन में दावा किया गया कि लगातार कीटनाशक के संपर्क में रहने वाले किसानों में अवसाद (डिप्रेशन), हल्की संज्ञानात्मक समस्याएं (माइल्ड कॉग्निटिव इम्पेयरमेंट) और मूवमेंट डिसऑर्डर जैसे जोखिम बढ़ जाते हैं. इस अध्ययन के सामने आने के बाद पेस्टिसाइड निर्माता कंपनियों के संगठन—क्रॉप केयर फेडरेशन ऑफ इंडिया (CCFI)—ने इसे तुरंत वापस लेने की मांग कर दी. आइए जानते हैं क्या है पूरा मामला.

अध्ययन क्या कहता है? ICMR की चिंताएं

ICMR के अध्ययन ने खेतों में काम करने वाले लोगों के स्वास्थ्य को लेकर एक गंभीर तस्वीर पेश की है. पश्चिम बंगाल के पूर्व बर्दवान जिले के गलसी-2 ब्लॉक में 808 लोगों पर किए गए इस शोध में पाया गया कि लगभग 19 प्रतिशत प्रतिभागियों में हल्की संज्ञानात्मक यानी याददाश्त और सोचने-समझने की क्षमता से जुड़ी समस्याएं थीं. वहीं, 8.3 प्रतिशत लोग अवसाद से जूझ रहे थे और करीब 1.5 प्रतिशत लोगों में मूवमेंट डिसऑर्डर जैसे लक्षण मिले.

अध्ययन में यह भी सामने आया कि जो किसान लंबे समय तक खेतों में काम करते हैं और बार-बार कीटनाशक का उपयोग करते हैं, उनमें PON1 नामक बायोमार्कर का स्तर अधिक पाया गया. यह बढ़ा हुआ स्तर शरीर में सूजन और न्यूरोलॉजिकल समस्याओं की संभावना का संकेत देता है. कुल मिलाकर, रिपोर्ट का निष्कर्ष यह था कि लगातार कीटनाशकों के संपर्क में रहने से मानसिक और तंत्रिका तंत्र से जुड़ी बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है.

उद्योग संगठन CCFI क्यों नाराज है?

CCFI ने ICMR के इस अध्ययन पर कड़ी आपत्ति जताई है. उनका कहना है कि यह रिपोर्ट किसानों और देश की छवि को गलत तरीके से प्रभावित करती है. संगठन की मुख्य आपत्तियां इस प्रकार हैं:

कीटनाशक उपयोग पर गलत संदेश

CCFI का कहना है कि भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कीटनाशक निर्यातक है, जो 150 से अधिक देशों को सप्लाई करता है. लेकिन भारत की अपनी खपत बहुत कम है—सिर्फ 0.24 किलो प्रति हेक्टेयर, जो वैश्विक औसत से काफी नीचे है. उनका तर्क है कि भारतीय किसान बहुत कम और समझदारी से कीटनाशक का उपयोग करते हैं.

केस-कंट्रोल अध्ययन की सीमाएं

संगठन का कहना है कि ऐसे अध्ययन कारण और प्रभाव को साबित नहीं कर सकते. यह सिर्फ तुलना करते हैं और कई बार भ्रमित करने वाले परिणाम भी देते हैं. उन्होंने उदाहरण दिया कि “पैरासिटामॉल जैसे सामान्य दवा पर भी शोध में विरोधाभासी बातें सामने आई हैं, कभी कहा जाता है कि यह कॉग्निटिव समस्या बढ़ाती है, तो कभी कहा जाता है कि सुधार करती है.”

स्वास्थ्य समस्याओं के अन्य कारण भी हो सकते हैं

CCFI ने ध्यान दिलाया कि जिस जगह पर यह अध्ययन किया गया वहां भारी कुपोषण और एनीमिया पाया जाता है. एनीमिया अपने आप में स्मरण शक्ति कमजोर करना, ध्यान केंद्रित करने में समस्या, थकान और चिड़चिड़ापन जैसी स्थितियां पैदा करता है. उनका कहना है कि सिर्फ कीटनाशकों को जिम्मेदार ठहराना वैज्ञानिक रूप से सही नहीं है.

ICMR क्या करेगा? मामला कहां अटका है?

CCFI ने ICMR के डायरेक्टर जनरल को चिट्ठी लिखकर इस अध्ययन को “अपूर्ण”, “वैज्ञानिक रूप से त्रुटिपूर्ण” और “किसान विरोधी” बताया है और इसे तुरंत वापस लेने की मांग की है. अब फैसला ICMR के हाथ में है, वह चाहे तो अध्ययन का दोबारा मूल्यांकन कर सकता है, कुछ सुधार कर सकता है या फिर इसे पूरी तरह वापस ले सकता है. हालांकि, फिलहाल ICMR की ओर से इस पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं मिली है.

किसानों के लिए क्या मायने हैं?

यह विवाद किसानों के बीच डर और भ्रम, दोनों ही बढ़ा सकता है. लेकिन असली बात यह है कि कीटनाशकों का सुरक्षित उपयोग भी जरूरी है, उनके दुष्प्रभावों पर निष्पक्ष और विस्तृत शोध भी जरूरी है, और वैज्ञानिक निष्कर्षों का किसी राजनीतिक या व्यावसायिक मकसद के लिए इस्तेमाल बिल्कुल नहीं होना चाहिए. फिलहाल बहस तेज हो चुकी है और अब सभी की निगाहें ICMR के अगले फैसले पर टिकी हुई हैं.

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