Farming Tips: केले की खेती भारत में किसानों के लिए कमाई का बड़ा स्रोत है, लेकिन अच्छी पैदावार तभी मिलती है जब मिट्टी उपजाऊ हो. लगातार रासायनिक खाद डालने से मिट्टी कमजोर होती जाती है और उत्पादन साल-दर-साल घटता है. ऐसे में हरी खाद यानी ग्रीन मैन्योर मिट्टी की जिंदगी लौटाने का सबसे सस्ता और प्राकृतिक तरीका माना जाता है. तो चलिए जानते हैं कि केले की खेती से पहले हरी खाद का उपयोग कैसे करें, कौन-सी फसलें लगाएं और इससे किस तरह खेत की सेहत और आपकी कमाई दोनों बढ़ सकती हैं.
हरी खाद क्या है और क्यों जरूरी है?
हरी खाद उन फसलों को कहते हैं जिन्हें सिर्फ मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए उगाया जाता है. इन फसलों को 45–60 दिन बाद खेत में जोतकर मिट्टी में मिला दिया जाता है. इससे मिट्टी में जैविक तत्व, नाइट्रोजन, फास्फोरस जैसे पोषक तत्व स्वाभाविक रूप से बढ़ जाते हैं.
हरी खाद मिट्टी की संरचना को बेहतर बनाती है, पानी रोकने की क्षमता बढ़ाती है और खेत को फुला देती है, जिससे केला जैसी भारी पोषक तत्व लेने वाली फसल आसानी से बढ़ती है.
केले की खेती से पहले हरी खाद क्यों लगानी चाहिए?
केला एक तेजी से बढ़ने वाली और पोषक तत्वों की भूखी फसल है. अगर मिट्टी में जैविक तत्व कम हों तो पौधे कमजोर विकसित होते हैं और गुच्छे छोटे बनते हैं.
रबी फसल की कटाई और केले की रोपाई के बीच करीब 3 महीने का समय मिलता है. यह समय हरी खाद वाली फसलें उगाने के लिए बिल्कुल सही होता है. इससे खेत की मिट्टी मजबूत हो जाती है और केले की खेती के दौरान रासायनिक खाद की जरूरत लगभग 20–30 फीसदी तक कम हो जाती है.
हरी खाद के लिए कौन-सी फसलें लगाएं?
हरी खाद के लिए ऐसी फसलें चुनी जाती हैं जो जल्दी बढ़ती हों और मिट्टी में ज्यादा नाइट्रोजन छोड़ती हों.
ढैंचा
ढैंचा एक ऐसी फसल है जो क्षारीय मिट्टी (pH 8 से ज्यादा) को भी बेहतर बनाती है. यह मिट्टी में जैविक पदार्थ तेजी से बढ़ाती है और केला जैसी फसलों के लिए बेहद फायदेमंद है.
सनई
सनई मिट्टी में जैविक तत्व बढ़ाने के साथ-साथ पानी धारण क्षमता में भी सुधार करती है.
मूंग व लोबिया
ये दलहनी फसलें नाइट्रोजन स्थिरीकरण के कारण मिट्टी को प्राकृतिक रूप से उपजाऊ बनाती हैं.
हरी खाद कैसे लगाएं और खेत को तैयार कैसे करें?
- अप्रैल–मई में खेत खाली हो तो पहले हल्की सिंचाई करें.
- इसके बाद 45–50 किलो ढैंचा या सनई का बीज प्रति हेक्टेयर बो दें.
- फसल 45–60 दिन में फूल आने लगती है, तभी इसे मिट्टी पलटने वाले हल से खेत में मिला देना चाहिए.
- सड़न तेजी से हो, इसके लिए प्रति बिस्वा 1 किलो यूरिया हल्के छिड़काव के रूप में डाल सकते हैं.
- 15–20 दिन में मिट्टी पूरी तरह तैयार होकर केले की रोपाई के लिए बिल्कुल उपयुक्त हो जाती है.
हरी खाद से मिलने वाले बड़े फायदे
- हरी खाद सिर्फ उपज ही नहीं बढ़ाती, बल्कि खेती की लागत भी कम करती है.
- मिट्टी में जैविक तत्व बढ़ जाते हैं
- रासायनिक खाद की जरूरत 20–30 फीसदी कम
- मिट्टी नरम और भुरभुरी होती है
- पानी रोकने की क्षमता बढ़ती है
- केले के गुच्छे बड़े और भारी बनते हैं
- पर्यावरण अनुकूल और टिकाऊ खेती को बढ़ावा मिलता है
हरी खाद का प्रयोग केले की खेती में “एक छोटी सी तैयारी, बड़ा फायदा” की तरह है. एक बार इसे अपनाकर देखें, मिट्टी भी स्वस्थ होगी और उत्पादन भी बढ़ेगा और सबसे बड़ी बात, आपकी खेती की लागत खुद-ब-खुद कम हो जाएगी.