कश्मीर घाटी में हाल ही में हुई लगातार बारिश ने किसानों की खुशियों और चिंताओं को एक साथ उजागर किया है. जहां एक ओर सेब और धान की फसलें बाढ़ और भूस्खलन के कारण बुरी तरह प्रभावित हुई हैं, वहीं घाटी की खास फसल केसर को इस बारिश ने नई उम्मीद दी है.
केसर किसानों के लिए नई उम्मीद
बिजनेस लाइन की खबर के अनुसार, पम्पोर के किसान अब्दुल मजीद बताते हैं कि केसर की फसल को अगस्त के दूसरे हफ्ते से लेकर सितंबर के दूसरे हफ्ते तक पर्याप्त नमी की आवश्यकता होती है. “इस साल पिछले कुछ कमजोर मौसमों के बाद हम अच्छी पैदावार की उम्मीद कर रहे हैं,” वह कहते हैं. केसर की खेती में पानी का सही संतुलन बेहद जरूरी है, और जुलाई-अगस्त की बारिश ने इस साल फसल को पर्याप्त नमी प्रदान की.
बदलते मौसम और उत्पादन में गिरावट
पिछले दो दशकों में कश्मीर में केसर की पैदावार में लगातार गिरावट आई है. 1996-97 में 5,700 हेक्टेयर भूमि पर केसर की खेती होती थी, जो 2019-20 में घटकर केवल 2,387 हेक्टेयर रह गई. उत्पादन भी लगभग 65 प्रतिशत कम हो गया. इस कमी को दूर करने और पारंपरिक खेती को बढ़ावा देने के लिए 2023 में होलिस्टिक एग्रीकल्चर डेवलपमेंट प्रोग्राम (HADP) के तहत 146 करोड़ रुपये की परियोजना शुरू की गई.
पिछले साल जून और जुलाई में लंबी सूखी अवधि और 34 डिग्री सेल्सियस तक तापमान बढ़ने के कारण केसर की पैदावार 20–30 प्रतिशत कम रही थी. हालांकि, इस साल जुलाई और अगस्त में हुई बारिश ने पम्पोर और आसपास के उच्चभूमि क्षेत्रों में फसल के लिए पर्याप्त नमी प्रदान की.
अन्य फसलों की हालत
जहां केसर के लिए बारिश फायदेमंद रही, वहीं घाटी की अन्य प्रमुख फसलें सेब और धान इतनी भाग्यशाली नहीं रहीं. अगस्त में हुई बाढ़ और भूस्खलन के कारण कई बाग और खेत जलमग्न हो गए. पुलवामा, रीसी, उधमपुर, सांबा और डोडा जैसे जिलों में अत्यधिक बारिश हुई, जिससे किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ा.
किसानों के लिए मिलेजुले परिणाम
किसानों का कहना है कि सितंबर के मध्य से केसर को सूखे मौसम की जरूरत होती है ताकि फूल और कटाई सही ढंग से हो सके. अधिक नमी इस नाजुक फसल को नुकसान पहुंचा सकती है. इस लिहाज से अब किसान हर मौसम की हलचल पर नजर बनाए हुए हैं.
कुल मिलाकर, कश्मीर की इस बार की बारिश ने किसानों के लिए मिलेजुले परिणाम दिए हैं. सेब और धान किसानों को नुकसान पहुंचा रहे हैं, जबकि केसर की फसल ने उम्मीद जगाई है. आने वाले महीनों में फसल कटाई के बाद ही असली तस्वीर सामने आएगी, लेकिन फिलहाल घाटी में किसानों के बीच उत्साह और चिंता दोनों देखी जा रही हैं.