पंजाब में गर्मी ने रोकी धान रोपाई की रफ्तार, तेज धूप से मजदूरों को परेशानी

पंजाब में भीषण गर्मी और मजदूरों की कमी के चलते धान की रोपाई धीमी पड़ गई है. प्रवासी मजदूरों की मांग बढ़ी है क्योंकि वे सस्ते और कुशल होते हैं. मजदूरी दर 6,000–7,000 रुपये तक पहुंची है.

वेंकटेश कुमार
नोएडा | Published: 14 Jun, 2025 | 06:11 PM

पंजाब के पटियाला में तेज गर्मी ने किसानों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. मजदूर चिलचिलाती धूप में धान की रोपाई करने से हिचक रहे हैं, जिससे काम धीमा पड़ गया है. 5 जून से खराब मौसम की वजह से मजदूरी दर भी बढ़ गई है. किसान संगठनों का कहना है कि सरकार ने इस बार रोपाई की तारीख 1 जून कर दी, लेकिन गर्मी की वजह से रोपाई की रफ्तार अब भी धीमी है.

भारतीय किसान संघ के सतनाम सिंह बेहड़ू ने कहा कि पहले तो भारत-पाक सीमा पर तनाव की वजह से मजदूर पंजाब नहीं आ रहे थे, अब जब आए हैं तो भीषण गर्मी के चलते ठीक से काम नहीं हो पा रहा. उन्होंने कहा कि प्रवासी मजदूर न केवल सस्ते होते हैं, बल्कि उनकी कद-काठी पतली और फुर्तीली होने के कारण वे कीचड़ और पानी से भरे खेतों में बेहतर काम कर पाते हैं.

अब तेज गर्मी ने सारी योजना बिगाड़ दी है

उन्होंने कहा कि पहले जब रोपाई का समय सिर्फ 15 जून से जुलाई के मध्य तक होता था, तब मजदूरों की कमी के कारण उनका शोषण होता था और मजदूरी दर बहुत बढ़ जाती थी. पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी (PAU) किसान क्लब के अध्यक्ष कुलविंदर सिंह ने कहा कि इस साल धान रोपाई की तारीख पहले कर देने से किसानों को समय पर और उचित दामों में मजदूर मिल गए थे. लेकिन अब तेज गर्मी ने सारी योजना बिगाड़ दी है.

किसान करते हैं मजदूरों को सम्मान

द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने कहा कि इस बार लंबी अवधि होने से किसानों ने मजदूरों की उपलब्धता के हिसाब से धीरे-धीरे रोपाई शुरू की थी. लेकिन अब गर्मी इतनी ज्यादा है कि रोपाई फिर से 15 जून तक टल गई है. पंजाब में दशकों से धान की खेती के लिए बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश से आने वाले प्रवासी मजदूरों पर निर्भरता रही है. हर साल इन मजदूरों का स्वागत बड़े उत्साह से होता है. पटियाला के किसान जस्सा सिंह ने कहा कि इस समय इन मजदूरों को दूल्हे जैसा सम्मान दिया जाता है. बड़े खेत वाले किसान उन्हें खुश रखने की हर कोशिश करते हैं ताकि वे काम छोड़कर किसी और के पास न चले जाएं.

कितनी है धान रोपाई की मजदूरी

लुधियाना के आलमगीर गांव के किसान बंता सिंह ग्रेवाल ने कहा कि स्थानीय मजदूर धान की रोपाई के लिए 6,000 से 7,000 रुपये प्रति एकड़ तक लेते हैं, जबकि प्रवासी मजदूर 4,000 से 4,500 रुपये में ही काम कर देते हैं. इसी वजह से किसान प्रवासी मजदूरों को ही ज्यादा पसंद करते हैं. पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी (PAU) के कम्युनिकेशन डिपार्टमेंट के संपादक जगविंदर सिंह के मुताबिक, ये मजदूर ज्यादातर बिहार के मोतिहारी, हाजीपुर, बेगूसराय, पूर्णिया और मधेपुरा जैसे जिलों से आते हैं. ये अधिकतर अनपढ़, भूमिहीन और मुस्लिम समुदाय से होते हैं. पंजाब में धान रोपाई के बाद वे गुजरात या दिल्ली की आजादपुर मंडी में काम करने चले जाते हैं.

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