मुश्किल दौर से गुजर रही अखरोट की खेती, बुनियादी ढांचे और मार्केट की कमी से किसान परेशान

कश्मीर की अखरोट खेती गहराते संकट से जूझ रही है. कमजोर बुनियादी ढांचे, प्रोसेसिंग की कमी और विदेशी प्रतिस्पर्धा के कारण किसानों को कम दाम मिलते हैं. ऑर्गेनिक और उच्च गुणवत्ता के बावजूद ब्रांडिंग व मार्केट सपोर्ट न होने से घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार में नुकसान हो रहा है.

Kisan India
नोएडा | Published: 21 Oct, 2025 | 11:30 PM

Walnut Farming: कश्मीर घाटी में कभी ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ रही अखरोट की खेती अब मुश्किल दौर से गुजर रही है. कमजोर बुनियादी ढांचे, बाजार से जुड़ाव की कमी और विदेशी प्रतिस्पर्धा के चलते यह उद्योग अब संकट में है. भारत हर साल करीब 3.2 लाख मीट्रिक टन अखरोट पैदा करता है, जिसमें से 95 फीसदी से ज्यादा जम्मू-कश्मीर से आता है. देशभर में कुल 1,09,000 हेक्टेयर में अखरोट की खेती होती है, जिसमें से 89,000 हेक्टेयर सिर्फ जम्मू-कश्मीर में है. इतनी बड़ी हिस्सेदारी के बावजूद इस क्षेत्र में आधुनिक प्रोसेसिंग, पैकेजिंग और संगठित बाजार की भारी कमी है. पिछले कुछ सालों में कई प्रोसेसिंग यूनिट्स बंद हो चुकी हैं, जिससे हालात और बिगड़े हैं.

पुलवामा के एक किसान ने कहा कि कैलिफोर्निया, चीन और चिली से आने वाले सस्ते अखरोटों  से मुकाबला करना मुश्किल हो गया था, इसलिए कई यूनिट्स बंद करनी पड़ीं. कश्मीर ड्राई फ्रूट एसोसिएशन के अध्यक्ष हाजी बहादुर खान ने कहा कि 5 फीसदी जीएसटी ने इस उद्योग पर और बोझ डाल दिया है. उन्होंने कहा कि हम लंबे समय से यह मांग कर रहे हैं कि ड्राई फ्रूट  पर जीएसटी हटाई जाए.

अखरोट बेहद कम दामों पर बेचने पड़ते हैं

किसान बताते हैं कि सप्लाई चेन और मंडियों की व्यवस्था न होने की वजह से उन्हें अपने अखरोट बेहद कम दामों पर बेचने पड़ते हैं. कुपवाड़ा के बशीर अहमद कहते हैं कि हमारे पास न तो प्रोसेसिंग हब हैं और न ही मंडियां. फसल के बाद हमें लोकल व्यापारियों या बिचौलियों  पर निर्भर रहना पड़ता है, जो अखरोट घाटी से बाहर ले जाकर अपनी मर्जी से दाम तय करते हैं. इस उद्योग से कश्मीर में 7 लाख से ज्यादा लोग सीधे या परोक्ष रूप से जुड़े हुए हैं.

सप्लाई चेन की सबसे कमजोर कड़ी

उद्योग से जुड़े जानकारों का कहना है कि अखरोट की कटाई के बाद की प्रक्रिया सप्लाई चेन की सबसे कमजोर कड़ी है. ज्यादातर किसान अखरोट को हाथ से सुखाते हैं, वो भी कई बार अस्वच्छ हालात में. इसके अलावा वे पुराने तरीकों से अखरोट तोड़ते हैं, जिससे उनकी गुणवत्ता और निर्यात मूल्य दोनों कम हो जाते हैं. एक व्यापारी ने कहा कि सही ग्रेडिंग, ब्रांडिंग और क्वालिटी कंट्रोल सिस्टम की कमी के कारण कश्मीरी अखरोट  बाजार में प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाते. उन्होंने सुझाव दिया कि सरकार को आधुनिक प्रोसेसिंग क्लस्टर और मार्केटिंग प्लेटफॉर्म तैयार करने में निवेश करना चाहिए, ताकि यह कारोबार फिर से मजबूत हो सके.

घरेलू और विदेशी दोनों बाजारों में नुकसान

किसानों का कहना है कि अखरोट की खासियत होने के बावजूद उन्हें अच्छा दाम नहीं मिल पाता. इसकी वजह सही ब्रांडिंग और एक्सपोर्ट प्रमोशन की कमी है. अनंतनाग के किसान रिजवान अहमद ने बताया कि हमारे अखरोट पूरी तरह ऑर्गेनिक हैं. इनमें विदेशी अखरोटों के मुकाबले ज्यादा तेल होता है. लेकिन प्रोसेसिंग और पैकेजिंग की सुविधा नहीं होने से हम बाजार में पीछे रह जाते हैं. इससे घरेलू और विदेशी दोनों बाजारों में नुकसान होता है.

Get Latest   Farming Tips ,  Crop Updates ,  Government Schemes ,  Agri News ,  Market Rates ,  Weather Alerts ,  Equipment Reviews and  Organic Farming News  only on KisanIndia.in

Published: 21 Oct, 2025 | 11:30 PM

फलों और सब्जियों के उत्पादन में भारत किस नंबर पर है?

Side Banner

फलों और सब्जियों के उत्पादन में भारत किस नंबर पर है?