Business News: भारत में ड्राई फ्रूट्स अब सिर्फ त्योहारों या खास मौकों तक सीमित नहीं रह गए हैं. बदलती जीवनशैली, सेहत के प्रति बढ़ती जागरूकता और पोषण से भरपूर भोजन की चाह ने ड्राई फ्रूट्स को आम लोगों की रोजमर्रा की थाली का हिस्सा बना दिया है. यही वजह है कि आने वाले वर्षों में इस सेक्टर की मांग और तेजी से बढ़ने का अनुमान लगाया जा रहा है. नट्स एंड ड्राई फ्रूट्स काउंसिल (इंडिया) यानी NDFC ने ड्राई फ्रूट्स बाजार को लेकर एक अहम अनुमान जारी किया है, जो किसानों से लेकर कारोबारियों तक सभी के लिए महत्वपूर्ण है.
FY27 में 10 से 15 फीसदी तक बढ़ेगी मांग
NDFC के मुताबिक वित्त वर्ष 2026-27 में भारत में ड्राई फ्रूट्स की मांग 10 से 15 फीसदी तक बढ़ सकती है. यह बढ़ोतरी पिछले कुछ वर्षों के ट्रेंड के अनुरूप ही रहने की संभावना है, जो यह दिखाती है कि ड्राई फ्रूट्स की खपत लगातार मजबूत बनी हुई है. नई दिल्ली में मीडिया से बातचीत करते हुए NDFC के अध्यक्ष गुनजन विजय जैन ने कहा कि देश में ड्राई फ्रूट्स का बाजार तेजी से फैल रहा है, लेकिन घरेलू उत्पादन इस रफ्तार के साथ कदम नहीं मिला पा रहा.
भारी मांग के सामने कम घरेलू उत्पादन
बिजनेस लाइन की रिपोर्ट के अनुसार, गुनजन विजय जैन ने बताया कि भारत में अखरोट, पिस्ता, काजू, किशमिश, बादाम और खजूर जैसे छह प्रमुख ड्राई फ्रूट्स की सालाना मांग करीब 14.3 लाख टन है. इसके मुकाबले देश में इनका कुल उत्पादन सिर्फ लगभग 3.8 लाख टन ही है. यानी भारत अपनी कुल जरूरत का केवल 27 फीसदी ही खुद पैदा कर पा रहा है. बाकी मांग को पूरा करने के लिए आयात पर निर्भर रहना पड़ता है.
आयात पर बढ़ती निर्भरता बनी बड़ी चुनौती
ड्राई फ्रूट्स के मामले में भारत करीब 80 फीसदी तक आयात पर निर्भर है. कई ऐसे ड्राई फ्रूट्स हैं, जिनका देश में या तो उत्पादन बिल्कुल नहीं होता या फिर बहुत ही सीमित मात्रा में होता है. इसी वजह से हर साल ड्राई फ्रूट्स का आयात बिल बढ़ता जा रहा है. बढ़ती खपत के साथ-साथ रुपये की कमजोरी भी आयात को महंगा बना रही है, जिसका असर अंततः आम उपभोक्ताओं पर पड़ता है.
कच्चे माल की सोर्सिंग बढ़ाने पर जोर
NDFC का मानना है कि ड्राई फ्रूट्स के कच्चे माल के लिए सोर्सिंग देशों का दायरा बढ़ाया जाना चाहिए. इससे अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और कीमतों पर नियंत्रण रखने में मदद मिलेगी. साथ ही अगर ड्राई फ्रूट्स का प्रोसेसिंग और पैकेजिंग भारत में ज्यादा होगी, तो इससे देश में रोजगार के नए अवसर भी पैदा होंगे. भारत अब सिर्फ बड़ा उपभोक्ता बाजार ही नहीं, बल्कि प्रोसेसिंग और वैल्यू एडिशन का केंद्र बनने की दिशा में भी आगे बढ़ रहा है.
GST में कटौती से बढ़ी खपत
NDFC ने ड्राई फ्रूट्स पर जीएसटी को 12 फीसदी से घटाकर 5 फीसदी कराने में अहम भूमिका निभाई है. संगठन का कहना है कि इस फैसले से ड्राई फ्रूट्स की खपत में साफ बढ़ोतरी देखने को मिली है. अब ड्राई फ्रूट्स धीरे-धीरे आम घरों में रोजमर्रा के खाने का हिस्सा बनते जा रहे हैं, जिससे बाजार को और मजबूती मिल रही है.
MEWA India से जुड़ेगा वैश्विक बाजार
NDFC अगले साल नई दिल्ली में MEWA India के तीसरे संस्करण का आयोजन करने जा रहा है. यह ड्राई फ्रूट्स और नट्स सेक्टर की एक बड़ी प्रदर्शनी और सम्मेलन है. इस बार इसमें “जागरूकता” को एक नए विषय के रूप में शामिल किया गया है. संगठन का कहना है कि 2026 का MEWA India अब तक का सबसे ज्यादा वैश्विक स्तर से जुड़ा आयोजन होगा, जिसमें दुनिया भर के प्रदर्शक, खरीदार और उद्योग से जुड़े बड़े नेता शामिल होंगे.
घरेलू किसानों को मजबूत करने की जरूरत
NDFC के सीईओ नितिन सहगल ने कहा कि स्थिरता कोई फैशन नहीं, बल्कि जिम्मेदारी है. यह जिम्मेदारी तब पूरी होगी, जब घरेलू किसानों को मजबूत किया जाएगा. संगठन की ओर से कर्नाटक के मूडबिद्री में काजू प्लांटेशन ड्राइव और उत्तराखंड के चकराता में अखरोट प्लांटेशन ड्राइव जैसी पहल की गई है, ताकि किसानों को लंबे समय तक आय का सहारा मिल सके.
सरकार से सहयोग की उम्मीद
NDFC ने सरकार से मांग की है कि ड्राई फ्रूट्स की खेती को बढ़ावा देने के लिए पौध आयात नियमों में ढील दी जाए और किसानों को शुरुआती 4–5 वर्षों तक आर्थिक मदद देने के लिए कोई विशेष योजना लाई जाए. क्योंकि ड्राई फ्रूट्स के पेड़ों को फल देने में समय लगता है, ऐसे में शुरुआती दौर में किसानों को सहारा मिलना बेहद जरूरी है.
कुल मिलाकर, भारत में ड्राई फ्रूट्स का बाजार तेजी से आगे बढ़ रहा है. अगर घरेलू उत्पादन को सही नीतियों, तकनीक और सरकारी सहयोग के जरिए बढ़ाया जाए, तो आने वाले समय में न सिर्फ आयात पर निर्भरता कम होगी, बल्कि किसानों की आमदनी और देश की अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिलेगी.