Rabi crop sowing: देश में रबी सीजन की खेती इस बार उम्मीदों के साथ आगे बढ़ रही है. ठंड के बढ़ते असर, कोहरे और कुछ इलाकों में मौसम की अनिश्चितता के बावजूद किसानों ने खेतों में बुवाई का काम लगातार जारी रखा है. यही वजह है कि चालू रबी मौसम में फसलों का कुल रकबा पिछले साल की तुलना में बढ़ा है. कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की ओर से जारी ताजा आंकड़ों के अनुसार 19 दिसंबर 2025 तक देश में कुल 580.70 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में रबी फसलों की बुवाई हो चुकी है. बीते साल की इसी अवधि में यह आंकड़ा 572.59 लाख हेक्टेयर था. यानी इस बार करीब 8.12 लाख हेक्टेयर ज्यादा क्षेत्र में रबी फसलें बोई गई हैं.
गेहूं बना रबी सीजन की रीढ़
रबी सीजन की सबसे अहम फसल गेहूं की बुवाई अब लगभग अपने अंतिम चरण में पहुंच चुकी है. इस साल गेहूं का रकबा 301.63 लाख हेक्टेयर दर्ज किया गया है, जो पिछले साल के मुकाबले थोड़ा ज्यादा है. हालांकि यह अभी भी सामान्य रबी क्षेत्र से कुछ कम है, लेकिन कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि जिन इलाकों में समय पर सिंचाई और खाद की उपलब्धता रही, वहां फसल की हालत अच्छी बताई जा रही है. उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में गेहूं की बुवाई लगभग पूरी हो चुकी है. ठंड बढ़ने के साथ गेहूं की बढ़वार को फायदा मिलने की उम्मीद है, जिससे आगे चलकर उत्पादन बेहतर रह सकता है.
दालों की खेती में किसानों का भरोसा
इस रबी सीजन में दालों की खेती ने खास ध्यान खींचा है. कुल दालों का रकबा बढ़कर 126.74 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गया है, जो पिछले साल की तुलना में 3.72 लाख हेक्टेयर अधिक है. खासतौर पर चने की खेती में जबरदस्त बढ़ोतरी दर्ज की गई है. चने का रकबा 91.70 लाख हेक्टेयर हो गया है, जो बीते साल से करीब 4.89 लाख हेक्टेयर ज्यादा है. इसकी एक बड़ी वजह यह मानी जा रही है कि चने के दाम पिछले कुछ वर्षों में अपेक्षाकृत बेहतर रहे हैं और इसकी खेती में लागत भी तुलनात्मक रूप से कम आती है. वहीं मसूर की खेती लगभग स्थिर बनी हुई है, जबकि उड़द और मूंग जैसी कुछ दालों में हल्की गिरावट देखी गई है.
मोटे अनाज और मक्का की बढ़ती हिस्सेदारी
सरकार की ओर से मोटे अनाजों को बढ़ावा देने की नीति का असर इस रबी सीजन में भी दिखाई दे रहा है. ज्वार, बाजरा, रागी और छोटे मिलेट्स सहित मोटे अनाजों का कुल रकबा 45.66 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गया है. खासतौर पर मक्का की बुवाई में अच्छी बढ़त दर्ज की गई है और इसका क्षेत्रफल 18.34 लाख हेक्टेयर हो गया है, जो पिछले साल से करीब 1.45 लाख हेक्टेयर ज्यादा है. रागी और छोटे मिलेट्स में भी मामूली बढ़ोतरी देखी गई है, जिससे यह संकेत मिलता है कि किसान अब पारंपरिक फसलों के साथ-साथ वैकल्पिक फसलों की ओर भी रुख कर रहे हैं.
तिलहन फसलों में सरसों की मजबूत पकड़
तिलहन फसलों के मोर्चे पर भी इस बार स्थिति संतोषजनक नजर आ रही है. कुल तिलहन रकबा बढ़कर 93.33 लाख हेक्टेयर हो गया है. इसमें सबसे बड़ा योगदान सरसों और रेपसीड का रहा है. सरसों का रकबा 87.80 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गया है, जो पिछले साल से 1.23 लाख हेक्टेयर ज्यादा है. इससे आने वाले महीनों में खाद्य तेल उत्पादन बढ़ने की उम्मीद जताई जा रही है. हालांकि मूंगफली और अलसी जैसी कुछ तिलहन फसलों में रकबा घटा है, लेकिन कुल मिलाकर तिलहन की स्थिति संतुलित बनी हुई है.
मौसम और उत्पादन को लेकर उम्मीदें
कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि अगर जनवरी और फरवरी के महीनों में मौसम अनुकूल रहता है और पाले या असामान्य बारिश जैसी समस्याएं नहीं आतीं, तो इस साल रबी फसलों का उत्पादन अच्छा रह सकता है. बढ़ा हुआ रकबा इस बात का संकेत है कि किसान खेती को लेकर आशावादी हैं. रबी की अच्छी पैदावार न केवल किसानों की आमदनी बढ़ाने में मदद करेगी, बल्कि देश की खाद्य सुरक्षा और बाजार में स्थिरता बनाए रखने में भी अहम भूमिका निभाएगी.