S&P REPORT: बेहतर मानसून से चमकेगा भारत, GDP 6.5 फीसदी रहने का अनुमान

भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (MPC) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीण गतिविधियों में लगातार सुधार, निजी खपत में तेजी और सेवा क्षेत्र की मजबूती से देश की आर्थिक गति बनी हुई है.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 24 Jun, 2025 | 10:43 AM

देश में इस बार सामान्य मॉनसून की उम्मीदें सिर्फ किसानों के लिए नहीं, बल्कि पूरी अर्थव्यवस्था के लिए एक राहत की खबर बनकर आई हैं. अब वैश्विक रेटिंग एजेंसी S&P Global ने भी भारत की आर्थिक वृद्धि दर (GDP ग्रोथ) का अनुमान बढ़ा दिया है. वित्त वर्ष 2025-26 के लिए भारत की GDP ग्रोथ को 6.3 फीसदी से बढ़ाकर 6.5 फीसदी कर दिया गया है. इसका सीधा मतलब है कि आने वाला साल अर्थव्यवस्था के लिए थोड़ा और बेहतर साबित हो सकता है.

क्यों बढ़ाया गया ग्रोथ अनुमान?

S&P के मुताबिक भारत की आर्थिक मजबूती का आधार मजबूत घरेलू मांग, कम क्रूड ऑयल कीमतें, और सामान्य मॉनसून की भविष्यवाणी है. इन तीनों कारकों ने भारत को वैश्विक व्यापार की उठापटक के बावजूद स्थिर बनाए रखा है. रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत जैसे देशों की अर्थव्यवस्था, जो सामानों के निर्यात पर ज्यादा निर्भर नहीं है, वे वैश्विक अस्थिरताओं को बेहतर झेल पाती हैं.

ग्रामीण भारत की भूमिका अहम

भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (MPC) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीण गतिविधियों में लगातार सुधार, निजी खपत में तेजी और सेवा क्षेत्र की मजबूती से देश की आर्थिक गति बनी हुई है. इसके अलावा सरकार की ओर से किए जा रहे पूंजीगत खर्च (capital expenditure) और कॉरपोरेट्स की सुधरती बैलेंस शीट्स भी निवेश बढ़ने का संकेत दे रही हैं.

महंगाई पर भी राहत की उम्मीद

रिपोर्ट में यह भी बताया कि हाल के महीनों में भारत सहित कई देशों में खुदरा महंगाई दर में गिरावट दर्ज की गई है. मई 2025 में भारत में खुदरा महंगाई 2.82 फीसदी रही, जो 75 महीनों का न्यूनतम स्तर है. खाद्य महंगाई में कमी और ग्लोबल एनर्जी प्राइसेज में नरमी से आने वाले महीनों में कीमतों पर नियंत्रण रहने की संभावना है.

एशिया-प्रशांत क्षेत्र में भारत की स्थिति मजबूत

वहीं एशिया-पैसिफिक क्षेत्र के कई देशों ने 2025 की शुरुआत घरेलू मांग के दम पर बेहतर की है. हालांकि, अमेरिका की टैरिफ नीतियों और चीन में कम होती आयात मांग के कारण कुछ देशों पर दबाव है. लेकिन भारत जैसी आंतरिक मांग पर टिकी अर्थव्यवस्थाएं इन वैश्विक जोखिमों के बीच भी संतुलन बनाए रख सकती हैं.

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