खुरपका रोग को कहें बाय-बाय, गाय-भैंस और भेड़-बकरी को स्वस्थ रखने के नोट कर लें ये आसान उपाय

खुरपका रोग गाय, भैंस, भेड़, बकरी और सूअर में फैलता है. यह किसानों की मेहनत को प्रभावित कर सकता है. ऐसे में पशुपालकों को विशेष ध्यान देना चाहिए, नहीं तो पशुओं की जान भी जा सकती है. आइए जानते हैं कि इस बीमारी से बचने के लिए पशुपालकों को किन बातों का ध्यान देना चाहिए.

Kisan India
नोएडा | Published: 21 Oct, 2025 | 08:12 PM

जानवरों के स्वस्थ जीवन और दूध-मांस उत्पादन के लिए खुरपका रोग (Hoof Disease) एक बड़ी चुनौती बनता जा रहा है. यह रोग सिर्फ गाय-भैंस तक सीमित नहीं है, बल्कि भेड़, बकरी, सूअर और जंगली पशुओं में भी फैलता है. वायरस आसानी से एक जानवर से दूसरे तक फैलता है और किसानों की मेहनत पर पानी फेर सकता है. इसलिए समय रहते सतर्कता और बचाव बेहद जरूरी है.

खुरपका रोग क्या है और कैसे फैलता है?

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, खुरपका रोग या (Hoof Disease) एक संक्रामक रोग  है, जिसका मुख्य कारण खुर वाले पशुओं में फैलने वाला एफएमडी वायरस (FMDV) है. यह वायरस संक्रमित पशु के खून, दूध, लार, या अन्य तत्वों के माध्यम से फैलता है. हवा में मौजूद वायरस भी अन्य पशुओं को संक्रमित कर सकता है. किसान अक्सर सोचते हैं कि केवल गंदगी या बारिश से ही रोग फैलता है, लेकिन यह वायरस बहुत तेजी से एक पशु से दूसरे में संक्रमण कर सकता है. इस रोग से प्रभावित पशु खुर दर्द, चलने में कठिनाई और कम दूध उत्पादन जैसी समस्याओं का सामना करता है.

किन कारणों से पशु संक्रमित होते हैं

खुरपका रोग फैलने के कई प्रमुख कारण हैं, जिनसे किसान सावधान रहें. सबसे पहले, संक्रमित पशु या उनके संपर्क में आने वाले तत्व इस रोग का मुख्य स्रोत होते हैं. इसके अलावा, संक्रमित पशु के दूध, खून या लार के सीधे संपर्क से भी रोग फैल सकता है. दूषित पानी या चारा भी संक्रमण का कारण बन सकते हैं. भीड़-भाड़ वाले स्थल, जहां कई पशु एक साथ रहते हैं, वहां संक्रमण का खतरा और अधिक बढ़ जाता है. इसलिए किसानों को समझना जरूरी है कि रोग बहुत जल्दी फैलता है. संक्रमित पशु को तुरंत अलग करना और चारों ओर स्वच्छता बनाए रखना बेहद जरूरी है.

बचाव के आसान और असरदार तरीके

खुरपका रोग  से बचाव के लिए कुछ सरल और असरदार कदम बेहद महत्वपूर्ण हैं. सबसे पहले, पशुओं के चारों ओर का स्थान हमेशा स्वच्छ और सूखा रखें. इससे रोगाणु पनपने का अवसर नहीं पाते. यदि कोई पशु संक्रमित हो, तो उसे तुरंत बाकी पशुओं से अलग कर दें. समय-समय पर पशु चिकित्सक से स्वास्थ्य जांच कराएं, ताकि किसी भी बीमारी का जल्दी पता चल सके. इसके साथ ही, खुरपका रोग के खिलाफ नियमित टीकाकरण (वैक्सीनेशन) कराना जरूरी है. इससे पशुओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है और संक्रमण फैलने का खतरा काफी कम हो जाता है.

खुरपका रोग में उपयोग होने वाली दवाइयां

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, संक्रमित पशुओं  के लिए कुछ विशेष दवाइयां उपयोग की जाती हैं, लेकिन इन्हें केवल पशु चिकित्सक की सलाह से ही दें.

  • आइवरमेक्टिन (Ivermectin):- पैराजिटिक संक्रमण को रोकने में मदद करता है.
  • सुल्फॉनामाइड (Sulfonamide):- संक्रमण और जीवाणुओं से लड़ने में कारगर.
  • एंटीबायोटिक्स (Antibiotics):- रोगाणुओं को खत्म कर लक्षण कम करने में मदद.
  • वैक्सीनेशन: रोग से बचाने और प्रतिरक्षा मजबूत करने के लिए.

किसानों को खुद से दवा देने की कोशिश नहीं करनी चाहिए. बिना चिकित्सक की सलाह दवा देने से पशु की सेहत और बढ़ सकती है.

किसान इस रोग से कैसे रहें सतर्क

अपने पशुओं पर हमेशा ध्यान रखें और उनकी सेहत पर नजर बनाए रखें. खुर में सूजन, घाव, चलने में कठिनाई या दूध कम होना जैसी समस्याओं पर तुरंत ध्यान दें. संक्रमित पशु को बाकी से अलग करें और तुरंत पशु चिकित्सक को दिखाएं. साथ ही, गोबर, पानी और चारे की सफाई का विशेष ध्यान रखें. सावधानी और समय पर उठाए गए कदमों से खुरपका रोग फैलने की संभावना काफी कम हो जाती है और पशुओं की सेहत सुरक्षित रहती है.

प्राकृतिक बचाव और सुरक्षित पालन

खुरपका रोग से बचाव केवल दवा या टीकाकरण तक सीमित नहीं है. प्राकृतिक और सुरक्षित पालन भी इसे रोकने में मदद करता है. इसके लिए चारों ओर साफ-सफाई और सुखी वातावरण बनाए रखना जरूरी है. पशुओं का नियमित टीकाकरण और स्वास्थ्य जांच आवश्यक है. संक्रमित पशुओं से दूरी बनाए रखना और उन्हें अलग रखना भी रोग फैलने से रोकता है. इसके साथ ही पोषणयुक्त और संतुलित आहार देना आवश्यक है. इन सभी उपायों का पालन करने से किसान अपने पशुओं को स्वस्थ रख सकते हैं और दूध-मांस उत्पादन  को सुरक्षित बना सकते हैं. यह रोग नियंत्रण का सबसे प्रभावी तरीका है.

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Published: 21 Oct, 2025 | 08:12 PM

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