सरकार ने दी चेतावनी: जलवायु परिवर्तन से पशु और मछलियां प्रभावित, फसलें भी खतरे में

सरकार ने चेताया कि सिर्फ फसलें ही नहीं, पशुधन और मछली पालन पर भी जलवायु परिवर्तन का असर दिखने लगा है. दूध, मांस, ऊन और बैल जैसे कार्यशील पशुओं की उत्पादकता में गिरावट देखी जा रही है.

नई दिल्ली | Updated On: 26 Jul, 2025 | 12:03 PM

कभी बेमौसम बारिश, तो कभी झुलसाने वाली गर्मी… ये हालात अब सिर्फ एक मौसम की कहानी नहीं, बल्कि खेती की सेहत पर एक बड़ा खतरा बन चुके हैं. राज्यसभा में सरकार ने खुद माना है कि जलवायु परिवर्तन का असर आने वाले वर्षों में फसल उत्पादन पर गहराता जाएगा. अगर वक्त रहते सुधार के कदम नहीं उठाए गए, तो सबसे ज्यादा मार पड़ेगी बारिश पर निर्भर धान की फसल पर.

घट सकती है वर्षा आधारित धान की उपज

द इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार, कृषि राज्य मंत्री भागीरथ चौधरी ने बताया कि सरकार की ओर से ‘जलवायु-लचीली कृषि परियोजना’ (NICRA) के तहत यह आकलन किया गया है कि 2050 तक वर्षा आधारित धान की उपज में करीब 20 फीसदी और 2080 तक यह गिरावट 10 से 47 फीसदी तक पहुंच सकती है. वहीं सिंचित धान की उपज में भी 2050 तक 3.5 फीसदी और 2080 तक 5 फीसदी की गिरावट का अनुमान है.

गेहूं, मक्का और बागवानी फसलें भी होंगी प्रभावित

सरकार ने यह भी बताया कि सिर्फ धान ही नहीं, गेहूं की पैदावार में 2050 तक 19.3 फीसदी और 2080 तक 40 फीसदी की भारी गिरावट हो सकती है. इसी तरह खरीफ मक्का की उपज में 10-19 फीसदी (2050 तक) और 20 फीसदी से ज्यादा (2080 तक) की कमी आने की आशंका है.

बागवानी फसलें भी अछूती नहीं रहेंगी. मंत्री ने उदाहरण देते हुए बताया कि प्याज में लगातार छह दिन पानी भरने से 36.6 फीसदी तक उपज का नुकसान होता है. टमाटर में फूल आने के समय यदि तापमान 40 डिग्री से अधिक हो जाए, तो 65 फीसदी उपज घट जाती है. हिमाचल और उत्तर भारत में सेब की खेती अब नीचे की बजाय पहाड़ी ऊंचाई की ओर खिसक रही है, जिससे 30 फीसदी उपज घट रही है.

पशुधन और मछली पालन पर भी असर

मंत्री ने चेताया कि सिर्फ फसलें ही नहीं, पशुधन और मछली पालन पर भी जलवायु परिवर्तन का असर दिखने लगा है. दूध, मांस, ऊन और बैल जैसे कार्यशील पशुओं की उत्पादकता में गिरावट देखी जा रही है. वहीं तापमान में सिर्फ 1°C की बढ़ोतरी से ताजे पानी और समुद्री मछलियों की प्रजातियों पर गंभीर असर पड़ सकता है. ब्रैकिश जल (खारा पानी) की मछली पालन प्रणाली भी बाढ़ और चक्रवात जैसी घटनाओं से 50 से 100 फीसदी तक प्रभावित हो सकती है.

सरकार क्या कर रही है?

सरकार ने किसानों को जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए तैयार करने हेतु कई कदम उठाए हैं. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) और कृषि एवं किसान कल्याण विभाग (DA&FW) मिलकर जलवायु-लचीली तकनीकों का विकास कर रहे हैं.
इनमें शामिल हैं:

  • जलवायु सहनशील बीजों की 2661 किस्में (अनाज, तिलहन, दालें, रेशा, चारा, गन्ना आदि)
  • शून्य जुताई बीजारोपण
  • वैकल्पिक धान रोपण विधियां
  • ऑर्गेनिक खेती, हरी खाद, सूक्ष्म सिंचाई
  • मृदा सुधार तकनीक और नमी संरक्षण उपाय

इन तकनीकों को 151 जिलों में कृषि विज्ञान केंद्रों (KVK) के माध्यम से किसानों को सिखाया जा रहा है.

दीर्घकालिक उपाय- राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन

सरकार ने ‘नेशनल मिशन फॉर सस्टेनेबल एग्रीकल्चर’ (NMSA) को भी लागू किया है, जो जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPC) का हिस्सा है. इसका मकसद किसानों को चरम मौसमी घटनाओं के प्रति जागरूक बनाना और खेती को टिकाऊ बनाना है.

Published: 26 Jul, 2025 | 11:46 AM