Kashmir saffron: कश्मीर की धरती अपनी खूबसूरती और खुशबूदार केसर के लिए दुनिया भर में जानी जाती है. हर साल अक्टूबर-नवंबर के महीने में जब पंपोर और उसके आस-पास की जमीनें बैंगनी रंग में रंग जाती थीं, तब दूर-दूर से लोग इस नजारे को देखने आते थे. लेकिन इस बार तस्वीर कुछ और है केसर के खेत सूने पड़े हैं, फूलों की संख्या बेहद कम है और किसानों के चेहरों पर चिंता की लकीरें साफ झलक रही हैं.
पंपोर के खेतों में नहीं खिला ‘बैंगनी कालीन’
कश्मीर के पंपोर क्षेत्र, जिसे “सैफ्रॉन टाउन” कहा जाता है, इस साल अपनी पहचान खोता नजर आ रहा है. हर साल जहां धरती केसर की खुशबू से महक उठती थी, इस बार वहां मुश्किल से 15 फीसदी फूल खिले हैं. किसानों के मुताबिक, मौसम में लगातार हो रहे बदलाव और पिछले साल की भीषण गर्मी ने केसर की फसल को बुरी तरह प्रभावित किया है.
कश्मीर विजन की खहर के अनुसार, सैफ्रॉन ग्रोअर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अब्दुल मजीद वानी ने बताया, “पिछले साल और इस साल पड़ी गर्म लहरों ने पौधों की जीवन-चक्र को बिगाड़ दिया. बारिश समय पर हुई, लेकिन तापमान बहुत ज्यादा था. इसी वजह से केसर के कंद (Corms) सही ढंग से विकसित नहीं हो पाए. इस बार उत्पादन सामान्य से सिर्फ 15 प्रतिशत ही रह गया है. उम्मीद है कि अगले साल हालात सुधरेंगे.”
किसानों की मेहनत पर फिरा पानी
पंपोर के रहने वाले किसान गुलाम नबी ने बताया, “हमने इस बार खेतों की अच्छी तैयारी की थी, खाद डाली, सिंचाई भी की, लेकिन फूल बहुत कम आए. हमने सोचा था कि बारिश से मिट्टी को नमी मिलेगी और फसल बेहतर होगी, लेकिन गर्मी ने सब बिगाड़ दिया.”
कोनिबाल गांव की महिला किसान जाहिदा बानो ने बताया, “पिछले साल गर्मी ने कंदों को खराब कर दिया था, और इस बार फूल तो आए हैं लेकिन बहुत कमजोर हैं. सरकार को हमें वैज्ञानिक सलाह और आर्थिक मदद दोनों की जरूरत है, वरना यह परंपरा खत्म हो जाएगी.”
जलवायु परिवर्तन ने बढ़ाई मुश्किलें
कश्मीर के पुराने किसानों का कहना है कि उन्होंने ऐसा मौसम पहले कभी नहीं देखा. चांधारा गांव के अब्दुल अहद बताते हैं, “हम पीढ़ियों से केसर उगा रहे हैं, लेकिन इस बार खेतों में कई जगह एक भी फूल नहीं खिला. ऐसा लगता है कि मिट्टी अपनी ताकत खो रही है. जलवायु परिवर्तन का असर अब सीधे हमारी जमीन पर दिखने लगा है.”
युवा किसान शब्बीर अहमद, जिन्होंने इस बार आधुनिक स्प्रिंकलर सिस्टम का प्रयोग किया, बताते हैं, “तकनीक लगाने के बावजूद नतीजा अच्छा नहीं मिला. शायद मिट्टी को फिर से जीवित करने की जरूरत है. अगर विशेषज्ञ मार्गदर्शन नहीं देंगे तो आने वाले वर्षों में केसर की खेती खत्म हो सकती है.”
सरकारी मदद और उम्मीद की किरण
कृषि विभाग ने भी इस साल की खराब पैदावार को लेकर चिंता जताई है. पुलवामा जिले के एक अधिकारी ने बताया कि विभाग फसल की स्थिति पर नजर रख रहा है और किसानों की मदद के लिए राष्ट्रीय केसर मिशन (National Saffron Mission) के तहत कदम उठाए जाएंगे. उन्होंने कहा, “हम नुकसान का आंकलन कर रहे हैं और किसानों को राहत देने की योजना तैयार की जा रही है.”
कश्मीर में उम्मीद बाकी
कश्मीर का केसर न सिर्फ एक फसल है, बल्कि यहां की संस्कृति, अर्थव्यवस्था और पहचान का अहम हिस्सा है. यह घाटी की मिट्टी में रचा-बसा गौरव है, जो अब बदलते मौसम की मार झेल रहा है.
अब्दुल मजीद वानी कहते हैं, “प्रकृति ने हमें फिर परखा है, लेकिन हम हार नहीं मानेंगे. उम्मीद है कि अगले साल मौसम साथ देगा और फिर से खेत बैंगनी कालीन से ढक जाएंगे.”
इस साल चाहे केसर के खेतों में खुशबू कम है, पर कश्मीर के किसानों की उम्मीदें अब भी उतनी ही गहरी हैं — जैसे मिट्टी में सोई हुई वो कली, जो अगले मौसम में फिर से खिलने का इंतजार कर रही है.